talab
तालाब
*****
गांव के बाहर
एक बूढ़ा तालाब था
उसके चारों तरफ
हरा-भरा बाग था
तरह-तरह के पक्षी
नजर आ जाते थे
तालाब के दक्षिण तरफ
जो हिस्सा था
जहां कोई जाता नहीं था
वहाँ बहुत सारे कंटीले पेड़ थे
उधर बच्चों का जाना माना था
सबका मानना यही था
वहाँ जहरीले सांप रहते हैं
उसका यह हिस्सा पथरीला था
नागफनी के लिए ही
जैसे उसने सहेज रखा था
ऐसे ही सबकी अपनी
एक निश्चित जगह थी
जो तालाब के किस तरफ है
इससे उसकी
पहचान निर्धारित
हो जाया करती थी
तालाब के हर तरफ
कुछ न कुछ अनोखा था
जो अपनी एक जगह रखता था
वह जगह उसके लिए खास थी
नहीं-नहीं उस जगह की
उससे पहचान थी
जगह का मतलब समझते हैं
अरे वही जमीन
यकीन मानिए
जो जहां ... जितने में था
पूरा था
बच्चे बूढ़े तफरी के लिए
तालाब किनारे घंटो
बैठे रहा करते
उसमें कुछ लोग
मछली पकड़ने आते
कई घंटे कांटे लगाए रहते
यह वक्त बिताने का
खेल अच्छा था
मछली फंस गई तो ठीक
नहीं तो बड़े आराम से
पूरा दिन गुजर जाता था
ऐसे ही तालाब का
साथ मिल जाता था
बातों के विषय
कोई निश्चित नहीं थे
रोज बात करना था
सब-सब के बारे में
सब कुछ जानते थे
गांव का एक बड़ा हिस्सा
तालाब के पास था
तालाब की
अपनी एक जगह थी
अपना अस्तित्व था
हर आदमी अपने हिसाब से
कुछ न कुछ देखता था
कोई उसके चारों तरफ की
जमीन देखता था
फिर शहर से कुछ पढ़े-लिखे
शातिर लोग
तालाब के पास आए
मतलब तालाब के बगल से
एक रास्ता
बनाए जाने का प्रस्ताव लाए
एक छोटी सी सड़क
जिससे गांव और तालाब की
बेहतरी होगी
यही समझ में आया
जो अच्छे से समझाया गया था
गांव वालों को बड़ा अच्छा लगा
सच में गांव शहर से जुड़ जाएगा
आना जाना आसान हो जाएगा
समय के साथ
चीजों को बदलना चाहिए
तालाब के अलावा भी
गांव को बहुत कुछ चाहिए
गांव वाले पढ़ने लिखने लग गए
कुछ तो बहुत शिक्षित हो गए
सड़क बनके तैयार हो गई
अब सिर्फ तालाब के किनारे
बैठने की जरूरत नहीं रह गई
जिसे छोटा सा रास्ता कहा गया था
उस पर सफर का अंत नहीं था
गांव में शहर, शहर में गांव
धीरे-धीरे यह समझना
मुश्किल हो गया
समझदार लोगों की आंख में
धीरे-धीरे तालाब खटकने लगा
ऐसे ही गांव सिमटने लगा
अब वह जगह
जहां कटीले पेड़ हुआ करते थे
सिर्फ झाड़ियां थी
नाग नागिन की कहानी थी
वहाँ ऐसा कुछ नजर नहीं आता
एक खुला मैदान है
एकदम समतल
कहीं कोई कांटेदार पेड़ नहीं
न पक्षियों न बच्चों का शोर है
सुना है इस पर
किसी दबंग का अधिकार है
तालाब ऐसे ही
सिकुड़ने लग गया
कुछ साल और बीत गए
वह नजर नहीं आता
सुना है
कुछ साल पहले
गांव में लूट हुई थी
शायद वह उनका शिकार हो गया
या फिर
बेपरवाह अपनों से थक गया
फिलहाल
न जाने कहां खो गया
गांव में पुराने लोगों के पास
सिर्फ उसकी यादें हैं
उनसे उनका तालाब
बहुत दूर चला गया
इसके लिए वह भी जिम्मेदार हैं
इसमें उनकी कितनी गलती है
यह कैसे कहें कि
यह उनके भी लालच की कहानी है
जिसकी कीमत तालाब ने
अस्तित्व खोकर चुकाई है
तालाब अपने साथ
न जाने क्या-क्या ले गया
यह अब समझ में आता है
वह कितना अनमोल था
जिसने हमसे कुछ लिया नहीं
सिर्फ देने का काम किया था
अफसोस यह है
जो अब के बच्चे हैं
उनके पास याद रखने के लिए
कोई तालाब नहीं है
अब उसकी स्मृति नहीं बनेगी
ऐसे ही धीरे-धीरे
उसके पास वाले कुंए भी सूख गए
मीठे पानी का बड़ा स्रोत
अब उनका नहीं रहा
सड़के और अच्छी बन गई हैं
घर में पानी साफ करने की
मशीन लग गई है
बिजली 24 घंटे आती है
सबके हाथ में मोबाइल है
बस साथ बैठने की फुर्सत नहीं है
हालांकि किसी के पास
वक्त की कमी नहीं है
हर आदमी व्यस्त है
तालाब खो जाने का
एहसास ही नहीं है
वैसे भी कितने सारे काम है
तालाब
प्रश्नवाचक हो गया है
जिस पर
बड़े सेमीनार का आयोजन है
जिनकी स्मृति में
अब भी तालाब है
वह लोग यहां पर नहीं हैं
शायद यह
वही जगह
जहां सभागार है
पहले ....
सबके पास एक छोटी सी
प्लास्टिक के बोतल में
कहते हैं साफ पानी है
पहला घूंट पीते वक्त
अक्सर एक हिचकी आती है
शायद ....
हमारे किसी कोने में
अब भी तालाब मौजूद है
जिसको हमारी
या फिर हमको ...
उसकी याद आती है
©️ RajhansRaju
*******
मेरा सफर
यह कहना भी क्या
कैसे गुजर गए दिन
साथ तुम भी तो चले थे
वैसे ही लड़े थे
वैसे ही खड़े थे
मैं अकेला होकर भी
अकेला कहां था
कहीं ना कहीं तुम मौजूद थे
वैसे भी खोने के लिए
कभी कुछ होता नहीं है
गौर से देखो
हाथ अब भी खाली है
यही शिकायत सबको है
उनकी चाहत का उन्हें मिला नहीं
इसी गिला में जीते हैं
मुठ्ठी बांधकर रखते हैं
रेत आहिस्ता से फिसल जाती है
हाथ खोला तो
रेत के होने का
कहीं कोई निशान नहीं था
बस लकीरें हैं
जिन्हें पढ़ने कि नाकाम
कोशिशें करते हैं
हकीकत में रेत ने
अपना रास्ता बताया है
जो अपने थे वह अपने हैं
बस सफर की अपनी मजबूरियां है
कोई इस तरफ है
कोई उस तरफ है
कोई यहां है कोई वहां है
यह और है कि
अब उसी तरह से
डगर में
हम मिलते नहीं
मगर हम चल रहे हैं
तुम भी चल रहे हो
यही वो वक्त है
जो निरंतर पहले भी ऐसे ही था
या वह भी वह नहीं है
किसी से शिकवा शिकायत करें
खुश रहे हैं या फिर दुखी रहे
वक्त का इन चीजों से वास्ता नहीं है
वह तो महज
एक पुरानी ट्रेन का डिब्बा है
जिसका इंजन
उससे भी बहुत पुराना है
कौन कब उसमें
सवार होकर उतर जाता है
उसे सवारियों कि
ऐसी आदत हो गई है
वह उनसे बेखबर बना रहता है
ऐसे ही हमारी मुसाफिरत है
जहां मुसाफिर होने कि
स्मृति न जाने कब खो गई
जबकि सफर पर हम सभी हैं
सबकी अपनी दुश्वारियां हैं
वक्त किसी के पास नहीं है
क्योंकि सबकी अपनी मियाद है
हर लम्हा ऐसे ही गुजर जाता है
जो लम्हा अब है
वही तो बस बचा है
उम्मीद है जिसकी आएगा
वह कभी आता नहीं है
इंतजार हमेशा यूं ही
कायम रहता है
सफर के सिवा
कहां कुछ रह जाता है
ऐसे ही हरदम बाकी रह जाता है
तारीख बदलती हैं
कैलेंडर बदल जाता है
चलो इस नए कैलेंडर के लिए
कुछ कहना हैं
इसलिए कह देते हैं
पर क्या
सफर तुम्हारा है
तुम्हें ही चलना है
©️ RajhansRaju
कैसे गुजर गए दिन
साथ तुम भी तो चले थे
वैसे ही लड़े थे
वैसे ही खड़े थे
मैं अकेला होकर भी
अकेला कहां था
कहीं ना कहीं तुम मौजूद थे
वैसे भी खोने के लिए
कभी कुछ होता नहीं है
गौर से देखो
हाथ अब भी खाली है
यही शिकायत सबको है
उनकी चाहत का उन्हें मिला नहीं
इसी गिला में जीते हैं
मुठ्ठी बांधकर रखते हैं
रेत आहिस्ता से फिसल जाती है
हाथ खोला तो
रेत के होने का
कहीं कोई निशान नहीं था
बस लकीरें हैं
जिन्हें पढ़ने कि नाकाम
कोशिशें करते हैं
हकीकत में रेत ने
अपना रास्ता बताया है
जो अपने थे वह अपने हैं
बस सफर की अपनी मजबूरियां है
कोई इस तरफ है
कोई उस तरफ है
कोई यहां है कोई वहां है
यह और है कि
अब उसी तरह से
डगर में
हम मिलते नहीं
मगर हम चल रहे हैं
तुम भी चल रहे हो
यही वो वक्त है
जो निरंतर पहले भी ऐसे ही था
या वह भी वह नहीं है
किसी से शिकवा शिकायत करें
खुश रहे हैं या फिर दुखी रहे
वक्त का इन चीजों से वास्ता नहीं है
वह तो महज
एक पुरानी ट्रेन का डिब्बा है
जिसका इंजन
उससे भी बहुत पुराना है
कौन कब उसमें
सवार होकर उतर जाता है
उसे सवारियों कि
ऐसी आदत हो गई है
वह उनसे बेखबर बना रहता है
ऐसे ही हमारी मुसाफिरत है
जहां मुसाफिर होने कि
स्मृति न जाने कब खो गई
जबकि सफर पर हम सभी हैं
सबकी अपनी दुश्वारियां हैं
वक्त किसी के पास नहीं है
क्योंकि सबकी अपनी मियाद है
हर लम्हा ऐसे ही गुजर जाता है
जो लम्हा अब है
वही तो बस बचा है
उम्मीद है जिसकी आएगा
वह कभी आता नहीं है
इंतजार हमेशा यूं ही
कायम रहता है
सफर के सिवा
कहां कुछ रह जाता है
ऐसे ही हरदम बाकी रह जाता है
तारीख बदलती हैं
कैलेंडर बदल जाता है
चलो इस नए कैलेंडर के लिए
कुछ कहना हैं
इसलिए कह देते हैं
पर क्या
सफर तुम्हारा है
तुम्हें ही चलना है
©️ RajhansRaju
The tree
******
मैं ठहरा हुआ
दुनिया की नजर में हूंँ
गौर से देखो मेरा सफर
मैं भी कितना बदल गया हूंँ
तुम्हारी तरह ही पहले जैसा
मैं भी नहीं हूंँ
उम्र का असर मुझ पर भी है
तुम कितनी जल्दी
अपनी मियाद पर पहुंँच गए
बूढ़े कमजोरी लगने लगे हो
जबकि मैं वक्त के साथ बढ़ता रहा हूंँ
मैं सूख जाऊंँ तो
आग सहेजने का काम करता हूंँ
जिंदा रहूंँ या मर जाऊंँ
बस औरों के काम आता हूंँ
मेरी टहनियों पर
न जाने कितने घोसले हैं
तुम्हारे यहां ठहरने की वजह
मेरी परछाई है
जिससे तुम्हें ठंडक मिलती है
और मां की याद आती है
©️Rajhansraju
🌹❤️🙏🙏🌹🌹
***************
*************
to visit other pages
**********
👇👇👇
click Images
**********
हम अपनी राह चलते रहे
अपनी-अपनी कहते रहे
एक अरसा हो गया
न वो मिले न हम
©️Rajhansraju
मौन बे-शब्द
भाषा रहित नहीं होता
इसे समझने के लिए
थोड़ा धैर्य चाहिए
चुपचाप देखना सुनना है
मौन तक पहुंचना है
फिर कुछ
कहना भी नहीं है
©️RajhansRaju
*************
वह हमें कितना भी
अच्छा या बुरा लगे
उसे कोई
फर्क नहीं पड़ता
मुसाफिरत के सिवा
उसे कुछ आता नहीं है
जनाब वक्त की
फितरत ही ऐसी है
कभी कहीं
ठहरता नहीं है
©️RajhansRaju
**********
🌹❤️🙏🙏🌹🌹
कहांँ के लिए चले थे
कहांँ आ गए
तूंँ ही बता जिंदगी
ए क्या हो गए
©️Rajhansraju
नदी को पता नहीं था
कौन किस पार है
दोनों तरफ के लोग
अपने दावे करते रहे
वह किनारों के बीच
चुपचाप चलती रही
और समुंदर बन गई
©️RajhansRaju
******
लगता है मैं कुछ दिख नहीं रहा
शुरुआत घर से हुई
धीरे-धीरे इस तरह तक हुई कि मैं
घर पर हूंँ पर हूंँ नहीं
सच में मैं नहीं दिख रहा हूंँ
और कहीं छुपा नहीं
घर की खिड़की से फिर बाहर निकल कर
पड़ोसियों को आते जाते देखता हूंँ
नहीं दिखने के खेल का जादू
यह बचपन की इच्छा
गायब होने का जादू
बुढ़ापे में मिला
©️ विनोद कुमार शुक्ल
शुरुआत घर से हुई
धीरे-धीरे इस तरह तक हुई कि मैं
घर पर हूंँ पर हूंँ नहीं
सच में मैं नहीं दिख रहा हूंँ
और कहीं छुपा नहीं
घर की खिड़की से फिर बाहर निकल कर
पड़ोसियों को आते जाते देखता हूंँ
नहीं दिखने के खेल का जादू
यह बचपन की इच्छा
गायब होने का जादू
बुढ़ापे में मिला
©️ विनोद कुमार शुक्ल
उसने आहिस्ता से
किनारा छोड़ा दिया
सब गहरी नींद में थे
कौन कब किससे छूटा
यह पता नहीं चला
©️ Rajhansraju
🌹❤️🙏🙏🌹🌹
***************
*************
to visit other pages
**********
कितना बहुत है
परंतु अतिरिक्त एक भी नहीं
एक पेड़ में कितनी सारी पत्तियाँ
अतिरिक्त एक पत्ती नहीं
एक कोंपल नहीं अतिरिक्त
एक नक्षत्र अनगिन होने के बाद।
अतिरिक्त नहीं है
गंगा अकेली एक होने के बाद—
न उसका एक कलश गंगाजल,
बाढ़ से भरी एक ब्रह्मपुत्र
न उसका एक अंजुलि जल
और इतना सारा एक आकाश
न उसकी एक छोटी अंतहीन झलक।
कितनी कमी है
तुम ही नहीं हो केवल बंधु
सब ही
परंतु अतिरिक्त एक बंधु नहीं।
©️विनोद कुमार शुक्ल
परंतु अतिरिक्त एक भी नहीं
एक पेड़ में कितनी सारी पत्तियाँ
अतिरिक्त एक पत्ती नहीं
एक कोंपल नहीं अतिरिक्त
एक नक्षत्र अनगिन होने के बाद।
अतिरिक्त नहीं है
गंगा अकेली एक होने के बाद—
न उसका एक कलश गंगाजल,
बाढ़ से भरी एक ब्रह्मपुत्र
न उसका एक अंजुलि जल
और इतना सारा एक आकाश
न उसकी एक छोटी अंतहीन झलक।
कितनी कमी है
तुम ही नहीं हो केवल बंधु
सब ही
परंतु अतिरिक्त एक बंधु नहीं।
©️विनोद कुमार शुक्ल
***********
🌹❤️🙏🙏🌹🌹
*****************
my facebook page
***************
***********
facebook profile
************
***************
🌹❤️🙏🙏🌹🌹
*********************
my
Youtube channels
**************
👇👇👇
**************************
my Bloggs
***************
👇👇👇👇👇
********************
*************
to visit other pages
***********
*************
**********
*************
lajawab
ReplyDeleteआइए कुछ रचते हैं
ReplyDeleteकहानी और कविता हमारी अभिव्यक्ति के ही आयाम है
ReplyDeleteजिंदगी की कहानी के लिए आभार
ReplyDelete