meri chetna

मेरी चेतना 

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वह अपने,
हसीन रंग पर इतराता रहा,
चेहरा धुलने से घबराता रहा,
खुद का सामना करना,
बड़ा मुश्किल है,
दूसरों को आइना दिखाता रहा,
वह डरता है,
पानी की आदत से,
जो धीरे-धीरे,
सारे निशान मिटा देता है,
किसी के कुछ भी होने की।
वह तो बहता,
सभी रंग खुद में भरता है,
वो उस रंगरेज के,
इशारों पर चलता है,
जो जहाँ,जैसा चाहे,
अपने रंग भरता है।
©️Rajhansraju
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होली

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नए रंग कि तलाश करता रहा, 
न जाने कहाँ भटकता रहा
जिंदगी ने तो हर जगह,
खुशियों कि थैली रखी थी,
मै कुछ और ढूँढता रहा,
सब कुछ धुँधला, 

नज़र आने लगा।
फिर रंगों ने तरकीब निकली,
हर थैली,

 हर चेहरा, 
एक जैसा कर दिया,
मुस्कान आ गयी, 

हाथ लग गयी,
खुशियां बेवजह, 

आज, भर गयी। 
जेब तो खाली थी कब से,
मेरे हँसते ही कुछ भर गयी।
ख़त्म हुआ नहीं कुछ भी,
पर !
इन रंगों से कुछ बात बन गयी
©️Rajhansraju

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बे-सहारा बच्चे 

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देखो धरती आसमान से, 
कैसे मिलाती है क्षितिज पे,
जैसे कोई बिछड़ा बच्चा ढूंढें, 
माँ की गोद को,
फुटपाथ पर भी होते हैं बच्चे, 
बिना माँ बाप के।
अकेले लड़ते भूख और समाज से,
एक रूठा बच्चा, 
पास नहीं कोई, 
आस नहीं कोई,
कब तक चलेगा बिना सहारे, 
मरे बचपन के साथ, 
हाथ में उठाए बचपन का बोझ,
कोई नहीं पूंछता उसका नाम ,
हर कोई कहता है रामू या छोटू,
नाम की जरूरत ही नहीं पड़ी, 
सब अपने हिसाब से, 
रख देते हैं उसका नाम,
उसे भी नहीं मालूम,
किसी ने कभी रखा हो, 
उसका कोई नाम,
कभी कप - प्लेट धोता,
किसी घर में, 
पोछा लगाता मिल जाता है,
यह रामू या छोटू, 
पेट भरने को चंद टुकडे ,
साथ में दो-चार थप्पड़,
रोने की भी चाहत कहाँ रह जाती है,
कोई आंसू नहीं पोंछता यहाँ,
हर कोई देता है, एक भद्दा सा नाम,
फिर भी वह हँसता है, 
जवाब देता है , हर नाम पर,
आधी रोटी से भी भर जाता है, 
उसका पेट,
क्योंकि गालियाँ, थप्पड़, 
आज काफी थे,
वह फिर हँसता है, 
बेबस लोगों पर ,
जो खुद और समाज से हारे हैं,
अपना गुस्सा और रौब, 
उस पर जता रहें हैं,
उसे नहीं मालूम, 
जीवन के और भी अर्थ हैं ,
जिसे वह नहीं जानता,
वह तो इतनी जल्दी, 
बड़ा हो गया कि चंद दिनों में ही,
दुनिया से हारे लोगों को जान गया,
वह हँसता है, खिलखिलाता है ,
उसे माँ की कमी नहीं खलती,
क्योंकि वह किसी माँ को नहीं जानता,
फेंक दिया गया था, 
सड़क किनारे,
किसी कूड़ेदान में,
उसी के जैसे, 
किसी ने उसे उठाया था ,
रोते -रोते कब चलना सीखा,
नहीं मालूम,
कोई अंगुली उसने नहीं पकड़ी,
भूख ने ही उसे सब सिखाया,
चोरी करना छीन के खाना,
वह माँ नहीं,
मालकिन को जानता है,
जो हमेशा डाटती है,
कभी-कभी मारती है,
वह फूटपाथ पर ही,
लड़ता और बढ़ता है ,
सड़क किनारे रोटियां,
गलियां पर्याप्त, 
मिल जाती हैं,
इतने से ही खुश हो लेता है,
जरूरंते कितनी सीमित,
एक दिन और जिन्दा रहा, 
चलो फिर, खुश हो लिया,
भूख तक सब कुछ सीमित,
सड़क छाप, आवारा ,
कुछ भी कह लो,
कोई फर्क नहीं,
मस्त अपनी धुन में खोया,
न कुछ पाने की ख्वाइश,
न कुछ खोने का डर,
बस ! एक दिन और एक रात कटी ,
जिंदगी यूँ ही चलती रही,
इसके बाद भी वह हँसता है,
मुस्कराता है,
जब भी वह अकेला होता है ,
क्षितिज के पास पहुँच जाता है,
यही धरती,यही आसमां देते हैं,
उसको ताकत ,
आगे बढ़ने की,
एक मुस्कराहट ,एक एहसास ,
खुद के होने का.. 
©️Rajhansraju
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ठहर जाओ
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एक दिन 
थोड़ा वक्त लेकर आना 
किसी अनजानी जगह चलेंगे 
जहाँ कोई पहचानता न हो
किसी पगडंडी पर
कुछ दूर साथ चलें
और आहिस्ता से गुम हो जाएं
खामोश नदी के 
किसी किनारे बैठे रहे 
एक पल जो हमारा हो 
उसी में सदियां गुजर जाएं
इसी ख्वाहिश में 
नदी के पास चला आता हूँ 
वक्त न जाने कब? 
हमारा लम्हा 
हमें सुपुर्द कर दे
और नदी न जाने कब 
हमसे बात करने लगे
बचपन से यही तो सुनता आया हूँ 
चाँद वाली बुढ़िया 
क्या पता 
किसी दिन नदी किनारे मिल जाये 
वैसे भी नदी की उम्र बहुत ज्यादा है 
हो सकता है 
दोनों पुरानी सखी हों
और मुझे भी अपने किनारे पर 
रोज देखती हों
मैं नदी से बात करना चाहता हूँ 
वह मुसाफिर है कि रास्ता
बस इतना ही तो
जानना चाहता हूँ 
कहीं ऐसा तो नहीं है 
वह भी गुम हो गई है 
अपने किनारे की तलाश में 
आज तक उसे
अपना वह लम्हा नहीं मिला 
जिसमें सदियां गुजर जाती। 
वह एकदम शांत है
मेरे अंदर का ज्वार भाटा 
मुझे नदी तक ले आता है 
यह बेगाना शख़्स 
मेरे पास हर वक्त रहता है 
कहता है तेरा वजूद हूँ 
तुझसे दूर नहीं जा सकता 
चलो साथ रहते हैं 
एक दूसरे को समझते हैं 
तभी मौन पसरने लगा 
अब जरा गौर से देखो 
वह नदी तुम हो
जो तुम्हारे अंदर 
बह रही है 
©️Rajhansraju 
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पहचान 

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वो आदमी 
जो कुछ अजीब सा है, 
थोड़ा बेपरवाह है, 
कौन क्या कहेगा, 
इसकी फिक्र नहीं है, 
उसमें थोड़ा सा कलंदर है, 
कोई फक्कड़ सा मुसाफिर है, 
किसी अनजाने सफर पर निकला है, 
जिसे रास्तों से वास्ता नहीं है, 
कहाँ कब तक ठहरा है, 
और न जाने कब चल दे, 
कुछ तय नहीं है, 
यह वक्त की थपकी, 
कभी-कभी एक गीत बनकर, 
हमारे दरमियाँ, 
एक लय में बिखर पड़ती है, 
तब वह इसी वक्त के साथ, 
खुद का इजहार करता है, 
फिर...
मैं मलंग..
मलंग...
©️Rajhansraju
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खारापन 

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वह समुंदर से नाराज, 
उस पर तोहमत लगाने लगा, 
जानता हूँ.... 
तुम पानी से बने, 
अथाह और अनंत हो, 
पर मेरे किस काम के, 
मैं प्यासा हूँ, 
तुम्हें पी नहीं सकता, 
तुम इतने गहरे हो, 
पता नहीं? 
मेरी आवाज़, 
तुम तक, 
पहुँचती है कि नहीं, 
जहाँ तक मेरी नजर जाती है 
तुम्हारा सन्नाटा दिखता है 
और किनारों से टकराती, 
तुम्हारी लहरें, 
हर बार कुछ दूर जाकर, 
फिर तुम्हीं में लौट आती हैं, 
वह गुमसुम किनारे पर बैठा, 
लहरों का आना-जाना, 
न जाने कब से देखता रहा, 
खुद से थककर, 
खारे समुंदर की सोचने लगा, 
ए जो बरसात और बादल है, 
उनको तुम्हीं तो गढ़ते हो, 
इन्हीं नसों से, 
आक्सीजन निकलता है, 
और धरती की सारी गंदगी, 
खुद में भर लेतो है, 
लोगों की तोहमतें भी कम नहीं हैं 
ऊपर से न पीने लायक, 
होने का तंज, 
सदा से कसा जाता रहा है, 
तूँ मीठा क्यों नहीं हो जाता? 
पर तुझे किसकी परवाह, 
तेरा वजूद इतना विशाल, 
कहने सुनने वालों से बेख़बर, 
तूँ जैसा है, 
वैसा ही बना रहता है, 
ऐसे ही, 
खारा बने रहना, 
कोई आसान काम तो नहीं है, 
एक जैसी फितरत के साथ, 
खुद को बनाए रखना, 
और लगातार नमक के साथ, 
जीने की शर्त, 
कितना मुश्किल होता है? 
इस खारेपन में, 
कुछ भी रिसना, 
और इस देह का धीरे-धीरे, 
नमक बनते जाना, 
वो भी अपनी मर्जी से, 
सारा खारापन, 
खुद में समेटते रहना, 
वैसे ए काम, 
सिर्फ तूँ ही कर सकता है, 
क्योंकि तूँ समुंदर है, 
और इस दुनिया को, 
आबाद रखने की यही शर्त है, 
इसका खारापन सोखने को, 
हमारे पास, 
एक समुंदर हो।
©️Rajhansraj
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मेरा गाँव 

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कोई कुछ भी कहे
वह अपना रास्ता नहीं भूलता
हालांकि काफी दिनों बाद लौटा
रास्ते में तमाम
तब्दीलियां हो चुकी हैं
ईंट-पत्थरों के
बड़े-बड़े मकान बन गये हैं
चमचमाती सड़कें
हर तरफ नजर आ रही है
पर यह क्या
उसे तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता
आज भी अपना रास्ता
पूरी तरह याद है
वह जैसे चला करता था
एकदम झूम कर
वैसे ही अपने पुराने
रास्ते से निकलता है
उसके साथ रास्ते में
जो भी मिलता है
उसे भी अपनी आगोश में
लेता चला जाता है
सफर अकेले करना
थोड़ा मुश्किल होता है
शायद इसीलिए
वह अपने साथ 
रास्ते में जो भी मिलता है
उसका हाथ थाम लेता है।
पानी कभी रास्ता भूलता नहीं है
उसे कौन रोक सकता है
जिसे मालूम है
उसे कैसे बहना है
किस तरफ सफर तय करना है
इंसान ने भी फितरत नहीं छोड़ी
उसके बिना इजाजत
न जाने उसकी राह में
क्या क्या बनाते रहे
अपने काम को
भव्य आलीशान कहने लगा
जबकि पानी का इससे
कोई वास्ता नहीं है
सबको यह मालूम है
वह अपने रास्ते से
कोई समझौता नहीं करता
वह अब भी वैसे ही बहता है
उसकी पहचान
निरंतर बहते रहना है
वह भला कितनी देर तक
ठहर सकता है
उसे तो अपने रास्ते
चलना है
उसकी मंजिल तो समुंदर है
जो नदियों से होकर गुजरता है
रास्ते में जो भी मिला
अपने साथ लेकर चलता है
उससे शिकायत करने का
कोई मतलब नहीं है
हमें उसका रास्ता
खाली रखना है
©️Rajhansraju 
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Comments

  1. मेरी चेतन को एक बेहतरीन मंच बनने के लिए शुक्रिया

    ReplyDelete
  2. हम मिलकर कुछ बेहतर करेंगे

    ReplyDelete
  3. मैं
    अतीत और भविष्य
    की पगडंडी पर
    यूँ ही हमेशा
    बरकरार रहता

    ReplyDelete

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