तेरी गालियां
तुम्हारी तंग गलियों से गुजर कर
जब मैं पहुंचा
मुझे एहसास हुआ
तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी
मेरे घर तक आने में
क्योंकि मेरे घर का रास्ता
इसी तरह की गलियों से गुजरता है
मेरा घर भी ऐसा ही है
सब चीजें एक जगह
न जाने कितने सालों से
ऐसे ही दुरुस्त हैं
हम सबको
एक दूसरे की आदत हो गई है
कोई किसी को
बदलना नहीं चाहता
क्योंकि पहले खुद को
बदलना पड़ेगा
फिर कमबख्त कौन
यह सिलसिला शुरू करे
रोज बदल जाना
कोई अच्छी बात तो नहीं है
तुम न जाने कब
लौटकर आ जाओ
और हम वैसे न मिले
जैसा तुम छोड़कर गये थे
फिर हमें
तुम पहचानोगे कैसे
©️Rajhansraju
🌹🌹🌹🌹🌹
रिश्तेदार
****
यह जिंदगी का सफर
बड़ा अजब गजब सा है
हमें पता ही नहीं चलता
कब हम
अपनों के बीच
रिश्तेदार और मेहमान बन जाते हैं
©️Rajhansraju
🌹🌹🌹🌹
Fashion
****
छोरा फैशन की गाड़ी में
मस्त सवार है
रंग बिरंगी जुल्फें
सतरंगी धमाल है
चले बलखा के... चले बलखा के
नागिन जैसी चाल है
हक्के बक्के हो के देखें
गली मुहल्ले के बच्चे
बुढ्ढ़े बुढ़िया और उचक्के
लड़का है कि लड़की
पता चले ए कैसे
सोच के
सभी परेशान हैं
छोरा... फैशन......
तभी पलटकर देखा उसने
बालों को झटका कसके
मगर मुसीबत
अब भी वहीं बरकरार है
लड़का है कि लड़की
सभी परेशान हैं
छोरा फैशन....
नशीली आंखें उसकी
चेहरा गुलाल है
फागुन का महीना
पूरे साल है
थूक थूक के सड़क कर दिया
लालो लाल है
छोरा फैशन.....
सिगरेट जैसी टांगे
मुंह से धुआं निकले
कमाल है
दांतों में चमक गुटखे की
दिखता कंकाल है
सज धज के लगे
डंडे पे रुमाल है
छोरा... फैशन..
एक दिन दौड़ पड़े
मजनू
कौनउ के झांसे में पड़के
सब हड्डी चटक गयी
एकइ झटके में
हमरे मजनू सतरंगी
घायल बेहाल हैं
छोरा...
फैशन की गाड़ी में
मस्त सवार है...
©️Rajhansraju
सच्ची बातें मुँह पर कहता,
सुख में हँसता दुख में रोता,
पढ़े-लिखों की इस बस्ती में काश!
कोई तो अनपढ़ होता।
©️मुहम्मद रफी
जब सफर में
कभी एकदम घना अंधेरा हो
कहीं कुछ सूझता नहीं हो
उस वक्त ठहरकर
कुछ देर खुद से बात करना
अपने चारों तरफ देखना
बहुत दूर न मालूम
वह कौन सी जगह है
जहाँ टिमटिमाती रोशनी
नजर आ रही है
हाँ उधर
उसी तरफ चलना है
जिस तरफ से रोशनी आ रही है
आहिस्ता-आहिस्ता ही सही
आगे बढ़ते रहना है
देखा रास्ता साफ नजर आने लगा है
रोशनी की शुरुआत भर हो जाए
तो अमावस गुजर जाता है
फिर यह क्या
अब मेरे सामने सुबह का सूरज है
हर जगह रोशनी से भरी है
पूरा आसमान मेरे लिए खुला है
बस जब एकदम अंधेरा हो
उस वक्त
हमें ही एक दीप
प्रज्वलित करना है
©️Rajhansraju
आ देखें खुद को
झांके खुद में
अब चर्चा
चर्चा से आगे बढ़े
बातूनी ने जो बात कही है
उसमें कुछ गलत नहीं है
करने को
बाकी बहुत है
समय का पहिया.....
खत्म कभी कुछ
होता कहां है
हर पल
बस शुरुआत यहीं से
जहाँ खड़ा जहाँ रुका है
सब जैसे थम गया है
ऐसा तूँ जो समझ रहा है
कर गौर जरा तूँ
सब कुछ चल रहा है
कुछ भी कभी रुका नहीं है
जो अभी नया था
अब पुराना हो गया है
समय का पहिया....
ए बुरा है
वो बुरा है
कुछ अच्छा तुझे
नहीं दिख रहा है
इसका जिम्मेदार
तूँ ही तो नहीं है
सोच कर देख तूँने
अच्छा क्या किया है
इसी बोझ से दब गया है
समय का पहिया चल रहा है...
तूँ रोता बहुत है
देख अब भी रो रहा है
जबकि तेरी
इतनी कुव्वत नहीं है
अच्छा बुरा कुछ नहीं है
समय का पहिया चल रहा है
©️Rajhansraju
Flood
अब जब कभी बाढ़ आए
तो एक काम करना
उसे देखकर घबराना मत
नाराज नहीं होना,
कोई शिकायत नहीं करना
सिर्फ इतना करना है
उसे आहिस्ता से
अपनी बाहों में भरना है
संभलने-संभालने की कोशिश करना है
जानते हो किसी कोने में
उसे भी जगह चाहिए
कभी गौर किया है
वह कैसे हड़बड़ाहट में रहता है
घबराया हुआ सा
हांफता भागता दिखता है
बहुत भावुक है
ज्यादा देर तक कहीं ठहरता नहीं है
ताजे पानी से बना है
छलकता रहता है
देखो तालाब कैसे मुस्करा रहा है
हमेशा उसके इंतजार में
पलक पांवड़े बिछाए रहता है
उसके बगैर वह पूरा नहीं हो सकता
उसी का इंतजार नदी को भी है
जिसे हम बाढ़ कहते हैं
वह और कुछ नहीं
मैं कहाँ तक, कितनी हूँ
यह नदी का,
हमको बताने, समझाने का तरीका है
ए जो मरुस्थल है
किसी के इंतज़ार में
वहीं ठहर जाने कि कहानी है
उसने जिस नदी को संभाल रखा है
उसे बे-पानी हुए एक अरसा हो गया है
मगर यह उम्मीद
अब भी उसमें बाकी है
ऐसे ही किसी दिन
उसके चारों तरफ पानी होगा
उसकी नदी खिलखिलाएगी
उसमें नाव चलेगी
उसमें भी दो किनारे होंगे।
यह सब मुमकिन है
बस जब बाढ़ आये
उसे खुद में
जितना भर सकें
भरना है
©️Rajhansraju
🌹🌹🌹🌹
मोची
*****
एक विदेशी, व्यापार के सिलसिले में भारत आया हुआ था वह रेशम और कपास के बने कपड़े खरीदने-बेचने का काम करता था और कारीगरी के नमूने, गरम मसाले यहां से ले जाया करता था
वह भारतीय वैभव से अभिभूत था
अक्सर भारतीय समाज को समझने के लिए, जब भी आता, टहलने निकल पड़ता और नगरी वैभव से दूर गांव की तरफ जाना ज्यादा अच्छा लगता था।
रास्ते से गुजरते हुए उसने एक घर देखा, वहीं बाहर एक आदमी मोची का काम कर रहा था और पास में ही दूसरी तरफ एक कुंभकार भी था उसके जूते में कुछ समस्या थी वह मोची के पास बैठ गया। साफ सुथरी जगह थी और मोची भी कोई बेचारा नहीं लग रहा था बातचीत में पारंगत था और अपने कार्य में दक्ष, अपना काम करते हुए कुछ गुनगुना रहा था।
तभी घर से एक ब्राह्मण निकला, जिसने गेरुआ वस्त्र धारण कर रखा था माथे पर त्रिपुण्ड, जनेऊ, बड़ी सी शिखा भी थी आते ही उसने उसे मोची के पैर छुए और उसके बाद कुंभकार की तरफ बढ़ गया और उसका भी चरण स्पर्श किया और बताया कि आज आने में थोड़ा विलंब हो जाएगा यह कहकर वह घर से निकल गया।यह दृश्य देखकर विदेशी यात्री का कौतूहल और बढ़ गया कि भला एक मोची और कुंभकार का, एक ब्राह्मण चरण स्पर्श कैसे कर सकता है?
उसने पूछा कि इस ब्राह्मण ने तुम्हारा पैर क्यों छुआ?
वह मुस्कराया और उसने कहा- पता नहीं किन जन्मों के सद्कर्मों का फल या ईश्वरीय कृपा है जिससे ऐसा पुत्र प्राप्त हुआ है।
तुम्हारा पुत्र?
ब्राह्मण कैसे हो सकता है ?
वह कुंभकार उसका चाचा है
मतलब?
अरे हम दोनों भाइयों ने अथक परिश्रम करके यह सब हासिल किया है और अपने कार्य में हम श्रेष्ठ बनने की लगातार कोशिश करते रहते हैं यह कारीगरी का चमत्कार निरंतर अभ्यास और साधना का परिणाम है, देखो कुंभकार की उंगलियां कैसे मिट्टी को जीवंत कर रही हैं और मिट्टी एक आकार में ढ़ल रही हैं। इसी परिश्रम के बल पर आज मेरा पुत्र गुरुकुल में आचार्य है और वह ब्राह्मण बन गया है, उसे पंडित की उपाधि मिल गई है और जानते हो हम तीन भाई हैं हमारा अनुज राजकीय सेवा में है वह राजा के सुरक्षा दल में सम्मिलित है अर्थात क्षत्रिय है तभी घर से एक महिला निकली जिसने बेहद महंगे कपड़े और आभूषण पहन रखे थे उसने भी मोची और कुम्हार को प्रणाम किया, आज नाट्यशाला में उसकी नाटिका मंचित की जाएगी-
सभी लोग समय पर आ जाना..
नहीं तो...
यह बात चेतावनी में कहते हूए..
वह घर से निकल पड़ी
अब ए कौन थी?
यात्री यह पूछता..
इससे पहले मोची ने कहा -
यह हमारी पुत्री है
सब लोग इससे डरते हैं
(यह कहकर हंसने लगा)
इनके पति..
आप ही तरह एक व्यापारी है। इस समय व्यापार के सिलसिले में प्रवास पर हैं
तभी एक बुजुर्ग महिला घर से निकली
अरे अभी तक तुम दोनों भाई यहीं पर हो
चलो जल्दी नाट्शाला चलने की तैयारी करो
अन्यथा अपना समझ लेना...
मोची ने बताया यह हमारी माँ हैं जो हमारी गुरु, हमारी प्रेरणा, हमारा आधार है इन्होंने ही हम सबको गढ़ा है संस्कारित किया है
अब तक यात्री का जूता दुरुस्त हो चुका था उसने मोची को पारिश्रमिक देना चाहा तो मोची ने कहा-
आज आप हमारे मेहमान है, चलिए चलना चाहें तो आप भी हमारे साथ नाट्शाला चलिए और हमारा गीत संगीत भी सुनिए।
©️Rajhansraju
🌹🌹🌹🌹🌹
यह कथा ऋग्वेद के नवें मंडल के 112 वें सूक्त को अच्छी तरह समझने के लिए है, जो मूलतः इस प्रकार है
ऋग्वेद - 9, 112
कारुरहं ततोभिषगुपल प्रक्षिणी नना ।
नानाधियो वसूयवोऽनु गा इव तस्थिमेन्द्रायेन्द्रो परिस्रव।।
मैं कवि हूँ। मेरा पिता वैद्य है तथा मेरी माता अन्न पीसने वाली है। साधन भिन्न है परन्तु सभी धन की कामना करते हैं।
🌹🌹🌹
🌹❤️❤️🙏🙏🙏🌹🌹
*****************
my facebook page
***************
***********
facebook profile
************
***************
*********************************
my Youtube channels
**************
👇👇👇
**************************
my Bloggs
***************
👇👇👇👇👇
****************************
सच्ची बातें मुँह पर कहता,
ReplyDeleteसुख में हँसता दुख में रोता,
पढ़े-लिखों की इस बस्ती में काश!
कोई तो अनपढ़ होता।
©️मुहम्मद रफी
अब जब कभी बाढ़ आए
ReplyDeleteतो एक काम करना
उसे देखकर घबराना मत
मेरा घर भी ऐसा ही है
ReplyDeleteसब चीजें एक जगह
न जाने कितने सालों से
ऐसे ही दुरुस्त हैं
तुम न जाने कब
ReplyDeleteलौटकर आ जाओ
और हम वैसे न मिले
जैसा तुम छोड़कर गये थे
फिर हमें
तुम पहचानोगे कैसे
©️Rajhansraju