Cinema and society

 हमारा सिनेमा और समाज 


हमारी फिल्मों की जो यात्रा है वह आमतौर पर कथित या  घोषित तौर पर खुद को सस्ता, हिंसक, अश्लील बिकाऊ साहित्य का अपडेटेड वर्जन बनाना भर है जो इंटरनेट की वजह से एक हो चुकी दुनिया में ग्लोबल मार्केट से पैसा कमाने की अपार संभावना में खुद के लिए पर्याप्त हिस्सा हासिल करने की कोशिश भर लगती है जहां असीमित अपार धन कमाया जा सकता है। इनका मकसद किसी की दशा सुधारना या कोई दिशा दिखाना नहीं है। 

       वैसे समाज में सभी चीजें एक साथ चलती रहती है और साहित्य, सिनेमा में भी एक साथ सभी के लिए कुछ ना कुछ उपलब्ध होता है। किसी के लिए भी दर्शक, श्रोता, पाठक कभी कम नहीं होते और न वहां पैसों की कमी होती है बस अपनी बात, अपने कंटेंट को सही ढंग से परोसना आना चाहिए अखबार और किताब अभी भी छप रहे हैं। जापान हो या अमेरिका सभी जगह उनकी छपाई और गुणवत्ता निरंतर बेहतर हुई है या यूं कहें कि पहले से ज्यादा काम हो रहा है क्योंकि कागज और स्याही की खुशबू लोगों को कागज के करीब ले आती है इसमें कोई संदेह नहीं है जहां वह कुछ लिखता-पढ़ता, हाँ सबसे बड़ी बात वह छुअन महसूस करता है। 

      हमारी फिल्में किस तरह की बातें, किस तरह से कह रही हैं यह समझना हो तो थोड़ा सा इसके इतिहास और अर्थशास्त्र को देखने समझने की आवश्यकता है हमारा जो पहले का सिनेमा था, वह अब गांव से शहर आ चुका है, डाकू अब माफिया बन चुका है, खैनी रगड़ता हुआ जो विलेन था, अब वह नारकोटिक्स के बिजनेस में है और अब वह घोड़े से नहीं चलता, उसके पास अपना जेट है, धोती कुर्ता से यह डिजाइनर सूट की यात्रा है, जहां कॉस्मोपॉलिटन होने और ग्लोबल मार्केट में भारत के क्रिएटर भी पैसा कमा सकते हैं इसकी समझ उनमें आ चुकी है और इसी तरफ हम आगे बढ़ रहे हैं या फिर यूँ कहें कि उसी के संकेत अब दिखाई पड़ने लगे हैं और हॉलीवुड के इतर कुछ नए ड्रेसिंग सेंस, गेटअप, भाषा, रीति-रिवाज की रेसिपी के साथ कहानियों को परोसने और कुछ अनोखे और नएपन के साथ नए चेहरे को देखने के लिए दुनिया आतुर है क्योंकि यही हमारी धरोहर, आश्चर्य और कौतूहल पैदा करती हैं, यह बाकी दुनिया के लिए एकदम अनोखी है। जो लोगों को एक नई दुनिया में ले जाने के लिए काफी है, अभी तक हॉलीवुड की चीजें अनोखी और नई लगती थी पर न्यू मीडियम ( Internet) में इनका इतना अतिरेक है कि दुनिया के सामने कुछ दिखाने और बताने के लिए जैसे बचा ही नहीं है और अब हमें नई कहानी चाहिए नए संदर्भ चाहिए, नए सेटअप और गेटअप चाहिए, तो वही पुरानी गन फाइट, शांत विलेन उतना अच्छा नहीं लगता, कूल विलेन अब बोर करने लगा है, तो वहीं भारत की जो सांस्कृतिक विविधता है, जिसमें पंजाब, बिहार, बंगाल, कश्मीर, चंबल, हरियाणा, पूर्वांचल, कोयलांचल, बुंदेलखंड, दंडकारण्य, पूर्वोत्तर और फिर दक्षिण में तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश जैसे राज्य कुछ नयेपन के जायके के साथ लोगों के बीच में नजर आते हैं अब देखने और दिखाने के लिए हमारे पास शानदार जादू-टोना, भूत-प्रेत, देवी-देवता, संगीत, वाद्य यंत्र, देसी करतब है इसी को थोड़ा सा और मसाला लगाकर दुनिया के सामने परोसना है और अपने बेचने की सामर्थ्य को बेहतर बनाने और पहचानने की जरूरत है। 

           अब देखिए पंजाब का माफिया, हरियाणा का माफिया और उसमें भी हिंदू माफिया, ब्राह्मण माफिया, मुस्लिम माफिया, सिख माफिया। सोचिए जब यह जातीय, धार्मिक पहचान के साथ माफिया को प्रस्तुत किया जाएगा तो उसका गेटअप, उसका घर, उसका खानपान, उसके डायलॉग, उसकी भाषा और फिर मरता-मारता, कुटता-कूटता हीरो, विलेन की जरूरत खत्म कर देता है। नए अंदाज में कहानी कही जा रही है और आप जो भी फिल्म देख रहे हो अब उसके कथानक को बदलने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी है बस प्रांत भाषा और धर्म थोड़ा सा चेंज कर देना है, मतलब मेकओवर कर देना है अब वही कहानी नए अंदाज में, टुकड़े टुकड़े में न जाने कहाँ कहाँ से क्या क्या मसाला मिलाकर शोले बन जाती है वहीं से एक टुकड़ा जानवर बन गयी और अब एनिमल के वर्जन में आ चुकी है। चंद कहानियां अलग-अलग लोग अनगिनत तरीके से कह रहे हैं और इसी का नाम क्रीएटविटी है। 

       हम पूरी दुनिया और अपने लोगों कि जो कुंठित मानसिकता की बीमारी है उसकी रेसिपी अच्छे से परोस सकते हैं या यूँ कहिए उसी मानसिकता का अच्छा दोहन कर सकते हैं सभी को पावर चाहिए, पैसा चाहिए और वह भी बहुत जल्दी चाहिए। मेहनत और पढ़ाई करके काबिल बनने का टाइम किसके पास है? किताबें कौन पढ़ना चाहता है? यह रात दिन की मेहनत भला क्यों करे? बस इंस्टेंट फास्ट फूड, जंक जैसा चाहिए और पावर का शोआफ भी करना है मेरे पास गन है, मेरे पास गाड़ी है, मेरे पास यह है, मेरे पास वह है और इसी के शो बिजनेस का नाम ग्रैंड सिनेमा है, जहाँ ग्रैंड सेरेमनी है, यहाँ गरीबी-अभाव को भी शानदार तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, इसको भी सेलीब्रेट किया जाता है, फलाने गरीबी से मर गया यह दुनिया के लिए बड़ी खबर है, जबकि जो खबर बना रहे थे उस वक्त उसके लिए कुछ कर सकते थे। 

        वह बड़ा आदमी ऐसा करता है, वैसा करता है तो उसका एक हल्का सा, छोटा सा नकल, हम भी कर सकते हैं, वह भी बिना अक्ल के और वही ट्रेंड फॉलो होने लगता है जो बहुत अच्छा है व्यापार और व्यापारी के लिए। 

      जबकि लोगों का सरोकार इससे दूर-दूर तक नहीं है। खैर अब महिलाओं पर आते हैं जिनके बारे में हम लगातार चिंतित रहते हैं। नारी विमर्श, नारी अस्मिता सारी बातें कहां टिकती हैं? कौन कह रहा है? और क्यों कह रहा है? यह सवाल भी लाजमी है तो वह  अब अबला, दबी-कुचली नहीं है, वह किचन से बाहर निकल चुकी है, साड़ी भी उसने मौके और दस्तूर, वही फंक्शन के लिए संभाल के रख दिया है। अब उसे डाकू उठाकर नहीं ले जाते, ठाकुर कमजोर हो गया है, उसकी बुरी नजर बची ही नहीं है, उसकी आंखों पर एक मोटा चश्मा लग गया है। मंदिर का पुजारी नजर नहीं आता, मंदिर दिख जाए तो बड़ी बात है और वह झूठा मक्कार पुजारी न जाने कहां चला गया। शॉपिंग ऑनलाइन होने लगी है और बनिया भी गायब हो गया है जो शातिर हुआ करता था। 

         यह सारे चरित्र गरीब की जवान बेटी पर घात लगाए रहते थे जो कि अब शादी के लायक हो गई है और कैसे भी करके उसे अपने हवस का शिकार बनाते थे फिर हीरो जो बेचारा ही होता था गांव का सीधा-साधा भोला भाला लड़का, जो कि बेरोजगार है पढ़ा लिखा है वही बेचारा अपना नायक हुआ करता था। जिसे आगे चलकर लड़ना है, हथियार उठना है, उसे ही सबकुछ बदलना है , रोते गाते पिटते हुए और पूरी कहानी में, हीरोइन, हीरो के पास कैसे भी करके पहुंच ही जाती है और हीरो की छेड़खानी या बदमाशियां उसका प्यार और अधिकार समझा जाता है, वहीं जो लल्लू जैसा विलेन या उसका बेटा है, उसकी हीरो वाली हरकतों को गलत माना जाता है और हीरो हिरोइन के मिलते ही हैप्पी एंडिंग हो जाती है। 

       पर बहन! हमेशा बलात्कार का शिकार होती थी उसके पास करने को कुछ नहीं रहता था समाज का डर और विलेन के अत्याचार से अंततः आत्महत्या ही कर लेती थी या मार दी जाती थी पर अब अच्छा है वह बहन और हीरोइन दोनों इस मोड से बाहर निकल चुकी हैं और अपना हीरो भी अब बेचारा नहीं है हमारा नायक इस समय काबिल हो गया है उसने कॉमेडियन को ही नहीं विलेयन की जरूरत को भी कहानी से खत्म कर दिया है अब अंतर करना मुश्किल हो गया है कि आखिर जो कहानी कही जा रही है उसमें विलेन कौन है यह तो हीरो है। 

     अब कहानियों में विलेन नहीं होता विलेन जैसा लगता जरूर है लेकिन असल में वही हीरो है जो विलेन है अब अपना हीरो है, वह क्या खतरनाक आदमी है... उसका डायलॉग, उसका पहनावा, उसकी स्टाइल और जो हीरोइन है, वह भी कम नहीं है, अब वह अपनी पसंद से, अपनी इच्छा से विलेन के साथ है, अरे मतलब वही हीरो, जिसे बुरा माना जाता था, वही उसका प्यार है क्योंकि उसके पास, पैसा और पावर है और अपनी जो हीरोइन है पैसा और पावर के साथ है क्योंकि वह सब कुछ कर सकता है और उसे कहानी में विलेन भी नहीं चाहिए कहानी क्योंकि हमारा हीरो ही विलेन है अब कहानी कुछ इस तरह से कहीं जा रही है। 

तो भाई अपना समाज इतना बदल गया है और हमें पता ही नहीं चला। 

          हालांकि सिनेमैटिक फ्रीडम की जो बात है वह ठीक भी है कि समाज में जो कुछ है उसको कहा जाए थोड़ा सा बढ़ा चढ़ा कर लार्जर दैन लाइफ, तो हमारा हीरो जो विलेन बन गया है वह भी लार्जर दैन लाइफ हो गया है उसको स्टाइल से मारते-मरते और काटते हुए देखना बीमार लोगों को बहुत अच्छा लगता है और वह जो इस बात को सबसे बेहतर ढंग से समझता है वह आदमी फिल्म का निर्माता है जिसकी जेब से ही सारा पैसा आता-जाता है उसी ने सबको एक जगह इकठ्ठा किया है निर्देशक, लेखक, हीरो, हिरोइन और लोग जिन्हें दर्शक कहते हैं तालियां बजा रहे हैं हलांकि उन्होंने इससे कुछ सीखा,  हासिल किया, उन्हें पता ही नहीं चला, तो आपने जल्द ही क्या कोई फिल्म देखी और उसे समझने के लिए थोड़ी बहुत अक्ल लगाने की जरूरत पड़ी कि नहीं या फिर क्यों देखी?? सर पीट रहे हैं?? 

खैर जो भी हो पैसा और समय आपने लगाया है तो इस वजह से भी खुद से कुछ सवाल करने चाहिए जैसे - 

क्या आप अपने बेटे-बेटियों को यह वाला हीरो-हीरोइन जैसा बनाना चाहते हैं या फिर अपने समाज को अपने लोगों को इस तरह से देखना चाहते हैं तो इसका जवाब अपने तक ही रखिए क्योंकि... सच तो हम सब जानते समझते हैं क्या होना चाहिए यह भी सबको पता है.. सभी को ढ़ेरों शुभकामनाएं.. 

©️Rajhansraju 

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मोची 

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एक विदेशी, व्यापार के सिलसिले में भारत आया हुआ था वह रेशम और कपास के बने कपड़े खरीदने-बेचने का काम करता था और कारीगरी के नमूने, गरम मसाले यहां से ले जाया करता था 
वह भारतीय वैभव से अभिभूत था। 
अक्सर भारतीय समाज को समझने के लिए, जब भी आता, टहलने निकल पड़ता और नगरी वैभव से दूर गांव की तरफ जाना उसे ज्यादा अच्छा लगता था। 
रास्ते से गुजरते हुए उसने एक घर देखा, वहीं बाहर एक आदमी मोची का काम कर रहा था और पास में ही दूसरी तरफ एक कुंभकार भी था। उसके जूते में कुछ समस्या थी वह मोची के पास बैठ गया। साफ सुथरी जगह थी और मोची भी कोई बेचारा नहीं लग रहा था बातचीत में पारंगत और अपने कार्य में दक्ष, अपना काम करते हुए कुछ गुनगुना रहा था। 
तभी घर से एक ब्राह्मण निकला, जिसने गेरुआ वस्त्र धारण कर रखा था, माथे पर त्रिपुण्ड, जनेऊ, बड़ी सी शिखा भी थी, आते ही उसने उसे मोची के पैर छुए और उसके बाद कुंभकार की तरफ बढ़ गया और उसका भी चरण स्पर्श किया और बताया कि आज आने में थोड़ा विलंब हो जाएगा, यह कहकर वह घर से निकल गया। यह दृश्य देखकर विदेशी यात्री का कौतूहल और बढ़ गया कि भला एक मोची और कुंभकार का, एक ब्राह्मण चरण स्पर्श कैसे कर सकता है?
 उसने पूछा कि इस ब्राह्मण ने तुम्हारा पैर क्यों छुआ? 
 वह मुस्कराया और उसने कहा- पता नहीं किन जन्मों के  सद्कर्मों का फल या ईश्वरीय कृपा है जिससे ऐसा पुत्र प्राप्त हुआ है। 
तुम्हारा पुत्र?
ब्राह्मण कैसे हो सकता है ?

वह कुंभकार उसका चाचा है 
मतलब? 
अरे हम दोनों भाइयों ने अथक परिश्रम करके यह सब हासिल किया है और अपने कार्य में हम श्रेष्ठ बनने की लगातार कोशिश करते रहते हैं यह कारीगरी का चमत्कार निरंतर अभ्यास और साधना का परिणाम है देखो कुंभकार की उंगलियां कैसे मिट्टी को जीवंत कर रही हैं और मिट्टी एक आकार में ढ़ल रही हैं। इसी परिश्रम के बल पर आज मेरा पुत्र गुरुकुल में आचार्य है और वह ब्राह्मण बन गया है, उसे पंडित की उपाधि मिल गई है और जानते हो हम तीन भाई हैं हमारा अनुज राजकीय सेवा में है वह राजा के सुरक्षा दल में सम्मिलित है अर्थात क्षत्रिय है तभी घर से एक महिला निकली, जिसने बेहद महंगे कपड़े और आभूषण पहन रखे थे उसने भी मोची और कुम्हार को प्रणाम किया, आज नाट्शाला में उसकी नाटिका मंचित की जाएगी-
सभी लोग समय पर आ जाना.. 
नहीं तो... 
यह बात उसने चेतावनी देते हूए कही... 
और घर से निकल पड़ी 
अब ए कौन थी? 
यात्री यह पूछता.. 
इससे पहले मोची ने कहा - 
यह हमारी पुत्री है
सब लोग इससे डरते हैं 
(यह कहकर हंसने लगा) 

इनके पति आप ही तरह एक व्यापारी है। इस समय व्यापार के सिलसिले में प्रवास पर हैं 
तभी एक बुजुर्ग महिला घर से निकली 
अरे अभी तक तुम दोनों भाई यहीं पर हो चलो जल्दी नाट्शाला चलने की तैयारी करो अन्यथा अपना समझ लेना... 
मोची ने बताया यह हमारी माँ हैं जो हमारी गुरु, हमारी प्रेरणा, हमारा आधार है इन्होंने ही हम सबको गढ़ा है संस्कारित किया है 
अब तक यात्री का जूता दुरुस्त हो चुका था उसने मोची को पारिश्रमिक देना चाहा तो मोची ने कहा आज आप हमारे मेहमान है, चलिए चलना चाहें तो आप भी हमारे साथ नाट्शाला चलिए और हमारा गीत संगीत भी सुनिए 
©️Rajhansraju 

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यह कथा ऋग्वेद के इस श्लोक को अच्छी तरह समझने के लिए है, जो मूलतः इस प्रकार है 
ऋग्वेद - 9, 112
कारुरहं ततोभिषगुपल प्रक्षिणी नना ।
नानाधियो वसूयवोऽनु गा इव तस्थिमेन्द्रायेन्द्रो परिस्रव।।
मैं कवि हूँ। मेरा पिता वैद्य है तथा मेरी माता अन्न पीसने वाली है। साधन भिन्न है परन्तु सभी धन की कामना करते हैं।
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वेद वाक्य

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महावाक्य से उपनिषद उन वाक्यो का निर्देश है जो स्वरूप में लघु हैं, परन्तु बहुत गहन विचार समाहित किये हुए है। प्रमुख उपनिषदों में से निम्नलिखित वाक्यो को महावाक्य माना जाता है -

अहं ब्रह्मास्मि - "मैं ब्रह्म हूँ" ( बृहदारण्यक उपनिषद १/४/१० - यजुर्वेद)

तत्त्वमसि - "वह ब्रह्म तू है" ( छान्दोग्य उपनिषद ६/८/७- सामवेद )

अयम् आत्मा ब्रह्म - "यह आत्मा ब्रह्म है" ( माण्डूक्य उपनिषद १/२ - अथर्ववेद )

प्रज्ञानं ब्रह्म - "वह प्रज्ञान ही ब्रह्म है" ( ऐतरेय उपनिषद १/२ - ऋग्वेद)

प्रत्येक वेद से एक ही महावाक्य लेने पर उपरोक्त चार ही महावाक्य माने गए हैं, किन्तु वेद ऐसे कई गूढ़ वाक्यों से भरे पड़े हैं इसलिए इनके अलावा भी कई वाक्यों को महावाक्य या उनके समकक्ष माना गया है।[1]

सर्वं खल्विदं ब्रह्मम् - "सब ब्रह्म ही है" ( छान्दोग्य उपनिषद ३/१४/१- सामवेद )

उपनिषद के यह महावाक्य निराकार ब्रह्म और उसकी सर्वव्यापकता का परिचय देते हैं। यह महावाक्य उद्घोष करते हैं कि मनुष्य देह, इंद्रिय और मन का संघटन मात्र नहीं है, बल्कि वह सुख-दुख, जन्म-मरण से परे दिव्यस्वरूप है, आत्मस्वरूप है। आत्मभाव से मनुष्य जगत का द्रष्टा भी है और दृश्य भी। जहां-जहां ईश्वर की सृष्टि का आलोक व विस्तार है, वहीं-वहीं उसकी पहुंच है। वह परमात्मा का अंशीभूत आत्मा है। यही जीवन का चरम-परम पुरुषार्थ है।

उपनिषद के ये महावाक्य मानव जाति के लिए महाप्राण, महोषधि एवं संजीवनी बूटी के समान हैं, जिन्हें हृदयंगम कर मनुष्य आत्मस्थ हो सकता है।

परिचय

कृष्ण यजुर्वेदीय उपनिषद "शुकरहस्योपनिषद " में महर्षि व्यास के आग्रह पर भगवान शिव उनके पुत्र शुकदेव को चार महावाक्यों का उपदेश 'ब्रह्म रहस्य' के रूप में देते हैं। वे चार महावाक्य ये हैं-

ॐ प्रज्ञानं ब्रह्म,

ॐ अहं ब्रह्मास्मि,

ॐ तत्त्वमसि, और

ॐ अयमात्मा ब्रह्म

प्रज्ञानं ब्रह्म

इस महावाक्य का अर्थ है- 'प्रकट ज्ञान ब्रह्म है।' वह ज्ञान-स्वरूप ब्रह्म जानने योग्य है और ज्ञान गम्यता से परे भी है। वह विशुद्ध-रूप, बुद्धि-रूप, मुक्त-रूप और अविनाशी रूप है। वही सत्य, ज्ञान और सच्चिदानन्द-स्वरूप ध्यान करने योग्य है। उस महातेजस्वी देव का ध्यान करके ही हम 'मोक्ष' को प्राप्त कर सकते हैं। वह परमात्मा सभी प्राणियों में जीव-रूप में विद्यमान है। वह सर्वत्र अखण्ड विग्रह-रूप है। वह हमारे चित और अहंकार पर सदैव नियन्त्रण करने वाला है। जिसके द्वारा प्राणी देखता, सुनता, सूंघता, बोलता और स्वाद-अस्वाद का अनुभव करता है, वह प्रज्ञान है। वह सभी में समाया हुआ है। वही 'ब्रह्म' है।

अहं ब्रह्माऽस्मि

इस महावाक्य का अर्थ है- 'मैं ब्रह्म हूं।' यहाँ 'अस्मि' शब्द से ब्रह्म और जीव की एकता का बोध होता है। जब जीव परमात्मा का अनुभव कर लेता है, तब वह उसी का रूप हो जाता है। दोनों के मध्य का द्वैत भाव नष्ट हो जाता है। उसी समय वह 'अहं ब्रह्मास्मि' कह उठता है।

तत्त्वमसि

इस महावाक्य का अर्थ है-'वह ब्रह्म तुम्हीं हो।' सृष्टि के जन्म से पूर्व, द्वैत के अस्तित्त्व से रहित, नाम और रूप से रहित, एक मात्र सत्य-स्वरूप, अद्वितीय 'ब्रह्म' ही था। वही ब्रह्म आज भी विद्यमान है। उसी ब्रह्म को 'तत्त्वमसि' कहा गया है। वह शरीर और इन्द्रियों में रहते हुए भी, उनसे परे है। आत्मा में उसका अंश मात्र है। उसी से उसका अनुभव होता है, किन्तु वह अंश परमात्मा नहीं है। वह उससे दूर है। वह सम्पूर्ण जगत में प्रतिभासित होते हुए भी उससे दूर है।

अयमात्मा ब्रह्म

इस महावाक्य का अर्थ है- 'यह आत्मा ब्रह्म है।' उस स्वप्रकाशित परोक्ष (प्रत्यक्ष शरीर से परे) तत्त्व को 'अयं' पद के द्वारा प्रतिपादित किया गया है। अहंकार से लेकर शरीर तक को जीवित रखने वाली अप्रत्यक्ष शक्ति ही 'आत्मा' है। वह आत्मा ही परब्रह्म के रूप में समस्त प्राणियों में विद्यमान है। सम्पूर्ण चर-अचर जगत में तत्त्व-रूप में वह संव्याप्त है। वही ब्रह्म है। वही आत्मतत्त्व के रूप में स्वयं प्रकाशित 'आत्मतत्त्व' है।

अन्त में भगवान शिव शुकदेव से कहते हैं- 'हे शुकदेव ! इस सच्चिदानन्द- स्वरूप 'ब्रह्म' को, जो तप और ध्यान द्वारा प्राप्त करता है, वह जीवन-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है।'

भगवान शिव के उपदेश को सुनकर मुनि शुकदेव सम्पूर्ण जगत के स्वरूप परमेश्वर में तन्मय होकर विरक्त हो गये। उन्होंने भगवान को प्रणाम किया और सम्पूर्ण प्ररिग्रह का त्याग करके तपोवन की ओर चले गये।

धनतेरस 
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वयं स्याम पतयो रयीणाम्
ऋग्वेद 10/12/10
हम धन-ऐश्वर्यों के स्वामी होवें
रयि=धन= विद्या-धन, यश-धन, अर्थ-धन, तप-धन, पशु-धन, वीर्य, पुष्टि, सोम, श्री, ऐश्वर्य, चक्रवर्त्ति राज्य आदि धन, सुवर्ण के स्वामी हों।
धनतेरस बर्तन व गहने खरीदने का दिन नही|
अपितु वैद्य धन्वंतरि जयंती है! जिन्होंने दुनिया को आयुर्वेद का ज्ञान दिया: कुछ ने बिजनेस की नियत से जनता को गुमराह कर धनवंतरी शब्द का अपभ्रंश करके धनतेरस कर दिया. धनतेरस वास्तव में ऋषि धन्वंतरि का जन्मदिन है, जो आयुर्वेद के जनक है, किन्तु गुलामी काल मे हम इस दिन का वास्तविक अर्थ भूल गये और इसे वस्तुएं खरीदने का दिन बना दिया। ऋषि कहते हैं आयुर्वेद का पालन करो तो तुम्हारे जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि, आरोग्य, सुख, वैभव, अक्षय, यश, अपार धन बना रहेंगा!! इन्हीं कामनाओं के साथ मनाये जाने वाले " धनतेरस (धन्वंतरि ) पर्व, आयुर्वेद के जनक, आरोग्य के देवता, भगवान " धन्वंतरि जी के जन्मदिवस की सभी मित्र, इष्टजनों को अनंत शुभकामनायें
धन-तेरस(त्रयोदशी) की शुभकामनायें ।


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अयोध्या की यादें
*केरल का अयोध्या से रिश्ता*
(C/P)
एक हिंदू के रूप में दिलचस्प और ताज़ा विवरण। 
कुछ जानकारी जो हमें कभी नहीं पता थी. प्रत्येक हिंदू के लिए जानने योग्य पोस्ट। 
आइए उस नायक के.के.नायर को याद करें जो हमें अयोध्या में श्री राम की भूमि दिलाने के लिए जिम्मेदार थे।

 कंडांगलम करुणाकरण नायर जिन्हें के.के.नायर के नाम से जाना जाता है, का जन्म 7 सितंबर, 1907 को केरल के अलाप्पुझा के गुटनकाडु नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था। भारत की आजादी से पहले, वह इंग्लैंड गए और 21 साल की उम्र में बैरिस्टर बन गए और घर लौटने से पहले आईसीएस परीक्षा में सफल हुए। उन्होंने कुछ समय तक केरल में काम किया और अपनी ईमानदारी और बहादुरी के लिए जाने जाते थे और लोगों के सेवक के रूप में ख्याति अर्जित की। 1945 में वह एक सिविल सेवक के रूप में उत्तर प्रदेश राज्य में शामिल हुए। उन्होंने विभिन्न पदों पर कार्य किया और 1 जून, 1949 को फैजाबाद के उपायुक्त और जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त किये गये। 

बालक राम विग्रहम के अचानक अयोध्या में प्रकट होने की शिकायत के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने राज्य सरकार को जांच कर रिपोर्ट देने का आदेश दिया था. राज्य के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने के.के.नायर से वहां जाकर पूछताछ करने का अनुरोध किया. नायर ने अपने अधीनस्थ श्री गुरुदत्त सिंह को जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा।

सिंह ने वहां जाकर केके नायर को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी. उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदू अयोध्या को भगवान राम (राम लला) के जन्मस्थान के रूप में पूजते हैं। लेकिन मुसलमान वहां मस्जिद होने का दावा कर समस्याएं पैदा कर रहे थे. उनकी रिपोर्ट में दोहराया गया कि यह एक हिंदू मंदिर था। उन्होंने सुझाव दिया कि वहां एक बड़ा मंदिर बनाया जाना चाहिए।

 उनकी रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार को इसके लिए ज़मीन आवंटित करनी चाहिए और मुसलमानों के उस क्षेत्र में जाने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए. उस रिपोर्ट के आधार पर नायर ने मुसलमानों को मंदिर के 500 मीटर के दायरे में जाने पर रोक लगाने का आदेश जारी किया. (गौरतलब है कि आज तक न तो सरकार और न ही कोर्ट इस प्रतिबंध को हटा पाई है)। यह सुनकर नेहरू घबरा गये और क्रोधित हो गये। वह चाहते थे कि राज्य सरकार इलाके से हिंदुओं को तत्काल बाहर निकालने और रामलला को हटाने का आदेश दे। मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने नायर को तुरंत हिंदुओं को हटाने और राम लला की मूर्ति हटाने का आदेश दिया। लेकिन नायर ने आदेश लागू करने से इनकार कर दिया. वहीं उन्होंने एक और आदेश जारी करते हुए कहा कि रामलला की रोजाना पूजा की जाए. आदेश में यह भी कहा गया कि सरकार को पूजा का खर्च और पूजा कराने वाले पुजारी का वेतन वहन करना चाहिए।
 इस आदेश से घबराकर नेहरू ने तुरंत नायर को नौकरी से हटाने का आदेश दे दिया.

 बर्खास्त किये जाने पर, नायर इलाहाबाद न्यायालय में गये और अपनी बर्खास्तगी के नेहरू आदेश के विरुद्ध स्वयं सफलतापूर्वक बहस की। कोर्ट ने आदेश दिया कि नायर को बहाल किया जाए और उसी स्थान पर काम करने दिया जाए. कोर्ट का आदेश नेहरू के चेहरे पर कालिख पोतने जैसा था. 
यह आदेश सुनकर अयोध्यावासियों ने नायर से चुनाव लड़ने का आग्रह किया। लेकिन नायर ने बताया कि एक सरकारी कर्मचारी होने के नाते वह चुनाव में खड़े नहीं हो सकते। अयोध्यावासी चाहते थे कि नायर की पत्नी चुनाव लड़े. जनता के अनुरोध को स्वीकार करते हुए श्रीमती शकुन्तला नायर उत्तर प्रदेश के प्रथम विधान सभा चुनाव के दौरान अयोध्या में प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरीं। उस समय पूरे देश में कांग्रेस के उम्मीदवारों की जीत हुई थी.

 लेकिन अकेले अयोध्या में, नायर की पत्नी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस उम्मीदवार कई हजार के अंतर से हार गए। श्रीमती शकुन्तला नायर 1952 में जनसंघ से जुड़ीं और संगठन का विकास करने लगीं। इससे हैरान नेहरू और कांग्रेस ने नायर पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में काम करना शुरू कर दिया। वर्ष 1962 में जब संसद के चुनावों की घोषणा हुई तो लोग नायर और उनकी पत्नी को चुनाव लड़ने के लिए मनाने में सफल रहे। वे चाहते थे कि वे नेहरू के सामने अयोध्या के बारे में बोलें। लोगों ने नायर दंपत्ति को बहराइच और कैसरगंज दोनों सीटों पर जीत दिलाने में मदद की. यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी. और एक सुखद आश्चर्य के रूप में, यहां तक ​​कि *उनके ड्राइवर को भी फैसलाबाद निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था।*

बाद में, इंदिरा शासन ने देश में आपातकाल लागू कर दिया और दंपति को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। लेकिन उनकी गिरफ़्तारी से अयोध्या में भारी हंगामा हुआ और डरी हुई सरकार ने उन्हें जेल से रिहा कर दिया। दंपति अयोध्या लौट आए और अपना सार्वजनिक कार्य जारी रखा। एक-दो बार को छोड़कर भाजपा हमेशा अयोध्या से विधानसभा और संसदीय चुनाव जीतती रही है। आजादी के बाद नायर अयोध्या मामले से निपटने वाले पहले व्यक्ति थे। यह पूरी तरह से उनके द्वारा नियंत्रित किया गया था। और अब भी हिंदू विरोधी तत्व एक अधिकारी के तौर पर उनके द्वारा जारी आदेशों को बदल नहीं पाए हैं. नायर द्वारा जारी आदेश के आधार पर पूजा और रामलला के दर्शन अब भी जारी हैं. 
1976 में, श्री नायर अपने गृहनगर लौटना चाहते थे। लेकिन लोगों ने उसे जाने नहीं दिया. हालाँकि, नायर ने लोगों को यह कहते हुए अलविदा कहा कि वह अपने अंतिम दिनों में अपने गृहनगर में रहना चाहते थे। नायर ने *7 सितम्बर 1977* को अपने गृह नगर में श्री रामचन्द्र मूर्ति के चरण कमलों में आत्मसमर्पण कर दिया। उनकी मृत्यु की खबर सुनकर अयोध्यावासियों के आंसू छलक पड़े। उनकी अस्थियाँ लेने के लिए एक समूह केरल गया 🙏 अस्थियों का बड़े आदर के साथ स्वागत किया गया। 

उन्हें एक सुसज्जित रथ में ले जाया गया और अयोध्या के पास सरयू नदी में विसर्जित कर दिया गया जहाँ भगवान राम प्रतिदिन स्नान करते थे और सूर्य की पूजा करते थे 🙏 नायर के प्रयासों के कारण ही हम अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि पर पूजा कर पा रहे हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि उन्हें *अयोध्या के लोग एक दिव्य व्यक्ति* मानते हैं। 🤔 *श्री के.के.नायर की महिमा, जिन्होंने अकेले ही आज तक श्री राम लला की पूजा करने के लिए हिंदुओं के अधिकार की रक्षा की है, ।🙏 *विश्व हिंदू परिषद* ने उनके पैतृक गांव में जमीन खरीदी है और उनके लिए एक स्मारक बनवाया है। गौरतलब है कि के.के. नायर के नाम से शुरू किया गया ट्रस्ट सिविल सेवा परीक्षा में बैठने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति और प्रशिक्षण प्रदान करता है। मुझे यह स्वीकार करने में शर्म आती है कि मैंने इस जोड़े के बारे में कभी नहीं सुना था 😔🙏 हम सदैव उनके ऋणी रहेंगे 🙏
जय सियाराम🙏🙏🚩🚩
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Comments

  1. यथार्थ अभिव्यक्ति

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  2. अच्छे शब्दों के साथ खुद को व्यक्त करने कि कोशिश करते रहना चाहिए

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  3. जिस तरह साहित्य समाज का दर्पण है उसी सिनेमा साहित्य की आधुनिक अभिव्यक्ति का शानदार माध्यम है जिसे अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए

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