सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पणखा निकली! सोने का हिरन बाद में मारीच निकला! भिक्षा माँगने वाला साधू बाद में रावण निकला! लंका में तो निशाचार लगातार रूप ही बदलते दिखते थे!
हर जगह भ्रम, हर जगह अविश्वास, हर जगह शंका लेकिन बावजूद इसके जब लंका में अशोक वाटिका के नीचे सीता माँ को रामनाम की मुद्रिका मिलती है तो वो उस पर 'विश्वास' कर लेती हैं।
वो मानती हैं और स्वीकार करती हैं कि इसे प्रभु श्री राम ने ही भेजा है।
जीवन में कई लोग आपको ठगेंगे, कई आपको निराश करेंगे, कई बार आप भी सम्पूर्ण परिस्थितियों पर संदेह करेंगे लेकिन इस पूरे माहौल में जब आप रुक कर पुनः किसी व्यक्ति, प्रकृति या अपने ऊपर 'विश्वास' करेंगे तो रामायण के पात्र बन जाएंगे।
राम और माँ सीता केवल आपको 'विश्वास करना' ही तो सिखाते हैं। माँ कठोर हुईं लेकिन माँ से विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुई लेकिन उसके बेहतर होने का विश्वास नहीं छूटा, भाई-भाई का युद्ध देखा लेकिन अपने भाइयों से विश्वास नहीं छूटा, लक्ष्मण को मरणासन्न देखा लेकिन जीवन से विश्वास नहीं छूटा, सागर को विस्तृत देखा लेकिन अपने पुरुषार्थ से विश्वास नहीं छूटा, वानर और रीछ की सेना थी लेकिन विजय पर विश्वास नहीं छूटा और प्रेम को परीक्षा और वियोग में देखा लेकिन प्रेम से विश्वास नहीं छूटा।
भरत का विश्वास, विभीषण का विश्वास, शबरी का विश्वास, निषादराज का विश्वास, जामवंत का विश्वास, अहिल्या का विश्वास, कोशलपुर का विश्वास और इस 'विश्वास' पर हमारा-आपका अगाध विश्वास।
सच बात यही है कि जिस दिन आपने ये 'विश्वास' कर लिया कि ये विश्व आपके पुरुषार्थ से ही खूबसूरत बनेगा उसी दिन ही आप 'राम' बन जाएंगे और फिर लगभग सारी परिस्थितियाँ हनुमान बनकर आपको आगे बढ़ाने में लग जाएंगी।
यहाँ हर किसी की रामायण है, आपकी भी होगी। जिसमें आपके सामने सब है; रावण, शंका, भ्रम, असफलता, दुःख। बस आपको अपनी तरफ 'विश्वास' रखना है.. आपका राम तत्व खुद उभर कर आता जायेगा
साभार
The Kerala Story
इस फिल्म के एक सीन में पीड़ित लड़की आखिर में अपने पिता से पूछती है - "आपने हमें कभी अपने कल्चर के बारे में क्यों नहीं बताया?"
शायद वो ये भी पूछी होगी - "आपने हमें क्यों नहीं बताया कि अपनी "हिंदुत्व आइडेंटिटी" को खोकर मैं क्या खो दूंगी?
प्रेमचंद की एक बड़ी मशहूर कहानी है 'जिहाद'। उसमें एक हिन्दू लड़की है 'श्यामा'। जिसे शायद उसे उसके मां बाप ने इन प्रश्नों का उत्तर दिया होगा, उसे अपने "हिंदू कल्चर" के बारे में बताया होगा, उसे बताया होगा कि हिंदू का होना और बचना क्यूं जरूरी है तभी उसका उल्लेख आज करने की जरूरत आन पड़ी है।
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं इसको समझने के लिए आपको थोड़ा इस कहानी में उतरना होगा और मुझे उन पंक्तियों का अक्षरशः उल्लेख करना होगा जो उस युवती श्यामा ने हिन्दू धर्म छोड़ कर विधर्मी बने युवक धर्मदास से कही थी। ये वो धर्मदास था जो धनी भी था और सुदर्शन भी और जिस पर श्यामा कभी जान छिड़कती थी।
हिंदू धर्म छोड़ने वाले धर्मदास से श्यामा पूछती है :- इस्लाम कबूलने के बदले में हासिल तो तुमने जो भी किया सो किया पर कीमत क्या दी?
हतप्रभ धर्मदास पूछता है- मैंने तो कोई कीमत नहीं दी। मेरे पास था ही क्या ?
जबाब में श्यामा उससे जो कहती है, मुझे लगता है "हिंदू कल्चर" को उससे बेहतर शायद ही कोई डिफाइन करे। श्यामा उससे कहती है :-
"तुम्हारे पास वह ख़ज़ाना था, जो तुम्हें आज से कई लाख वर्ष पहले हुए ऋषियों ने प्रदान किया था। जिसकी रक्षा रघु और मनु, राम और कृष्ण, बुद्ध और शंकर, शिवाजी और गोविंदसिंह ने की थी। उस अमूल्य भंडार को आज तुमने तुच्छ प्राणों के लिए खो दिया।"
ऐसे उच्च संस्कारों से बड़ी हुई श्यामा धर्म छोड़ने वाले उस सुदर्शन लेकिन धर्महीन युवक धर्मदास को छोड़कर एक सामान्य सा दिखने वाले युवक खजानचंद की "विधवा ब्याहता" बनती है जो अब जीवित भी नहीं है क्योंकि उसने अपने महान हिंदू धर्म को त्यागने की जगह मृत्यु का वरण किया था।
इसलिए अपनी श्यामाओं के प्रश्न कि "अपनी 'हिंदुत्व आइडेंटिटी' को खोकर मैं क्या खो दूंगी?' पर उससे कहिए कि तुम खो दोगी अपना स्वतंत्र अस्तित्व, तुम खो दोगी अपना सम्मान, तुम खो दोगी अपना चैतन्य, तुम खो दोगी बौद्धिक स्वातंत्र्य और जब तुम्हारी तरह बाकी सब भी इस identity को खोने लगे तो दुनिया से आदर्श और जीवन मूल्य खत्म हो जाएंगे, हर जड़ और चेतन में ब्रह्म देखने का संस्कार खत्म हो जायेगा, प्रकृति में मां नहीं दिखेगी, विश्व में बंधुत्व नहीं दिखेगा, विश्व को एक परिवार और 'सबको जीने का अधिकार' की बात करने वाला दर्शन जीवित नहीं रहेगा, टॉलरेंस नहीं एक्सेप्टेंस का सुंदर चिंतन खत्म हो जायेगा, उपासना के वैविध्य की मिली स्वीकृति खत्म हो जायेगी, नास्तिकों के लिए ये दुनिया कत्लगाह बन जायेगी, चिंतन की स्वतंत्रता छीन जायेगी, दुनिया की तमाम आतंकित और पीड़ित जातियां अनाथ हो जाएंगी जो हिंदुत्व के उदार और विशाल हृदय में स्थान पाकर भारत भूमि पर उन्नति करती हैं।
ये सवाल कल को आपसे न पूछा जाए इसकी कोई तैयारी है? अगर नहीं है तो इसकी तैयारी कर लीजिए।
वह पेड़ भी बूढ़ा हो गया है पहले कई पेड़ साथ हुआ करते थे आज अकेला हो गया है जब सब साथ थे धूप हवा पानी बांटने में लगे थे आज भी अपने हिस्से से ज्यादा कुछ ले नहीं सकता हैं।
अग्नि परीक्षा *********** ए भी तो सच है, बनवास तो राम को हुआ, पर! बेघर हमेशा सीता हुई, चाहे वह राधा बनी, या फिर मीरा हुई, आग में गुजरना पड़ा, विष का प्याला उसने पिया, आँच राम को न लग जाए कहीं, ए समझकर, हर काल में जलती रही, सदा मर्यादा पुरुषोत्तम रहें वो, सब तजके भी, हर दम, राम-राम कहती रही। पर क्या मिला इसका सिला? अब तो यही लगता है, उस वक्त बात मानकर, तुमने अच्छा नहीं किया, काश! अग्नि परीक्षा से इंकार कर देती, या फिर दोनों भाइयों से कहती, आओ इस आग से तीनों गुजरते हैं, देखते हैं फिर भला? कितने कुंदन निकलते हैं, सवाल जब राम पर नहीं उठा, फिर सीता पर क्यों उठे? जो लांक्षन किसी स्त्री पर लगे, उसीसे भला? कोई पुरुष क्यों बचे? जब! वो भी तो हाड मांस का है, और देह धारण करता हो, फिर जिस्मानी दोष से, कैसे बच सकता है? अच्छा होता कि कह देते, तुम इंसान नहीं हो, और सीता भी कोई आम औरत नहीं है, पर तुमको तो मर्यादा पुरुषोत्तम बनना था, जिसके लिए सब कुछ, सीता को सहना था। वो चुप रहकर सहने वाली सीता, सबको भाती है, घरों में आज भी सबके, तुम्हारे साथ पूजी जाती है। अब भी वही आदर्श मानते हैं, अपनी आवाज में बोल
गंगा-यमुना का संगम ****************** कुछ पल, ठहर कर देखा, वह अब भी वैसे ही, बाँह फैलाए, अपने दामन में भरने को, धीरे-धीरे बढ़ रही, मै मूरख भागा डरके, समझ न पाया, उसके मन को, ऐसे ही भाग रहा, न जाने कब से? जबकि उसकी बाँहे, तो गंगा-यमुना हैं, जो निरंतर बाँध रही, हम सबको। rajhansraju *************************** तूँ नदी है *************** बस यही करना है, जो कुछ? अच्छा या बुरा हुआ, उसे भुला कर, कत्ल न तो करना है, और न होना है। फिर जो दरिया है, वो भला क्या डूबेगा? कभी कुछ वक्त के लिए, नदी भी समुन्दर बन जाती है, तो वह सिर्फ, पानी की ताकत बताती है, ऐसे में कुछ नहीं करना है, बस किनारों को, थामकर रखना है, ए दोनों तेरे अपने हैं, इन्हीं के बीच रहना है, अभी बरसात का मौसम है, ए भी गुजर जाएगा, तूँ फिर वही नदी हो जाएगा, जो सबकी प्यास बुझाती है। फिर क्यों इतना परेशान है? जो अपनी प्यास बुझाने को, इधर उधर भटकता है, जबकि तूँ... खुद नदी है, पानी से बना है लबालब भरा है। जिसे दर बदर ढूँढता फिर रहा है,
सूखा दरख़्त हर किसी के लिए, एक मियाद तय है, जिसके दरमियाँ सब होता है, किसी बाग में, आज एक दरख्त सूख गया, हलांकि अब भी, उस पर चिड़ियों का घोसला है, शायद उसके हरा होने की उम्मीद, अब भी कहीं जिंदा है, मगर इस दुनियादारी से बेवाकिफ, इन आसमानी फरिश्तों को, कौन समझाए? अपनी उम्र पार करने के बाद, भला कौन ठहरता है? किसी बगीचे में, पौधे की कदर तभी तक है, जब तक वह हरा है, उसके सूखते ही, उसको उसकी जगह से, रुखसत करने की, तैयारी होने लगती है ऐसे ही उस पर, कुल्हाड़ियां पड़ने लगी, बेजान सूखा दरख्त, आहिस्ता-आहिस्ता बिखरने लगा, वह किसका दरख्त है, अब यह सवाल कोई नहीं पूछता, क्योंकि सूखी लकड़ियां, किस पेड़ की हैं, इस बात से कोई मतलब नहीं है, बस उन्हें ठीक से जलना चाहिए, जबकि हर दरख़्त की, एक जैसी दास्तान है, वह अपने लिए, कभी कुछ नहीं रखता, देते रहना उसकी फितरत है, सूख जाने के बाद भी वह किसी चूल्हे में जलता है, भूख मिटाने का काम, इस तरह भी होता है, वह अक्सर, किसी घर की रखवाली
निकम्मा 😀😀😀😀 यूँ खुश होकर, तालियाँ मत बजाओ, यहाँ सवाल खुद को, पाने और खोने का है, दर्द ए है कि खुद के मरने का, मातम भला कैसे मनाए? जबकि अब भी, गरदन बहुत कसके दबी है, मुँह टेढ़ा हो गया है, और जीभ ऐंठ गयी है, सिर्फ एक ही कमी है मरने वाली feeling नहीं दिखती, कमबख्त शक्ल ही ऐसी है, लगता है हँस रहा, वैसे ही जैसे बिना चेहरे वाले, कंकाल होते हैं, जो चेहरों पर हंसते है, वो न तो अपना, न तो दूसरों का चेहरा देखते हैं, अब उन्हें ए मालूम है, असल में जो है, उसमें आँख नहीं है, और चेहरों में कोई फर्क नहीं है, अब वह चेहरे के साथ भी हंसता है हश्र चेहरे का, उसने, जबसे जाना, उसके चेहरे पर, अनायास हंसी रहने लगी, उसके यूँ हँसते रहने पर, उस पर बेहया होने का इलजाम, लगता है, कैसा निकम्मा है, देखो, अब भी, कैसे हँस रहा है। 😁😁😁😁😁 rajhansraju ****************************** नालायक ******** वह घर लौट कर आया, हर तरफ सन्नाटा पसरा है, सभी कुछ अपनी जगह पर, बड़े सलीके से रखा है, पिछले हफ्ते कुछ साम
हमारा सिनेमा और समाज हमारी फिल्मों की जो यात्रा है वह आमतौर पर कथित या घोषित तौर पर खुद को सस्ता, हिंसक, अश्लील बिकाऊ साहित्य का अपडेटेड वर्जन बनाना भर है जो इंटरनेट की वजह से एक हो चुकी दुनिया में ग्लोबल मार्केट से पैसा कमाने की अपार संभावना में खुद के लिए पर्याप्त हिस्सा हासिल करने की कोशिश भर लगती है जहां असीमित अपार धन कमाया जा सकता है। इनका मकसद किसी की दशा सुधारना या कोई दिशा दिखाना नहीं है। वैसे समाज में सभी चीजें एक साथ चलती रहती है और साहित्य, सिनेमा में भी एक साथ सभी के लिए कुछ ना कुछ उपलब्ध होता है। किसी के लिए भी दर्शक, श्रोता, पाठक कभी कम नहीं होते और न वहां पैसों की कमी होती है बस अपनी बात, अपने कंटेंट को सही ढंग से परोसना आना चाहिए अखबार और किताब अभी भी छप रहे हैं। जापान हो या अमेरिका सभी जगह उनकी छपाई और गुणवत्ता निरंतर बेहतर हुई है या यूं कहें कि पहले से ज्यादा काम हो रहा है क्योंकि कागज और स्याही की खुशबू लोगों को कागज के करीब ले आती है इसमें कोई संदेह नहीं है जहां वह कुछ लिखता-पढ़ता, हाँ सबसे बड़ी बात वह छुअन महसूस करता है। हमारी फिल्में किस तरह की
युद्ध ****** किसी युद्ध के दौरान जब शौर्य गाथाएं कही जाती है उसमें सिर्फ सैनिकों का जिक्र होता है किसने कैसे किसको मारा बहादुर वही कहलाता है जो ज्यादा से ज्यादा लोगों को हताहत करता है यह युद्ध का नियम कुछ ऐसा ही है मरने-मारने दोनों में बहादुरी का परचम फहराया जाता है सीमाओं का निर्धारण अक्सर युद्ध से ही किया जाता है हर जगह जो खबर छपती है उसमें इन्हीं सैनिकों का जिक्र होता है जो जीतकर आते हैं वहां उनके घर उनके देश में उनकी बटालियन में पूरा जश्न मनाया जाता है जो बेजान देह लेकर लौटते हैं उनका भी भरपूर स्वागत होता है फौजी को अजीब तरह की जश्न की आदत पड़ जाती है वह जिंदा रहे या ना रहे दोनों ही परिस्थितियों में नारे बहुत लगते हैं पर असली लड़ाई कहीं और लड़ी जाती है जिसमें हर सिपाही का घर शामिल होता है उसके मां बाप, भाई-बहन बीबी-बच्चे, दोस्त जब वह किसी मोर्चे पर तैनात होता है युद्ध के हालात होते हैं तब लड़ाई इन्हीं घरों में लड़ी जाती है जहां दुआओं के सिवा कोई कुछ नहीं कर पाता कहीं बुरी खबर न आ जाए इस बात से हर वक्त डरता रहता है प्रार्थना में
यह खुद की तलाश है
ReplyDeleteजिंदगी
सफर के सिवा
कुछ भी नहीं है
यहां साये में
ReplyDeleteसुकून कहाँ है
फसल हो खेत में तो
नींद कहाँ है
शिकायतों का अंतहीन सिलसिला
ReplyDeleteकभी क्यों खत्म होता नहीं है
चलो खूब बात करते हैं
ReplyDeleteबस साथ रहते हैं
मौन रहते हैं
उसने कहा
ReplyDeleteबहुत दिन हो गया
चलो बेवजह मिलते हैं
खूब बातें करेंगे
दोनों तय वक्त पर मिले
अपने किनारे पर बैठे रहे
मौन पसरा रहा
एक दूसरे को देखते रहे
कहने को तो
कुछ है ही नहीं
©️Rajhansraju
एक बेहतरीन पन्ना हमारे साथ साझा करने के लिए आभार
ReplyDeleteवह पेड़ भी बूढ़ा हो गया है
ReplyDeleteपहले कई पेड़
साथ हुआ करते थे
आज अकेला हो गया है
जब सब साथ थे
धूप हवा पानी बांटने में लगे थे
आज भी अपने हिस्से से ज्यादा
कुछ ले नहीं सकता हैं।