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 मुनाफाखोरी  खेल मुनाफे का बड़ा निराला है  दो का चार नहीं  कम से कम दस बनाना है  घात लगाए बैठा है  कुछ तो बेच रहा है  सीसी में दवा नहीं  जहर भर के रखा है  खाने पीने की चीज नकली  सिर्फ मुनाफा असली है  स्कूल अस्पताल सब  साहूकार की डंडी है  खेल मुनाफे का भैया बड़ा निराला है  बड़े दुखी है वह  जो कुछ बेंच नहीं पाते  तैयार बैठे हैं बिकने को पर बिक नहीं पाते  जिनका पेट है पहले से  और भरा  वह कहते हैं  यह व्यवस्था ठीक नहीं  सारा सिस्टम जबकि वही चला रहे  दुनिया अपनी उंगली पर  जैसा चाहे नचा रहे  पर एक दिन ऐसा आया  जैसे ख्वाब से जागा हो  अपने कद जितना  नही कहीं टुकड़ा भी  विदा हुआ अकेले  बिन माटी बिन कपड़ा ही  दुनिया अब भी है कायम  तुमने किया कितना ही  यह मुनाफा किस काम का  जब हाथ लगे न जर्रा भी  दुनिया बड़ी गड़बड़ है  अब भी कहता ऐसा ही  जबकि उसने ही  यह हाल बनाके रखा है  खेल मुनाफे का भैया  बड़ा निराला ऐस...