Yogdan

योगदान 

❤️❤️❤️

बिना शिकायत जो कर सकते हैं

बस उतना ही करना है 

बिना नाम पूछे, बिना बताए

पुराने कपड़े, बर्तन, जूते, चप्पल 

जो काम के नहीं तुम्हारे हैं 

कोई एक जगह तय कर लो 

जहाँ जरूरत मंद आते जाते हों 

वहीं रख देना है 

कबाड़ से मुक्त हो जाना है 

कोई एहसान नहीं किया तुमने 

यह ख्याल बहुत जरूरी है 

न फोटो लेनी है, न जिक्र करना है 

शर्त बस इतनी है, गुमनाम रहना है 

जो कर सकते हो, बस उतना ही करना है 

©️Rajhansraju 

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पुराना शहर 

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हर शहर हर शहर में 

एक पुराना शहर 

अब भी बरकरार है 

वहां वक्त 

न जाने कब से ठहरा हुआ है 

उसकी उम्र बहुत है 

मगर वह बूढ़ा नहीं होता 

पूरे शहर की पहचान 

उसी से बनती है 

अपने शहर को जानना हो तो 

पुराने शहर में जाना पड़ता है 

©️Rajhansraju 

 कोशिश

बहुत कुछ जैसा चाहते थे 

नहीं हुआ तो क्या हुआ 

तुम हो 

यही बहुत है 

हमारे लिए 

मेरी कोशिश जारी है 

मैंने हार नहीं मानी है 

लड़ रहा हूँ 

तुम्हारे लिए 

©️Rajhansraju 

दु:ख

जब जो नहीं है 

उसकी कमी 

हरदम खटकने लगे 

तब जो है 

उसकी कद्र नहीं रह जाती है 

वह दुख ढूंढने में माहिर है 

जो सारी खुशियों पर 

भारी पड़ जाती है

©️Rajhansraju 

थोड़ा वक्त चाहिए

तुम्हारे सामने 
कोई रो रहा हो तो
उसे रोकना मत
रो लेने दो
हो सके तो
उसके पास
चुपचाप
बैठ जाना
कुछ कहना नहीं है
क्योंकि शब्द
अपनी यात्रा पूरी कर चुके हैं
तुम्हें बस साथ होना है
नहीं तो
उसे अकेले छोड़ देना है
उसको उसके साथ
सभलने और संभालने के लिए
खुद को
थोड़ा वक्त चाहिए
©️Rajhansraju 

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मृत्यु 

जो जन्म लिया 

वह मरता है 

जिसकी शुरुआत हुई 

अंत तक पहुंचता है 

इसी बीच सब कुछ चलता रहता है 

मगर मौत के पहले भी लोग 

न जाने कैसे-कैसे 

कितनी बार मरते हैं 

इस देह की अपनी मियाद है 

जिसने जन्म लिया है 

जवान होता है बूढ़ा होता है 

बीमार होता है 

और भी बहुत कुछ 

मौत की वजह बनती है 

मगर कई बार मरने का सिलसिला 

कुछ लोगों का थमता नहीं है 

वह रोज मरना चाहते हैं 

और रोज मर जाते हैं 

सही गलत अच्छा बुरा 

जब देख नहीं पाता

वह हर आदमी की नजर में 

आहिस्ता-आहिस्ता मरता है 

यह आत्मा की जो बात होती है 

शायद किसी आदमी की पहचान होती है 

वह कैसा है 

वह इस आत्मा से पहचाना 

जाना जाता है 

क्योंकि दिखता तो सिर्फ देह है 

पर उसमें वह भी कुछ है 

जिससे वह पहचाना जाता है 

हम कैसे हैं अच्छे हैं बुरे हैं 

सिर्फ देह तक सीमित नहीं है 

देह कैसे बर्ताव करता है 

कैसे काम करता है 

क्या करना चाहिए 

कैसे होना चाहिए 

शायद इस देह में कोई है 

जो तय करता है 

वही उस आदमी की 

शख्सियत बन जाता है 

पहचान बन जाता है 

तुम कैसे हो अच्छे हो बुरे हो 

बेईमान हो सच्चे हो 

मतलब तुम्हारे होने की जो वजह है 

बस वही तुम्हारा व्यक्तित्व है

तुम ऐसे ही हो फिर 

उसके इधर-उधर 

जो नहीं होना चाहिए 

जिसे तुम करते हो 

जिसका प्रभाव न जाने कितने लोगों पर 

कैसे-कैसे पड़ता है 

फिर एक सिलसिला शुरू हो जाता है 

तुम जहां जितना होते हो 

जिससे जुड़े होते हो 

उसमें भी तुम मर जाते हो 

तुम पिता के रूप में मरते हो 

तुम पुत्र के रूप में मरते हो 

तुम भाई के रूप में मरते हो 

तुम दोस्त के रूप में मरते हो 

तुम्हारी जितनी पहचान होती है 

जो तुमसे जुड़ी होती है 

एक-एक करके रोज मरती है 

जो तुमने रिश्ता कमाया था 

इस जीवन में 

वह धीरे-धीरे मर जाता है 

हालांकि तुम्हारा देह अभी है 

तुम्हारे पास भी ढेर सारी वजह हैं 

जो बातें बता रहे हो कि ऐसा है 

ऐसे नहीं होना चाहिए 

वैसे नहीं होना चाहिए 

इसकी वजह यह है 

उसकी वजह वह है 

तुमने खुद पर गौर किया 

तुम जिंदा नहीं हो 

तुम सांस ले रहे हो 

तुम्हारी देह अभी सही सलामत है 

तुम ऐसे ही चल रहे हो 

लोगों को दिख रहे हो 

पर हकीकत में 

लोगों के अंदर तुम मर गए हो 

यह तुम्हारी मृत्यु एक दिन में नहीं हुई है

लगातार मरते रहने के लिए 

तुमने बहुत जतन किये हैं 

लोगों के हक मारे हैं 

एक आम आदमी जो तुमसे जुड़ा था 

तुम्हारे दर पर खड़ा था 

जो बहुत जरूरतमंद था 

उसका हक तुमने ही मारा था 

तुम्हारा पुत्र तुम्हारी पत्नी

तुम्हारे घर वाले 

जो तुम्हारे रिश्ते में 

तुमसे बंधे थे 

धीरे-धीरे तुमने हर रिश्ते को मारा था 

कोई तुम्हारा अपना था 

कोई पराया था 

जैसा कि तुम समझते थे 

मगर हकीकत में 

तुम खुद को मार रहे थे 

और यह देह भी 

तुम्हारी कब तक रहेगी 

कमजोर होगी बीमार होगी 

क्योंकि इसकी एक मियाद है 

जब मौत का इंतजार करने लग जाओ

तब मरना बहुत मुश्किल हो जाता है 

लेकिन लोगों के अंदर हर पल 

जब कोई मरने लगता है 

तो फिर इस देह के जिंदा रहने का

कोई अर्थ नहीं रह जाता 

इज्जत सम्मान 

और दूसरी बहुत सारी चीजें 

जो तुमसे जुड़ी हुई है 

अगर वह मर जाती है 

तो इस देह में जो तुम हो 

उसके होने का  

कोई अर्थ नहीं रह जाता है 

तो कोई जिंदा तभी तक है 

जब तक वह सम्मान के साथ जिंदा है 

सर ऊंचा कर सकता है 

फक्र कर सकता है कि वह है सही है 

कुछ तो अच्छा किया है 

फिर पाने और खोने का  

कोई अंत नहीं है 

यह तो अंतहीन सिलसिला है 

कुछ तो समझना होगा 

बस ऐसे ही रहना है 

यह करना है यही सही है 

अपने दुराग्रहों में जब तक फंसे रहोगे 

सच को भला कैसे देख और समझ पाओगे 

जो यात्रा है इसका भी तो अंत होगा 

मगर देह के बाद भी 

लोग जिंदा रहते हैं 

और देह के रहते भी न जाने 

कितने लोग कितनी बार मर जाते हैं 

तो तुम्हें कैसे जिंदा रहना है 

कैसे रहना है 

यह तो तुमको ही तय करना है 

तुम सिर्फ देह तक बने रहना चाहते हो 

रोज मरना चाहते हो 

या देह के परे जाकर 

जिंदा रहना चाहते हो 

यह निर्णय तुम्हारा है 

अब सोचो इस यात्रा में 

तुम किस तरह के यात्री हो 

किस तरह के मुसाफिरों के बीच रहते हो 

किस तरह के साधन में सवार हो 

वह तुम्हें कहां ले जा रहा है 

तुम कहां जाना चाहते हो 

इसका जवाब

किसी और को नहीं देना है 

सवाल जवाब सब तुम्हारा है

तुम्हीं से है

सब तुम्हारा है 

©️Rajhansraju

❤️❤️❤️



अपने-अपने राम

राम क्या हैं 
राम क्या नहीं है 
राम कहां है राम कहां नहीं है 
राम कैसे मिलेंगे किसको मिलेंगे 
यह बताने वाले 
अचानक से बहुत बढ़ गए हैं 
हां हमें मालूम है 
हम सबके अपने-अपने राम है 
राम को ढूंढने-पाने का जो प्रयास होता है 
उसमें शबरी और अहिल्या की तरह 
इंतजार करना पड़ता है 
राम आते हैं 
यह सत्य है 
राम को पाने का कोई एक रास्ता नहीं है 
कोई एक तरीका नहीं है 
लेकिन इन सारी बातों में 
राम हैं 
राम को पाया जा सकता है 
यह साबित हो जाता है 
पूरे समर्पण के साथ
बस धैर्य पूर्वक इंतजार करना है 
इस बात को तो 
सभी लोग स्वीकार करते हैं 
पर अमूर्त राम को 
देखने समझने की शक्ति 
और  कौशल 
भला कितने लोगों में हैं  
राम तक 
थोड़ी आसानी से पहुंच सके 
राम को थोड़ी सहजता से समझ सके 
इसके लिए अगर कुछ मूर्त हो जाए 
तो हर्ज क्या है 
फिर राम की 
अपनी स्थापित मान्यताएं हैं 
राम कैसे थे कहां पर थे 
उन्हें ऐसे भी मानते हैं तो 
कोई हर्ज नहीं है 
वैसे ही जैसे राम नहीं थे 
यह महज कथा है 
जो लोग ऐसा मानते हैं 
तो उसमें भी हर्ज नहीं है 
आखिर राम की ही तो बात हो रही है 
मेरे अपने राम को 
मैं ऐसे पा सकता हूं 
तो मेरे सामने वाले जो दूसरे हैं 
वह राम को अपने तरीके से 
वैसे ही मनाना चाहते हैं 
तो भला मैं कौन होता हूँ 
उनके राम के बीच में आने वाला 
जैसे वह मेरे राम के बीच में 
नहीं आ सकते 
वैसे ही मुझे भी हक नहीं है 
मैं उनके और उनके राम के बीच आऊं 
वह अयोध्या में एक बड़ा मंदिर बनाकर 
वह उन्हें पा लेना चाह रहा है 
उनकी महिमा और प्रतीक 
गढ़ लेना चाहता है 
वह निराकार को 
सरकार में देखना चाहता है 
वह ऊर्जा को प्रकट करना चाहता है 
वह अपनी भव्यता को 
राम में देखना चाहता है 
यह उसी आह्लाद का मूर्त रूप है 
अपने राम को माने 
अपने राम को देखें 
अपने राम को जाने
मूर्त अमूर्त सबमें वही है
जैसी दृष्टि वैसे राम
हम सबके अपने-अपने राम
©️Rajhansraju 
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Comments

  1. न फोटो लेनी है, न जिक्र करना है

    शर्त बस इतनी है, गुमनाम रहना है

    जो कर सकते हो, बस उतना ही करना है

    ©️Rajhansraju

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  2. राम को पाने का कोई एक रास्ता नहीं है
    कोई एक तरीका नहीं है
    लेकिन इन सारी बातों में
    राम हैं
    राम को पाया जा सकता है
    यह साबित हो जाता है

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  3. हुत कुछ जैसा चाहते थे
    नहीं हुआ तो क्या हुआ
    तुम हो यही बहुत है हमारे लिए
    मेरी कोशिश जारी है
    मैंने हार नहीं मानी है
    लड़ रहा हूँ
    तुम्हारे लिए
    ©️Rajhansraju

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  4. अमूर्त राम को
    देखने समझने की शक्ति
    और कौशल
    भला कितने लोगों में हैं
    राम तक
    थोड़ी आसानी से पहुंच सके
    राम को थोड़ी सहजता से समझ सके
    इसके लिए अगर कुछ मूर्त हो जाए
    तो हर्ज क्या है

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  5. तुम कहां जाना चाहते हो
    इसका जवाब
    किसी और को नहीं देना है
    सवाल जवाब सब तुम्हारा है
    तुम्हीं से है
    सब तुम्हारा है
    ©️Rajhansraju

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