Chaukhat
चौखट
उससे जब दरवाजा टकराया
कुंडी का निशान दीवार पर उभर आया
दरवाजा मुस्कराया,
उसने पूरी ताकत लगाया था
दीवार पर इस तरह के
न जाने कितने निशान हैं
और दीवार होने का मायने भी तो यही है
जब हवा चले दरवाजा बेकाबू हो जाए
बार बार लड़ने को आतुर हो जाए
दीवार अडिग अडोल निश्चिंत
आहिस्ता से दरवाजे को आगोश में ले लिया
कुंडी लगते ही दरवाजा स्थिर हो गया
दीवार के गले लगकर सुरक्षित हो गया
©️RajhansRaju
जिंदगी
*****
यूंँ ही बेवजह हंसते हैं
एक दूसरे की
उंगली थामकर रखते हैं
तेरे बिन
मैं कहांँ कुछ हूंँ
मेरा वजूद तूंँ है
मैं तुझसे हूंँ
ऐ जिंदगी ..
कोई गिला नहीं तुझसे
कितना कुछ दिया मुझको
मैं हूंँ ..
इस बात का शुक्रिया तुझको
©️RajhansRaju
आईना
आइने को
खुद से शिकायत है
पहले जिंहें देखता था
नजर नहीं आते
सब एक जैसे लगने लगे हैं
कहीं वह भी
चेहरा तो नहीं बन गया
बाजार का दस्तूर
निभाने लग गया हो
सदा आइना बने रहना
आसान तो नहीं है
©️RajhansRaju
अपना हिस्सा
अपने हिस्से में जो जितना है
उतना ही तो मिलता है
लाख जतन कर ले
कहां कुछ होता है
बहुत लड़ा इससे उससे,
पर कुछ ना बदला अब तक
थक कर स्वीकार कर लिया उसे ही
जो मेरा किस्सा है
कुछ और भला कैसे होगा
जब उसकी मर्जी से सब चलता है
मैं स्वीकार करूं या इनकार
इससे फर्क कहां पड़ता है
जिसको जैसा होना है
वह बिल्कुल वैसा है
मैं न समझूंँ उसे कुछ और कहूं
यह मेरी अपनी सुविधा है
सच तो इतना ही है
जिनके हिस्से में जो जितना है
बस उतना ही मिलता है
अब सुख दुख की बात चली तो
सबको सुख कम लगता है
जबकि दोनों साथ में है
एक सिक्के के दो पहलू हैं
मैं ही क्यों? सहता हूंँ?
मेरी किस्मत क्यों ऐसी है ?
यह बात नयी नहीं है
सबको ऐसा ही लगता है
अपना दुख हमको
सबसे भारी दिखता है
दुख की यही कहानी है
मुरझाए लटके चेहरे संग
अच्छे से कहनी है
जबकि यह भी उतना ही मेरा है
जितना सुख को मैं समझता हूंँ
यह जब साथ रहे
बढ़कर इसको भी सम्बल देना
संभाल लूंगा तुमको भी
अपनी तो आदत है
हंस के गले लगाना है
ए भी तो अपना है
मेरा असल हिस्सा है
अब देखे कैसे कितनी देर
एक दूजे को थामे रहते हैं
हंसने की आदत से
दुख भी थक जाता है
धीरे-धीरे वह भी हंसने लग जाता है
दुख जब हंसके मिलने लगे
और हंसी बढ़ जाती है
अब दुःख सुख की बात नहीं है
जब हम हंसते हैं
सारी दुनिया हंसती है
©️RajhansRaju
🌹❤️🙏🙏🌹🌹
किसकी कमी है
किसकी कमी है ?
जो है नहीं
उसकी कमी है
और जो कम है
उसकी कमी है
जो ज्यादा नहीं है
उसकी कमी है
जो ज्यादा है
और ज्यादा नहीं है
उसकी कमी है
तो ज्यादा क्या है
कमी कम नहीं
वही ज्यादा है
©️विनोद कुमार शुक्ल
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एक अच्छी घटना
एक अच्छी घटना
तुम घटाने में रहना
बल्कि घट जाना
बार बार घट जाना
प्रत्येक मनुष्य का जीवन
अच्छा मुहूर्त है
सुख की घटना के लिए
©️विनोद कुमार शुक्ल
वह कौन सा दिन होगा
जब मैं नहीं रहूँगा
उस दिन भी रोज की तरह
कामकाज से
जीवन को दुहराता हुआ
वह दिन सप्ताह का आठवाँ दिन होगा
वर्ष का तेरहवाँ महीना
और मैं मृत्यु के अंतिम वर्ष को
बहुत जीवित रहते हुए
मृत्यु के बाद के वर्ष की तरह जीऊँ
और इसी प्रतिक्षा को स्वर्ग समझ लूँ
©️विनोद कुमार शुक्ल
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🌹❤️🙏🙏🌹🌹
पड़ोस आ गया
पड़ोस आ गया
जैसे घर आ गया
जहां मेरा घर था
वहाँ बचा हुआ
यह मेरा पड़ोस
बचा हुआ
मेरा घर है।
घरों के मुहल्ले में
रह जाने घर आ गया
©️विनोद कुमार शुक्ल
पड़ोस आ गया
जहां मेरा घर था
और मुहल्ला
कुछ देर रह जाने के लिए
मेरे घरों का मुहल्ला है
अब मुहल्ले में रहूँगा
©️विनोद कुमार शुक्ल
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🌹❤️🙏🙏🌹🌹
हर वो आदमी
जो शायद मुझसे कभी
मिला नहीं होता
मैं उससे भी पूछ लेता हूँ
क्या? हम पहले भी मिले थे
उसे दुविधा होती है
क्षण भर भी नहीं
और वह कहता है नहीं
और मुझे लगता है
लगता ही रहता है
कि हम कभी पहले भी मिले हैं
और मुझे भी दुविधा होती है
क्षण भर भी नहीं ।
मिलने के बाद
और कोई मिलेगा
के इंतजार में
ऐसा लगता है
मेरी उम्र का इतना समय तो हो चुका
कि मैं सभी लोगों से मिल चुका हूँ
मिलने को कुछ लोग बचे हैं
तो कुछ दिन मेरे है
और मैं यह काम पूरा कर लूँगा
©️विनोद कुमार शुक्ल
🌹❤️🙏🙏🌹🌹
प्रवास के पहले
प्रवास के पहले सोचता हूँ
कि निवास करता हूँ
आकाश को देखता हूँ
और घर के कोने को प्राणाम करता हूँ
घर के आगे, पिछवाड़े
छानी छप्पर, आले बाली को,
घर के इस पार उस पार को
खुली खिड़की दरवाजे को
दिन रात को
लोगों को प्रणाम करता हूँ
कि निवासियों !
प्रणाम करता हूँ
©️विनोद कुमार शुक्ल
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कितना सारा गंतव्य
कितना सारा गंतव्य
निकल पड़े का जीवन
बल्कि कितनी जगहें,
लोग दूर-दूर की दूरी
दूर-दूर का पास पड़ोस।
पाँच जगह नहीं होने के
मेरे पाँच एकांत
पाँच जगह होने के
मेरे पाँच गंतव्य
बल्कि कई जगह नहीं होने की
मेरे एकांत की भीड़
इन एकांतों की भीड़ के आगे
गंतव्यों की भीड़
बल्कि गंतव्यों का जुलूस
बल्कि इसके पीछे
अकेला पीछे
बल्कि एक जगह होने के
एक एकांत से
जगह-जगह होते जाने का पंख पसार
बल्कि बांह पसार
©️विनोद कुमार शुक्ल
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पानी को
पानी को
पानी की गठरी में बांध दिया
कपड़े को कपड़े की गठरी में
पानी की गठरी है तालाब, कमल गाठनें है।
खिले-खिले अधखिले कमल से
अपने-अपने में बहता पानी
अपने तुपने में
फिर तुपने में बहता
जल की बड़ी बूंद तालाब
जल को पानी की गठरी में बांध दिया।
उससे यहीं मिलने का निश्चय।
उससे वहीं मिलने के निश्चय को
यहीं मिलने के निश्चय में
बांध दिया
©️विनोद कुमार शुक्ल
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प्रतिमाएं पत्थर की हैं
प्रतिमाएं पत्थर की हैं
मूर्तियों में आनंद पत्थर का
सुख पत्थर का है
इस सुख से मुस्कराहट पत्थर की
हमारी चितवन के सामने पत्थर है
परंतु सब कुछ सजीव
कि प्रतिमा के चितवन के सामने
हम दोनों पथराए
हमारे पथराने में मूर्तियों का सौष्ठव
मूर्तियों की नक्काशी
हम दोनों के आलिंगन में पथराए
©️विनोद कुमार शुक्ल
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यह अनंत अंत का दौर
यह अनंत अंत का दौर
आत्मसात के गाँव में
आत्मसात का ठौर
आत्मसात का बराबर
आबकी बार, अगली बार
इस बार
हर बार का दौर
हर बार के इस गाँव में
हर बार का ठौर
मिलने और बिछड़ने के पहले
बस इतना जीवन
इस लीवन का और
एक साथ के इस गाँव में
एक साथ का ठौर
©️विनोद कुमार शुक्ल
चार आने
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एक राजा भेष बदलकर राज्य में घूम रहा था उसकी नजर एक किसान पर पड़ी जो किसी पेड़ की छांव में बैठकर भोजन कर रहा था किसान के वस्त्र देख राजा के मन में आया वह किसान को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दे दे ताकि उसके जीवन में कुछ खुशियां आ पाए
राजा किसान के समीप जाकर बोला - "मुझे तुम्हारे खेत के पास यह चार स्वर्ण मुद्राएं गिरी मिली है खेत तुम्हारा है इसलिए मुद्राएं तुम ही रख लो"
किसान ने कहा -"धन्यवाद पर यह मुद्राएं मेरी नहीं, उन्हें आप ही रखें या किसी और को दान कर दें, मुझे इनकी जरूरत नहीं"
राजा को बड़ा अजीब लगा उन्होंने फिर से कहा -"बंधु धन की आवश्यकता किसे नहीं होती भला"
सेठजी मैं रोज चार आने कमा लेता हूंँ और उतने में ही प्रसन्न रहता हूं संतोषी किसान ने जवाब दिया
यह कैसे संभव है राजा ने पूछा -
किसान ने कहा प्रसन्नता इस पर निर्भर नहीं करती कि आप कितना कमाते हैं यह तो उस धन के प्रयोग पर निर्भर करती है इन चार आनों में से एक में कुएं में डाल देता हूंँ, दूसरे से कर्ज चुका देता हूं, तीसरा उधर में दे देता हूंँ और चौथा मिट्टी में गाड़ देता हूंँ
राजा को किसान के उत्तर समझ नहीं आया उसने खूब सोचा, अपने मंत्रियों से भी सलाह ली, सब ने अपने-अपने विचार जाहिर किये, अंत में अगले दिन किसान को दरबार में बुलाया गया। राजा ने किसान को बताया कि वह उसकी संतुष्टि देखकर प्रसन्न हुए, राजा ने किसान को अपनी बात समझाने के लिए कहा-
किसान बोला "हुजूर जैसा कि मैंने बताया था मैं एक आना कुएं में डाल देता हूंँ यानी मैं अपने परिवार के भरण पोषण में लगा देता हूंँ"
दूसरे से मैं कर्ज चुकता हूंँ मतलब मैं अपने वृद्ध मां-बाप की सेवा में लगा देता हूँ
तीसरा मैं उधार दे देता हूंँ यानी अपने बच्चों की शिक्षा आदमी लगा देता हूँ
और चौथ में मिट्टी में गाड़ देता हूंँ यानी मैं एक पैसे की बचत कर लेता हूं ताकि मुझे किसी से मांगना ना पड़े इस राशि से मैं धार्मिक सामाजिक काम करता हूंँ राजा यह सुनकर प्रसन्न हो गया
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आइने को
ReplyDeleteखुद से शिकायत है
पहले जिंहें देखता था
नजर नहीं आते
सब एक जैसे लगने लगे हैं
कहीं वह भी
चेहरा तो नहीं बन गया
बाजार का दस्तूर
निभाने लग गया हो
सदा आइना बने रहना
आसान तो नहीं है
यह अनंत अंत का दौर
ReplyDeleteआत्मसात के गाँव में
आत्मसात का ठौर
हम दोनों पथराए
ReplyDeleteहमारे पथराने में मूर्तियों का सौष्ठव
मूर्तियों की नक्काशी
हम दोनों के आलिंगन में पथराए
चौखट जिस दीवार में था
ReplyDeleteउससे जब दरवाजा टकराया
कुंडी का निशान दीवार पर उभर आया
दरवाजा मुस्कराया,
उसने पूरी ताकत लगाया था
अब सुख दुख की बात चली तो
ReplyDeleteसबको सुख कम लगता है
जबकि दोनों साथ में है
एक सिक्के के दो पहलू हैं
मैं ही क्यों? सहता हूंँ?
मेरी किस्मत क्यों ऐसी है ?
यह बात नयी नहीं है
सबको ऐसा ही लगता है
Lajawab
ReplyDeleteसभी को आभार
ReplyDeleteकुंडी लगते ही दरवाजा स्थिर हो गया
ReplyDeleteदीवार के गले लगकर सुरक्षित हो गया
©️RajhansRaju