Loktantra

लोकतंत्र 

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मेरी पार्टी जब तक..
सत्ता में नहीं है
लोकतंत्र समझो प्यारे..
खतरे में बहुत है
मैं जैसे ही चुनकर
सत्ता में आऊंगा
हर जगह देखना
अपना झंडा लगवाऊंगा
भाई भतीजा बेटा बेटी
रिश्तेदार सेटल होंगे
तभी संविधान बचेगा
जब मेरे मन का होगा
मेरी पार्टी जब तक
सत्ता में नहीं है
लोकतंत्र समझो प्यारे
खतरे में बहुत है
मीडिया का देखो
खेल बड़ा निराला है
कहीं रामराज
कहीं सर्वनाश सारा है
छपने छपाने दिखने दिखाने का
खेल पुराना है
दोनों का सच से नहीं वास्ता
केवल पैसा प्यारा है
मेरी पार्टी जब तक
सत्ता में नहीं है
लोकतंत्र समझो प्यारे
खतरे में बहुत है
लोकतंत्र बचेगा कैसे
जब सारा
मुफ्त का चक्कर है
रेट सही मिल जाए तो
सब बिकने को तैयार हैं
अपनी जाति धर्म पर तूने
सारा वोट डाला है
अब शिकायत क्या करना
जब राजा उनके भेजा है
जयकार करो अब तुम
सारी सत्ता मेरी है
मेरी पार्टी है सत्ता में
मेरा सब सुरक्षित है
संविधान और लोकतंत्र की
अब चिंता उनकी है
जो पार्टी सत्ता में नहीं
उनको यह चुनौती है
मेरी पार्टी जब तक..
सत्ता में नहीं है
लोकतंत्र समझो.. प्यारे,
खतरे में बहुत है
©️Rajhansraju 

❤️❤️🌹🌹🌹

मेरा सफर 


जो सबसे आसान है, 
उसे ही क्यों कठिन कर दी, 
किसी से कुछ मांगा नहीं, 
क्योंकि सब मेरा ही है, 
मैंने खुद से, 
सब छीन ली, 
वह तो हंस के मिली, 
सूरज सी खिली, 
सौंप दी फिजाएं अपनी, 
उसमें रंग फूलों का, 
खुशबू भरी, 
पर मुझे.. 
कहाँ रास आई, 
यह अनमोल जिंदगी, 
जिसमें मैं हूँ और... मेरे अपने, 
जो मुझे यूं ही मुफत में मिले, 
मैंने बस उनकी कदर नहीं की, 
कश कसके मारी, 
और धुआँ भर ली, 
हांफने लगा, 
सांस टूटने लगी, 
मुझे लगा मैं कूल हूँ 
हकीकत में मैं फूल हूँ 
जिसे लेनी है, 
जिम्मेदारी जो शान है हमारी, 
कैसे मुसीबत बन गया भारी, 
लड़खड़ा रहा, 
पैरों में ताकत नहीं है, 
दौड़ना था जिसे, 
वह चल पाता नहीं है, 
नशे ने ऐसा हाल कर दिया है, 
न खुद की पहचान है, 
न किसी को पहचानता है, 
माँ बेबस लाचार खड़ी है, 
गोद में बेटा, 
बस जान नहीं है, 
अब सोच.. 
महसूस कर खुद को, 
तूँ जिंदा है कि मुर्दा, 
बस ए पता कर, 
नब्ज अपनी कभी-कभी, 
देख लिया कर, 
तूँ शान, 
आन और जान है मां की, 
वो तुझे कंधा दे, 
ए ठीक नहीं है, 
किसी मां-बाप का, 
यह अरमान नहीं है, 
इससे बड़ा दुख, 
कुछ होता नहीं है, 
ऐसे में जीना, 
एक मुश्किल काम है, 
वो दिखते जिंदा, 
पर मुर्दा समान हैं, 
अब कोई शब्द नहीं, 
उनके पास है, 
देखो उनकी आँखे, 
कितनी उदास हैं, 
सुन रहा है तो ए सुन ले तूँ, 
माँ का जो कर्ज है, 
उसको अदा कर, 
लौट सकता है लौट आ घर, 
बहुत है जितना है घर में, 
देख लें तुझको जी भर के, 
आ बैठे खूब बातें करें, 
और कट जाए सफर, 
न ख्वाइश है, 
न फर्माइश है, 
बहुत कुछ पाने की, 
बस पास रहे तूँ, 
हंसता रहे तूँ, 
बहुत है जितना है घर में, 
बहुत है जितना है घर में
©️Rajhansraju
❤️❤️❤️❤️❤️❤️
*********

चेहरा और मुखौटा

दुनिया के रंग देखो भइया
कितनी रंग बिरंगी है
शातिर है यह खेल उसी का
और वही खिलाड़ी है
अठ्ठहास जो कर रहा है
हाथ में उसके खंजर है
गुजर गया जिस बाग से
सूखा पड़ा बंजर है
दुनिया के रंग देखो भइया
कितनी रंग बिरंगी है
🌹🌹🌹
उसको हंसता रोता देख
इतना परेशान क्यों होता है
यह सच्चे है ना झूठे है
बस मौके की जरूरत है
कहाँ असल चेहरा है
यहाँ तो बस मुखौटा है
दुनिया के रंग देखो भइया
कितनी रंग बिरंगी है
🌹🌹🌹🌹
रंग लाल जो बिखरा है
उसने हाथ अभी धोया है
नया दस्ताना पहना है
सत्ता के सारे मुखौटे
अपने घर में रखा है
अब भला पहचाने कैसे
हरदम नया मुखौटा है
वह बड़ा शातिर खिलाड़ी है
जितनी उसको जरूरत हो
उतना बेचारा दिखता है
जबकि सत्ता के घोड़े पर
बरसों से बैठा है
यह काम उसका पुश्तैनी है
यही उसको आता है
दुनिया के रंग देखो भइया
कितनी रंग बिरंगी है
❤️❤️❤️❤️❤️
मनमाफिक
मुखौटे की तलाश में
हम भी हैं तुम भी हो
जो है चेहरे पर अपने
वह पर्याप्त नहीं है
वह डरता है
डराता नहीं किसी को
बस भीड़ में खोया रहता है
सुबह से शाम तक
रोटी-रोटी करता है
तिनका-तिनका जोड़ कर
एक अपनी दुनिया गढ़ ली है
जिसमें वह सब है
जिससे जीवन चलता है
पर मुखौटे की दुनिया में
जिसके पास जितना भी है
हर दम कम लगता है
दुनिया के रंग देखो भइया
कितनी रंग बिरंगी है
🌹🌹🌹🌹
बगैर मुखोटे वाला आदमी
आदमी जैसा क्या लगता है
ऐसे ही चलते चलते कहता है
अनजाने में
पर सच तो यह है
जानबूझकर मर्जी से अपने
उसने मुखौटा ले रखा है
और खो गया तभी
वह रहा नहीं
हर तरफ हर जगह
एक नायाब मुखौटा है
दुनिया के रंग देखो भइया
कितनी रंग बिरंगी है
❤️❤️❤️❤️❤️
ऐसे ही नित नये
मुखौटे कि ख्वाहिश में
थक कर
वह टूट गया
उसने कहा
अबकी जाऊंगा
फिर वापस ना आऊंगा
अग्निवेदी पर चढ़ा जब
मुखौटा चेहरा बचा कब
वह भाप बन गया
धूल बन गया
राख बनकर अवशेष हो गया
अरूप अनाम
कुछ था
जो अब नहीं रहा
यही है दुनिया असल हमारी
न चेहरा, न कोई मुखौटा है
दुनिया का असल रंग यही है
न कुछ मेरा, न कुछ तेरा है
©️Rajhansraju
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🌹❤️❤️🙏🙏🙏🌹🌹

International 

labour day

हमारी जिंदगी में
हमारे लिए
जो सबसे ज्यादा
काम करते हैं
वह लेबर और वर्कर की
कैटेगरी में नहीं आते हैं
उसने सब की आदत
बिगाड़ रखी है
वह भी इतना कि
उसके बारे में हम
सोच पाते नहीं हैं
बगैर छुट्टी बगैर हड़ताल
बगैर शिकायत
यह घर को घर बनाने वाले
दुनिया को सजाने वाले
भला कोई एक दिन
तुम्हारे लिए कैसे हो सकता है
क्योंकि यहां जो भी
जहां तक है
उसे तुमने ही
अपने हुनर से गढ़ा है
और ये दिन की शुरुआत
तुम्हीं तो करते हो
©️Rajhansraju 


चल सको तो चलो
सफर में धूप तो होगी,
जो चल सको तो चलो,
सभी हैं भीड़ में,
तुम भी,
निकल सको तो चलो।
यहां किसी को,
कोई रास्ता नहीं देता,
मुझे गिरा के,
अगर तुम,
संभल सको तो चलो।
हर एक सफर को,
है महफूज रास्तों की तलाश,
हिफाजतों की रिवायत,
बदल सको तो चलो।
यही है जिंदगी,
कुछ ख्वाब, चंद उम्मीदें,
इन्हीं खिलौनों से
तुम भी,
बहल सको तो चलो।
किसी के वास्ते,
राहें कहां बदलती हैं,
तुम अपने आप को
खुद ही,
बदल सको तो चलो।
©️निदा फ़ाज़ली
🌹🌹🌹🌹🌹


छूटना

घर से निकले तो हो,
सोचा भी किधर जाओगे,
हर तरफ तेज हवाएं हैं,
बिखर जाओगे।
इतना आसान नहीं,
लफ्जों पर भरोसा करना,
घर की दहलीज पुकारेगी,
जिधर जाओगे।
शाम होते ही,
सिमट जाएंगे सारे रास्ते,
बहते दरिया में,
जहां होगे ठहर जाओगे।
हर नए शहर में,
कुछ रातें हैं कड़ी होती हैं,
छत से दीवारें जुदा होंगी,
तो डर जाओगे।
पहले हर चीज,
नजर आएगी बेमानी ई,
और फिर,
अपनी ही नजरों में,
उतर जाओगे।
©️निदा फाजली 

कहीं कुछ है
देखा हुआ सा कुछ है ,
तो सोचा हुआ कुछ,
हर वक्त मेरे साथ है,
उलझा हुआ सा कुछ,
होता है यूँ भी,
रास्ता खुलता नहीं कहीं,
जंगल सा फैल जाता है,
खोया हुआ सा कुछ,
साहिल की गीली रेत पे,
बच्चों के खेल सा,
हर लम्हा मुझमें,
बनता बिगड़ता हुआ सा कुछ,
फुर्सत ने,
आज घर को सजाया,
कुछ इस तरह,
हर शै से मुस्कुराता है
रोता हुआ सा कुछ,
धुंधली सी एक याद,
किसी कब्र की दिया,
और मेरे आस-पास,
चमकता हुआ सा कुछ
©️निदा फ़ाज़ली 


उसका साया
जिन चेहरों से रौशन हैं
इतिहास के दर्पण
चलती फिरती धरती पर
वो कैसे होंगे
सूरत का मूरत बन जाना
बरसों बाद का है अफसाना
पहले तो हम जैसे होंगे
मिट्टी में दीवारें होंगी
लोहे में तलवारे होंगी
आग, हवा, पानी, अंबर में
जीते होंगी हारे होंगी
हर युग का इतिहास यही है
अपनी-अपनी भेंड़े चुनकर
जो भी चरवाहा होता है
उसके सर पर
नील गगन की
रहमत का साया होता है
©️निदा फ़ाज़ली

एक दिन
सूरज!
इस नटखट बालक सा
दिन भर शोर मचाए
इधर-उधर चिड़ियों को बिखेरे
किरणों को छितराए
कलम दरांती ब्रश हथौड़ा,
जगह-जगह फैलाए
शाम!
थकी-हारी मां जैसी
एक दिया मिलकाये,
धीमे-धीमे
सारी बिक्री चीजें चुनती जाये
©️निदा फ़ाज़ली 


पैदाइश
बंद कमरा
छटपटाता धुप अंधेरा
और
दीवारों से टकराता हुआ
मैं
मुंतज़िर हूँ मुद्दतों से
अपने पैदाइश के दिन का
अपनी माँ के पेट से,
निकला हूं जब से
मैं
खुद अपने
पेट के अंदर पड़ा हूँ
©️निदा फ़ाज़ली 


अधूरापन
कभी किसी को
मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं जमीन तो
कहीं आसमान नहीं मिलता
बुझा सका है
भला कौन वक्त के शोले
ये ऐसी आग है
जिसमें धुआं नहीं मिलता
तमाम शहर में,
ऐसा नहीं खुलस ना हो,
जहां उम्मीद हो इसकी
वहां नहीं मिला
कहां चराग जलाए,
कहां गुलाब रखे
छतें तो मिलती है
लेकिन मकां  नहीं मिलता
ये क्या अज़ाब है
सब अपने आप में गुम हैं
जुबाँ मिली है
मगर हम जुबाँ नहीं मिलता
चराग़ जलते ही
बिनाई पूछने लगती है
खुद अपने घर में ही
घर का निशां नहीं मिलता
©️निदा फ़ाज़ली 



पहला पानी
छन छन करती
टीन की चादर
सन सन बजते पात
पिंजरे का तोता
दुहराता
रटी रटाई बात
मुट्ठी में दो जामुन
मुह में
एक चमकती सीटी
आंगन में चक्कर खाती है
छोटी सी बरसात
©️निदा फ़ाज़ली 

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मन बैरागी, तन अनुरागी, 
कदम कदम  दुश्वारी है, 
जीवन जीना सहल न जानो, 
बहुत बड़ी फनकारी है, 
औरों जैसे होकर भी हम, 
बाइज्जत हैं बस्ती में, 
कुछ लोगों का सीधा पन है, 
कुछ अपनी अय्यारी है, 
जब-जब मौसम झूमा, 
हमने कपड़े फाड़े शोर किया, 
हर मौसम शाइस्ता रहना, 
कोरी दुनियादारी है, 
ऐब नहीं है उसमें कोई, 
लालपरी न फुल गली, 
ये मत पूछो वो अच्छा है 
या अच्छी नादारी है।
©️निदा फ़ाज़ली
(नादारी = गरीबी) 


जो जैसा दिखाता है, वह ऐसा हो जरूरी नहीं है 

सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पणखा निकली! सोने का हिरन बाद में मारीच निकला! भिक्षा माँगने वाला साधू बाद में रावण निकला! लंका में तो निशाचार लगातार रूप ही बदलते दिखते थे!
हर जगह भ्रम, हर जगह अविश्वास, हर जगह शंका लेकिन बावजूद इसके जब लंका में अशोक वाटिका के नीचे सीता माँ को रामनाम की मुद्रिका मिलती है तो वो उस पर 'विश्वास' कर लेती हैं।
वो मानती हैं और स्वीकार करती हैं कि इसे प्रभु श्री राम ने ही भेजा है।
जीवन में कई लोग आपको ठगेंगे, कई आपको निराश करेंगे, कई बार आप भी सम्पूर्ण परिस्थितियों पर संदेह करेंगे लेकिन इस पूरे माहौल में जब आप रुक कर पुनः किसी व्यक्ति, प्रकृति या अपने ऊपर 'विश्वास' करेंगे तो रामायण के पात्र बन जाएंगे।
राम और माँ सीता केवल आपको 'विश्वास करना' ही तो सिखाते हैं। माँ कठोर हुईं लेकिन माँ से विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुई लेकिन उसके बेहतर होने का विश्वास नहीं छूटा, भाई-भाई का युद्ध देखा लेकिन अपने भाइयों से विश्वास नहीं छूटा, लक्ष्मण को मरणासन्न देखा लेकिन जीवन से विश्वास नहीं छूटा, सागर को विस्तृत देखा लेकिन अपने पुरुषार्थ से विश्वास नहीं छूटा, वानर और रीछ की सेना थी लेकिन विजय पर विश्वास नहीं छूटा और प्रेम को परीक्षा और वियोग में देखा लेकिन प्रेम से विश्वास नहीं छूटा।
भरत का विश्वास, विभीषण का विश्वास, शबरी का विश्वास, निषादराज का विश्वास, जामवंत का विश्वास, अहिल्या का विश्वास, कोशलपुर का विश्वास और इस 'विश्वास' पर हमारा-आपका अगाध विश्वास।
सच बात यही है कि जिस दिन आपने ये 'विश्वास' कर लिया कि ये विश्व आपके पुरुषार्थ से ही खूबसूरत बनेगा उसी दिन ही आप 'राम' बन जाएंगे और फिर लगभग सारी परिस्थितियाँ हनुमान बनकर आपको आगे बढ़ाने में लग जाएंगी।
यहाँ हर किसी की रामायण है, आपकी भी होगी। जिसमें आपके सामने सब है; रावण, शंका, भ्रम, असफलता, दुःख। बस आपको अपनी तरफ 'विश्वास' रखना है.. आपका राम तत्व खुद उभर कर आता जायेगा
साभार


The Kerala Story 

इस फिल्म के एक सीन में पीड़ित लड़की आखिर में अपने पिता से पूछती है - "आपने हमें कभी अपने कल्चर के बारे में क्यों नहीं बताया?" 
शायद वो ये भी पूछी होगी - "आपने हमें क्यों नहीं बताया कि अपनी "हिंदुत्व आइडेंटिटी" को खोकर मैं क्या खो दूंगी?
प्रेमचंद की एक बड़ी मशहूर कहानी है 'जिहाद'। उसमें एक हिन्दू लड़की है 'श्यामा'। जिसे शायद उसे उसके मां बाप ने इन प्रश्नों का उत्तर दिया होगा, उसे अपने "हिंदू कल्चर" के बारे में बताया होगा, उसे बताया होगा कि हिंदू का होना और बचना क्यूं जरूरी है तभी उसका उल्लेख आज करने की जरूरत आन पड़ी है।
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं इसको समझने के लिए आपको थोड़ा इस कहानी में उतरना होगा और मुझे उन पंक्तियों का अक्षरशः उल्लेख करना होगा जो उस युवती श्यामा ने हिन्दू धर्म छोड़ कर विधर्मी बने युवक धर्मदास से कही थी। ये वो धर्मदास था जो धनी भी था और सुदर्शन भी और जिस पर श्यामा कभी जान छिड़कती थी।
हिंदू धर्म छोड़ने वाले धर्मदास से श्यामा पूछती है :- इस्लाम कबूलने के बदले में हासिल तो तुमने जो भी किया सो किया पर कीमत क्या दी? 
हतप्रभ धर्मदास पूछता है- मैंने तो कोई कीमत नहीं दी। मेरे पास था ही क्या ?
जबाब में श्यामा उससे जो कहती है, मुझे लगता है "हिंदू कल्चर" को उससे बेहतर शायद ही कोई डिफाइन करे। श्यामा उससे कहती है :- 
"तुम्हारे पास वह ख़ज़ाना था, जो तुम्हें आज से कई लाख वर्ष पहले हुए ऋषियों ने प्रदान किया था। जिसकी रक्षा रघु और मनु, राम और कृष्ण, बुद्ध और शंकर, शिवाजी और गोविंदसिंह ने की थी। उस अमूल्य भंडार को आज तुमने तुच्छ प्राणों के लिए खो दिया।"
ऐसे उच्च संस्कारों से बड़ी हुई श्यामा धर्म छोड़ने वाले उस सुदर्शन लेकिन धर्महीन युवक धर्मदास को छोड़कर एक सामान्य सा दिखने वाले युवक खजानचंद की "विधवा ब्याहता" बनती है जो अब जीवित भी नहीं है क्योंकि उसने अपने महान हिंदू धर्म को त्यागने की जगह मृत्यु का वरण किया था।
इसलिए अपनी श्यामाओं के प्रश्न कि "अपनी 'हिंदुत्व आइडेंटिटी' को खोकर मैं क्या खो दूंगी?' पर उससे कहिए कि तुम खो दोगी अपना स्वतंत्र अस्तित्व, तुम खो दोगी अपना सम्मान, तुम खो दोगी अपना चैतन्य, तुम खो दोगी बौद्धिक स्वातंत्र्य और जब तुम्हारी तरह बाकी सब भी इस identity को खोने लगे तो दुनिया से आदर्श और जीवन मूल्य खत्म हो जाएंगे, हर जड़ और चेतन में ब्रह्म देखने का संस्कार खत्म हो जायेगा, प्रकृति में मां नहीं दिखेगी, विश्व में बंधुत्व नहीं दिखेगा, विश्व को एक परिवार और 'सबको जीने का अधिकार' की बात करने वाला दर्शन जीवित नहीं रहेगा, टॉलरेंस नहीं एक्सेप्टेंस का सुंदर चिंतन खत्म हो जायेगा, उपासना के वैविध्य की मिली स्वीकृति खत्म हो जायेगी, नास्तिकों के लिए ये दुनिया कत्लगाह बन जायेगी, चिंतन की स्वतंत्रता छीन जायेगी, दुनिया की तमाम आतंकित और पीड़ित जातियां अनाथ हो जाएंगी जो हिंदुत्व के उदार और विशाल हृदय में स्थान पाकर भारत भूमि पर उन्नति करती हैं।
ये सवाल कल को आपसे न पूछा जाए इसकी कोई तैयारी है? अगर नहीं है तो इसकी तैयारी कर लीजिए।
साभार : Abhijeet Singh


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Comments

  1. यह खुद की तलाश है
    जिंदगी
    सफर के सिवा
    कुछ भी नहीं है

    ReplyDelete
  2. यहां साये में
    सुकून कहाँ है
    फसल हो खेत में तो
    नींद कहाँ है

    ReplyDelete
  3. शिकायतों का अंतहीन सिलसिला
    कभी क्यों खत्म होता नहीं है

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  4. चलो खूब बात करते हैं
    बस साथ रहते हैं
    मौन रहते हैं

    ReplyDelete
  5. उसने कहा
    बहुत दिन हो गया
    चलो बेवजह मिलते हैं
    खूब बातें करेंगे
    दोनों तय वक्त पर मिले
    अपने किनारे पर बैठे रहे
    मौन पसरा रहा
    एक दूसरे को देखते रहे
    कहने को तो
    कुछ है ही नहीं
    ©️Rajhansraju

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  6. एक बेहतरीन पन्ना हमारे साथ साझा करने के लिए आभार

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  7. वह पेड़ भी बूढ़ा हो गया है
    पहले कई पेड़
    साथ हुआ करते थे
    आज अकेला हो गया है
    जब सब साथ थे
    धूप हवा पानी बांटने में लगे थे
    आज भी अपने हिस्से से ज्यादा
    कुछ ले नहीं सकता हैं।

    ReplyDelete

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