Cinema and society
हमारा सिनेमा और समाज
वैसे समाज में सभी चीजें एक साथ चलती रहती है और साहित्य, सिनेमा में भी एक साथ सभी के लिए कुछ ना कुछ उपलब्ध होता है। किसी के लिए भी दर्शक, श्रोता, पाठक कभी कम नहीं होते और न वहां पैसों की कमी होती है बस अपनी बात, अपने कंटेंट को सही ढंग से परोसना आना चाहिए अखबार और किताब अभी भी छप रहे हैं। जापान हो या अमेरिका सभी जगह उनकी छपाई और गुणवत्ता निरंतर बेहतर हुई है या यूं कहें कि पहले से ज्यादा काम हो रहा है क्योंकि कागज और स्याही की खुशबू लोगों को कागज के करीब ले आती है इसमें कोई संदेह नहीं है जहां वह कुछ लिखता-पढ़ता, हाँ सबसे बड़ी बात वह छुअन महसूस करता है।
हमारी फिल्में किस तरह की बातें, किस तरह से कह रही हैं यह समझना हो तो थोड़ा सा इसके इतिहास और अर्थशास्त्र को देखने समझने की आवश्यकता है हमारा जो पहले का सिनेमा था, वह अब गांव से शहर आ चुका है, डाकू अब माफिया बन चुका है, खैनी रगड़ता हुआ जो विलेन था, अब वह नारकोटिक्स के बिजनेस में है और अब वह घोड़े से नहीं चलता, उसके पास अपना जेट है, धोती कुर्ता से यह डिजाइनर सूट की यात्रा है, जहां कॉस्मोपॉलिटन होने और ग्लोबल मार्केट में भारत के क्रिएटर भी पैसा कमा सकते हैं इसकी समझ उनमें आ चुकी है और इसी तरफ हम आगे बढ़ रहे हैं या फिर यूँ कहें कि उसी के संकेत अब दिखाई पड़ने लगे हैं और हॉलीवुड के इतर कुछ नए ड्रेसिंग सेंस, गेटअप, भाषा, रीति-रिवाज की रेसिपी के साथ कहानियों को परोसने और कुछ अनोखे और नएपन के साथ नए चेहरे को देखने के लिए दुनिया आतुर है क्योंकि यही हमारी धरोहर, आश्चर्य और कौतूहल पैदा करती हैं, यह बाकी दुनिया के लिए एकदम अनोखी है। जो लोगों को एक नई दुनिया में ले जाने के लिए काफी है, अभी तक हॉलीवुड की चीजें अनोखी और नई लगती थी पर न्यू मीडियम ( Internet) में इनका इतना अतिरेक है कि दुनिया के सामने कुछ दिखाने और बताने के लिए जैसे बचा ही नहीं है और अब हमें नई कहानी चाहिए नए संदर्भ चाहिए, नए सेटअप और गेटअप चाहिए, तो वही पुरानी गन फाइट, शांत विलेन उतना अच्छा नहीं लगता, कूल विलेन अब बोर करने लगा है, तो वहीं भारत की जो सांस्कृतिक विविधता है, जिसमें पंजाब, बिहार, बंगाल, कश्मीर, चंबल, हरियाणा, पूर्वांचल, कोयलांचल, बुंदेलखंड, दंडकारण्य, पूर्वोत्तर और फिर दक्षिण में तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश जैसे राज्य कुछ नयेपन के जायके के साथ लोगों के बीच में नजर आते हैं अब देखने और दिखाने के लिए हमारे पास शानदार जादू-टोना, भूत-प्रेत, देवी-देवता, संगीत, वाद्य यंत्र, देसी करतब है इसी को थोड़ा सा और मसाला लगाकर दुनिया के सामने परोसना है और अपने बेचने की सामर्थ्य को बेहतर बनाने और पहचानने की जरूरत है।
अब देखिए पंजाब का माफिया, हरियाणा का माफिया और उसमें भी हिंदू माफिया, ब्राह्मण माफिया, मुस्लिम माफिया, सिख माफिया। सोचिए जब यह जातीय, धार्मिक पहचान के साथ माफिया को प्रस्तुत किया जाएगा तो उसका गेटअप, उसका घर, उसका खानपान, उसके डायलॉग, उसकी भाषा और फिर मरता-मारता, कुटता-कूटता हीरो, विलेन की जरूरत खत्म कर देता है। नए अंदाज में कहानी कही जा रही है और आप जो भी फिल्म देख रहे हो अब उसके कथानक को बदलने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी है बस प्रांत भाषा और धर्म थोड़ा सा चेंज कर देना है, मतलब मेकओवर कर देना है अब वही कहानी नए अंदाज में, टुकड़े टुकड़े में न जाने कहाँ कहाँ से क्या क्या मसाला मिलाकर शोले बन जाती है वहीं से एक टुकड़ा जानवर बन गयी और अब एनिमल के वर्जन में आ चुकी है। चंद कहानियां अलग-अलग लोग अनगिनत तरीके से कह रहे हैं और इसी का नाम क्रीएटविटी है।
हम पूरी दुनिया और अपने लोगों कि जो कुंठित मानसिकता की बीमारी है उसकी रेसिपी अच्छे से परोस सकते हैं या यूँ कहिए उसी मानसिकता का अच्छा दोहन कर सकते हैं सभी को पावर चाहिए, पैसा चाहिए और वह भी बहुत जल्दी चाहिए। मेहनत और पढ़ाई करके काबिल बनने का टाइम किसके पास है? किताबें कौन पढ़ना चाहता है? यह रात दिन की मेहनत भला क्यों करे? बस इंस्टेंट फास्ट फूड, जंक जैसा चाहिए और पावर का शोआफ भी करना है मेरे पास गन है, मेरे पास गाड़ी है, मेरे पास यह है, मेरे पास वह है और इसी के शो बिजनेस का नाम ग्रैंड सिनेमा है, जहाँ ग्रैंड सेरेमनी है, यहाँ गरीबी-अभाव को भी शानदार तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, इसको भी सेलीब्रेट किया जाता है, फलाने गरीबी से मर गया यह दुनिया के लिए बड़ी खबर है, जबकि जो खबर बना रहे थे उस वक्त उसके लिए कुछ कर सकते थे।
वह बड़ा आदमी ऐसा करता है, वैसा करता है तो उसका एक हल्का सा, छोटा सा नकल, हम भी कर सकते हैं, वह भी बिना अक्ल के और वही ट्रेंड फॉलो होने लगता है जो बहुत अच्छा है व्यापार और व्यापारी के लिए।
जबकि लोगों का सरोकार इससे दूर-दूर तक नहीं है। खैर अब महिलाओं पर आते हैं जिनके बारे में हम लगातार चिंतित रहते हैं। नारी विमर्श, नारी अस्मिता सारी बातें कहां टिकती हैं? कौन कह रहा है? और क्यों कह रहा है? यह सवाल भी लाजमी है तो वह अब अबला, दबी-कुचली नहीं है, वह किचन से बाहर निकल चुकी है, साड़ी भी उसने मौके और दस्तूर, वही फंक्शन के लिए संभाल के रख दिया है। अब उसे डाकू उठाकर नहीं ले जाते, ठाकुर कमजोर हो गया है, उसकी बुरी नजर बची ही नहीं है, उसकी आंखों पर एक मोटा चश्मा लग गया है। मंदिर का पुजारी नजर नहीं आता, मंदिर दिख जाए तो बड़ी बात है और वह झूठा मक्कार पुजारी न जाने कहां चला गया। शॉपिंग ऑनलाइन होने लगी है और बनिया भी गायब हो गया है जो शातिर हुआ करता था।
यह सारे चरित्र गरीब की जवान बेटी पर घात लगाए रहते थे जो कि अब शादी के लायक हो गई है और कैसे भी करके उसे अपने हवस का शिकार बनाते थे फिर हीरो जो बेचारा ही होता था गांव का सीधा-साधा भोला भाला लड़का, जो कि बेरोजगार है पढ़ा लिखा है वही बेचारा अपना नायक हुआ करता था। जिसे आगे चलकर लड़ना है, हथियार उठना है, उसे ही सबकुछ बदलना है , रोते गाते पिटते हुए और पूरी कहानी में, हीरोइन, हीरो के पास कैसे भी करके पहुंच ही जाती है और हीरो की छेड़खानी या बदमाशियां उसका प्यार और अधिकार समझा जाता है, वहीं जो लल्लू जैसा विलेन या उसका बेटा है, उसकी हीरो वाली हरकतों को गलत माना जाता है और हीरो हिरोइन के मिलते ही हैप्पी एंडिंग हो जाती है।
पर बहन! हमेशा बलात्कार का शिकार होती थी उसके पास करने को कुछ नहीं रहता था समाज का डर और विलेन के अत्याचार से अंततः आत्महत्या ही कर लेती थी या मार दी जाती थी पर अब अच्छा है वह बहन और हीरोइन दोनों इस मोड से बाहर निकल चुकी हैं और अपना हीरो भी अब बेचारा नहीं है हमारा नायक इस समय काबिल हो गया है उसने कॉमेडियन को ही नहीं विलेयन की जरूरत को भी कहानी से खत्म कर दिया है अब अंतर करना मुश्किल हो गया है कि आखिर जो कहानी कही जा रही है उसमें विलेन कौन है यह तो हीरो है।
अब कहानियों में विलेन नहीं होता विलेन जैसा लगता जरूर है लेकिन असल में वही हीरो है जो विलेन है अब अपना हीरो है, वह क्या खतरनाक आदमी है... उसका डायलॉग, उसका पहनावा, उसकी स्टाइल और जो हीरोइन है, वह भी कम नहीं है, अब वह अपनी पसंद से, अपनी इच्छा से विलेन के साथ है, अरे मतलब वही हीरो, जिसे बुरा माना जाता था, वही उसका प्यार है क्योंकि उसके पास, पैसा और पावर है और अपनी जो हीरोइन है पैसा और पावर के साथ है क्योंकि वह सब कुछ कर सकता है और उसे कहानी में विलेन भी नहीं चाहिए कहानी क्योंकि हमारा हीरो ही विलेन है अब कहानी कुछ इस तरह से कहीं जा रही है।
तो भाई अपना समाज इतना बदल गया है और हमें पता ही नहीं चला।
हालांकि सिनेमैटिक फ्रीडम की जो बात है वह ठीक भी है कि समाज में जो कुछ है उसको कहा जाए थोड़ा सा बढ़ा चढ़ा कर लार्जर दैन लाइफ, तो हमारा हीरो जो विलेन बन गया है वह भी लार्जर दैन लाइफ हो गया है उसको स्टाइल से मारते-मरते और काटते हुए देखना बीमार लोगों को बहुत अच्छा लगता है और वह जो इस बात को सबसे बेहतर ढंग से समझता है वह आदमी फिल्म का निर्माता है जिसकी जेब से ही सारा पैसा आता-जाता है उसी ने सबको एक जगह इकठ्ठा किया है निर्देशक, लेखक, हीरो, हिरोइन और लोग जिन्हें दर्शक कहते हैं तालियां बजा रहे हैं हलांकि उन्होंने इससे कुछ सीखा, हासिल किया, उन्हें पता ही नहीं चला, तो आपने जल्द ही क्या कोई फिल्म देखी और उसे समझने के लिए थोड़ी बहुत अक्ल लगाने की जरूरत पड़ी कि नहीं या फिर क्यों देखी?? सर पीट रहे हैं??
खैर जो भी हो पैसा और समय आपने लगाया है तो इस वजह से भी खुद से कुछ सवाल करने चाहिए जैसे -
क्या आप अपने बेटे-बेटियों को यह वाला हीरो-हीरोइन जैसा बनाना चाहते हैं या फिर अपने समाज को अपने लोगों को इस तरह से देखना चाहते हैं तो इसका जवाब अपने तक ही रखिए क्योंकि... सच तो हम सब जानते समझते हैं क्या होना चाहिए यह भी सबको पता है.. सभी को ढ़ेरों शुभकामनाएं..
©️Rajhansraju
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मोची
वेद वाक्य
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महावाक्य से उपनिषद उन वाक्यो का निर्देश है जो स्वरूप में लघु हैं, परन्तु बहुत गहन विचार समाहित किये हुए है। प्रमुख उपनिषदों में से निम्नलिखित वाक्यो को महावाक्य माना जाता है -
अहं ब्रह्मास्मि - "मैं ब्रह्म हूँ" ( बृहदारण्यक उपनिषद १/४/१० - यजुर्वेद)
तत्त्वमसि - "वह ब्रह्म तू है" ( छान्दोग्य उपनिषद ६/८/७- सामवेद )
अयम् आत्मा ब्रह्म - "यह आत्मा ब्रह्म है" ( माण्डूक्य उपनिषद १/२ - अथर्ववेद )
प्रज्ञानं ब्रह्म - "वह प्रज्ञान ही ब्रह्म है" ( ऐतरेय उपनिषद १/२ - ऋग्वेद)
प्रत्येक वेद से एक ही महावाक्य लेने पर उपरोक्त चार ही महावाक्य माने गए हैं, किन्तु वेद ऐसे कई गूढ़ वाक्यों से भरे पड़े हैं इसलिए इनके अलावा भी कई वाक्यों को महावाक्य या उनके समकक्ष माना गया है।[1]
सर्वं खल्विदं ब्रह्मम् - "सब ब्रह्म ही है" ( छान्दोग्य उपनिषद ३/१४/१- सामवेद )
उपनिषद के यह महावाक्य निराकार ब्रह्म और उसकी सर्वव्यापकता का परिचय देते हैं। यह महावाक्य उद्घोष करते हैं कि मनुष्य देह, इंद्रिय और मन का संघटन मात्र नहीं है, बल्कि वह सुख-दुख, जन्म-मरण से परे दिव्यस्वरूप है, आत्मस्वरूप है। आत्मभाव से मनुष्य जगत का द्रष्टा भी है और दृश्य भी। जहां-जहां ईश्वर की सृष्टि का आलोक व विस्तार है, वहीं-वहीं उसकी पहुंच है। वह परमात्मा का अंशीभूत आत्मा है। यही जीवन का चरम-परम पुरुषार्थ है।
उपनिषद के ये महावाक्य मानव जाति के लिए महाप्राण, महोषधि एवं संजीवनी बूटी के समान हैं, जिन्हें हृदयंगम कर मनुष्य आत्मस्थ हो सकता है।
परिचय
कृष्ण यजुर्वेदीय उपनिषद "शुकरहस्योपनिषद " में महर्षि व्यास के आग्रह पर भगवान शिव उनके पुत्र शुकदेव को चार महावाक्यों का उपदेश 'ब्रह्म रहस्य' के रूप में देते हैं। वे चार महावाक्य ये हैं-
ॐ प्रज्ञानं ब्रह्म,
ॐ अहं ब्रह्मास्मि,
ॐ तत्त्वमसि, और
ॐ अयमात्मा ब्रह्म
प्रज्ञानं ब्रह्म
इस महावाक्य का अर्थ है- 'प्रकट ज्ञान ब्रह्म है।' वह ज्ञान-स्वरूप ब्रह्म जानने योग्य है और ज्ञान गम्यता से परे भी है। वह विशुद्ध-रूप, बुद्धि-रूप, मुक्त-रूप और अविनाशी रूप है। वही सत्य, ज्ञान और सच्चिदानन्द-स्वरूप ध्यान करने योग्य है। उस महातेजस्वी देव का ध्यान करके ही हम 'मोक्ष' को प्राप्त कर सकते हैं। वह परमात्मा सभी प्राणियों में जीव-रूप में विद्यमान है। वह सर्वत्र अखण्ड विग्रह-रूप है। वह हमारे चित और अहंकार पर सदैव नियन्त्रण करने वाला है। जिसके द्वारा प्राणी देखता, सुनता, सूंघता, बोलता और स्वाद-अस्वाद का अनुभव करता है, वह प्रज्ञान है। वह सभी में समाया हुआ है। वही 'ब्रह्म' है।
अहं ब्रह्माऽस्मि
इस महावाक्य का अर्थ है- 'मैं ब्रह्म हूं।' यहाँ 'अस्मि' शब्द से ब्रह्म और जीव की एकता का बोध होता है। जब जीव परमात्मा का अनुभव कर लेता है, तब वह उसी का रूप हो जाता है। दोनों के मध्य का द्वैत भाव नष्ट हो जाता है। उसी समय वह 'अहं ब्रह्मास्मि' कह उठता है।
तत्त्वमसि
इस महावाक्य का अर्थ है-'वह ब्रह्म तुम्हीं हो।' सृष्टि के जन्म से पूर्व, द्वैत के अस्तित्त्व से रहित, नाम और रूप से रहित, एक मात्र सत्य-स्वरूप, अद्वितीय 'ब्रह्म' ही था। वही ब्रह्म आज भी विद्यमान है। उसी ब्रह्म को 'तत्त्वमसि' कहा गया है। वह शरीर और इन्द्रियों में रहते हुए भी, उनसे परे है। आत्मा में उसका अंश मात्र है। उसी से उसका अनुभव होता है, किन्तु वह अंश परमात्मा नहीं है। वह उससे दूर है। वह सम्पूर्ण जगत में प्रतिभासित होते हुए भी उससे दूर है।
अयमात्मा ब्रह्म
इस महावाक्य का अर्थ है- 'यह आत्मा ब्रह्म है।' उस स्वप्रकाशित परोक्ष (प्रत्यक्ष शरीर से परे) तत्त्व को 'अयं' पद के द्वारा प्रतिपादित किया गया है। अहंकार से लेकर शरीर तक को जीवित रखने वाली अप्रत्यक्ष शक्ति ही 'आत्मा' है। वह आत्मा ही परब्रह्म के रूप में समस्त प्राणियों में विद्यमान है। सम्पूर्ण चर-अचर जगत में तत्त्व-रूप में वह संव्याप्त है। वही ब्रह्म है। वही आत्मतत्त्व के रूप में स्वयं प्रकाशित 'आत्मतत्त्व' है।
अन्त में भगवान शिव शुकदेव से कहते हैं- 'हे शुकदेव ! इस सच्चिदानन्द- स्वरूप 'ब्रह्म' को, जो तप और ध्यान द्वारा प्राप्त करता है, वह जीवन-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है।'
भगवान शिव के उपदेश को सुनकर मुनि शुकदेव सम्पूर्ण जगत के स्वरूप परमेश्वर में तन्मय होकर विरक्त हो गये। उन्होंने भगवान को प्रणाम किया और सम्पूर्ण प्ररिग्रह का त्याग करके तपोवन की ओर चले गये।
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यथार्थ अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteअच्छे शब्दों के साथ खुद को व्यक्त करने कि कोशिश करते रहना चाहिए
ReplyDeleteजिस तरह साहित्य समाज का दर्पण है उसी सिनेमा साहित्य की आधुनिक अभिव्यक्ति का शानदार माध्यम है जिसे अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए
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