घर से निकलते ही | anything | कुछ भी
नजरिया
सही-गलत, अiच्छा-बुरा
साथ-साथ चलते हैं
नीम के कड़वे पत्ते
दवा बनते हैं
वह चोला पहन फकीरों का
धंधे तमाम करता है
आदमी अच्छा है
इस बात के नारे लग रहे हैं
कोई देखता सुनता नहीं है
चारों तरफ भीड़ बहुत है।
अपने आसपास देखता हूँ
जिनके ऊपर बड़ा इल्ज़ाम है
वही बेहतरीन लाजवाब है
चलन है इस तरह खोटे का,
कोई उसे पलटकर देखता नहीं है
सही-गलत का एक तरफा फैसला
अपनी सहूलियत से करता है
जबकि सब कुछ अधूरा है
हर सिक्के के दो पहलू हैं
एक तरफा नजरिया
सही नहीं है
Rajhans Raju
********************
(2)
एक बार
उस पर बहुत खूबसूरत फूल लगे थे
वह खुशबू आज तलक
लोगों के जेहन में है
उसके फूल और खुशबू की
हर बुजुर्ग चर्चे करता है
जैसे अब भी उसी के इंतजार
वह यहाँ ठहरा हुआ है
शायद इस बरस
दरख़्त उन फूलों से सज जाए
ऐसे ही न जाने कब से
उसे तकते-तकते
मैं बूढ़ा हो चला हूँ
कमबख्त इंतजार की आदत,
कुछ इस तरह बन गयी है,
कहीं और जा पाता नहीं हूँ
जबकि सुना है कुछ दरख़्तों में
सिर्फ़ एक बार
फूल खिलते हैं
Rajhans Raju
*******************
(3)
वजूद
कभी मिल नहीं पाती,
उनके आने-जाने के बीच,
फासला..
हरदम कायम रहता है,
वह सुबह के इंतजार में,
रात के साये में बैठी रही,
जब सुबह दूर से आता दिखाई पड़ा,
वह वक्त की उंगली थामे पिघलने लगी,
उसकी आगोशी में,
कब समा गई,
और सुबह हो गई
पता नहीं चला
दोनों एक दूसरे का वजूद,
अपने अंदर इस तरह सहेजते हैं,
जैसे माँ बच्चे को,
रिश्ता हो,
जो एक दूसरे को गढ़ने का
अंतहीन सिलसिला है
जिसमे पता ही नहीं चलता
कौन किससे है
आज ही की बात है
जब सुबह ढलने लगा था
साँझ की तरफ चलने लगा था
तब वह मुस्कराने लगी
बहुत खूबसूरत नजर आ रही थी
मगर अब सुबह
कहीं दिखता नहीं
शाम अकेली है
उसके इंतजार में कोई गीत गा रही है
ए सफर भी अजब है
जिसकी तलाश में हैं
उसी में
खुद को में मिटा देते हैं
और एक ही वजूद के
कई नाम पड़ जाते हैं
ऐसे ही सुबह शाम को
अलग-अलग देखते हैं
©Rajhans Raju
*********************
(4)
चलो चलते हैं
उस पार चलने को कहता है
कब से ठहरा हूँ यहीं पे
मुद्दत हो गई
उसको कहते-कहते
शायद थक गया है
इस वजह से,
अब कुछ कहता नहीं है
नाव खाली चली जाती है
जो दोनों तरफ को जोड़ती है
यह बात जो समझता है
उसे नाव की तलाश रहती है
उस पार जाने का यही रास्ता है
पर नदी तक,
जो जितना जिंदा है,
उतना ही पहुँचता है
दुनिया के अंधेरे उजाले से
अंदर कोई फर्क नहीं पड़ता
नाव तक जिसको जाना है,
उन्हें चलना पड़ता है
Rajhans Raju
********************
शाख से बिछड़े,
अरमान यही है,
दौड़कर तेरे गले लग जाऊँ,
पर तुझसे रिश्ता तभी तक है
जब तक मैं हरा हूँ,
टूटे पत्तों का सफर,
वैसे भी तिनका है,
काश ऐसा हो,
मैं बादल बन जाऊँ,
बढ़ता बंजर हरा-भरा कर दूँ
Rajhans Raju
*******************
(6)
चुपके-चुपके
नमी आ जाती है,
जो कहा नहीं,
वह भी बता जाती है
आँख की बात समझना,
अच्छा नहीं है,
सच पूछो तो,
बात यह है कि,
अनकहा औरों को,
कहीं पता न चल जाये,
इस डर से,
किसी का सामना करता नहीं है
वह झूठ बोलकर,
निकल जाना चाहता है,
अपना अश्क,
अब वह देखता नहीं है
Rajhans Raju
*******************
संगम यात्रा
***********************
संगम यात्रा
(7)
मुसाफिर
आसमान और जमीन में,
कोई फर्क नहीं है,
कौन कहाँ पर है,
यह तो सिर्फ,
इससे तय होता है
रास्ते ने दूरियों को,
कुछ इस तरह थाम रखा है,
दोनों जुदा नहीं है,
यही बताता है,
जो चलता रहता है
वह मुसाफिर,
धीरे-धीरे हर जगह,
पहुँच जाता है
Rajhans Raju
*******************
(8)
तलाश
कभी मिल नहीं पाती,
उनके आने-जाने के बीच,
फासला कुछ इस तरह,
हर समय कायम रहता है,
वह सुबह के इंतजार में,
रात के साये में बैठी रही,
जब सुबह दूर से आता दिखाई पड़ा,
वह वक्त की उंगली थामे पिघलने लगी,
सुबह में कुछ इस तरह समा गई,
उसको उसके वजूद का,
अपने अंदर एहसास न हुआ,
रोज यही होता है,
दोनों तलाश में,
खुद को एक-दूसरे में मिटा देते हैं,
Rajhans Raju
********************
(9)
भूल जाते हैं
भूल जाने का बहाना
अचानक काम पड़ जाना
फिर बहुत दूर चले जाना
उस शख्स में यही ऐब है
किसी की सुनता नहीं,
बस अपनी निशानियां छोड़ जाता है
किसी एक जगह टिकता नहीं है
Rajhans Raju
********************
(10)
ठहर जाओ
जब बारिश बहुत तेज हो रही थी,
मुंडेर पर वो चिड़िया,
बहुत परेशान थी,
तब घोसले को बड़े आहिस्ता से,
वहीं आड़ में रख दिया था,
एक रिश्ते की शुरुआत हुई थी,
उस दिन हम,
आसमानी फरिश्तों से जुड़े थे,
आज फिर उसी छत आया हूँ,
मेरा एक काम करोगे,
उस लम्हे को,
सदा के लिये,
मेरे पास,
यूँ ही रहने दो
Rajhans Raju
********************
(11)
कुछ इस तरह रंगता है,
जहाँ इंद्रधनुष समाया है,
वह बे-रंग दिखता है,
यकीं नहीं होता,
तेरी खूबियों पर,
जबकि अंदर-बाहर,
तूँ बिखरा पड़ा है,
"ओ चित्रकार"
मैं कहाँ तक देखूँ,
तेरा कैनवास,
बहुत बड़ा है
Rajhans Raju
*********************
कोरोना और हम
***********************
(12)
यह कहना,
आदत सी हो गई है,
बड़ी मुश्किल से,
क्या हुआ?
कोई पूछता है,
वह पहले मुस्कराता है,
और चेहरा छिपाता हुआ,
न जाने किस तरफ,
चल पड़ता है
Rajhans Raju
*********************
(13)
वह गुमशुदा आदमी
अब भी रहता है
जब सब लोग
घरों में कैद थे
तब भी वह,
न जाने किसकी रखवाली में,
मौन साधे यहीं पर था,
कैसे भी मौसम आए-गए,
उसके तन पर पर कपड़े मौजूद रहे,
उसने कभी किसी कुछ मांगा नहीं,
जिंदा रहने की सारी चीजें मिलती रही,
यकीन मानिए,
मेरा शहर जिंदा है,
यहाँ लोग अब भी,
रिश्ता निभाते हैं,
यह उनकी मर्जी है,
रात बहुत हो गई,
वह आदमी,
गहरी नींद में
सोया हुआ है
Rajhans Raju
********************
(14)
वह कहीं ठहरता नहीं है,
जबकि वक्त लम्हों का,
सिलसिला है,
वह लम्हों को अपने पीछे,
छोड़ता चला जाता है,
चाहे तो पलटकर देख लें,
बचपन अब भी,
वहीं ठहरा हुआ है,
हर लम्हा जेहन में,
वैसे ही बैठा हुआ है,
वह कहीं गया नहीं है,
वह पुराने पन्ने पर,
वैसे ही किसी इंतजार में,
ठहरा हुआ है
Rajhans Raju
*******************
(15)
अच्छा नहीं लगता,
वैसे भी आराम,
कोई काम तो है नहीं,
उसके लिये रोटी,
बहुत मंहगी है,
जो बाजार के हवाले है
जिसकी तय कीमत
सबको चुकानी है
अब किसके हिस्से,
कितनी आएगी,
यह भूख से नहीं,
भुगतान से तय होता है,
Rajhansraju
***********************
(16)
तो देखा,
चारों तरफ,
आसमान..
बिखरा पड़ा है
मेरी तो,
हदें हैं,
कहाँ कुछ,
समेट पाता हूँ
Rajhans Raju
*******************
(17)
वह अब कोई जिम्मेदारी
क्यों नहीं लेता!
बुजुर्ग ने हंसते हुए कहा...
मेरी आदत,
छूट जाए तो अच्छा है,
फिर आगे,
कमी भी नहीं खलेगी
Rajhans Raju
***********************
(18)
अच्छी खासी सूखी थी,
कई दिनों से भूखा था,
रोटी के चक्कर में ही,
चूहेदानी के अंदर था।
अबकी चूहा समझ गया,
कौन सी रोटी खानी है,
चूहेदानी में जबकी,
देशी घी वाली पूडी है।
चूहा खीं खीं खीं करता है,
आजू बाजू रहता है,
चूहेदानी मैनेज करता है,
अच्छा खासा मोटा है,
अब कहीं नहीं फँसता है।
Rajhans Raju
******** ************
(19)
तभी तो कोई सवाल नहीं था,
घंटों कहानियाँ सुनते,
उन्हीं खाबो को बुनते,
सब कुछ अच्छा होगा,
यह भरोसा कायम रहा,
तभी तो आज भी,
विराने, सूखे, बंजर में,
हरियाली का मंजर,
नजर आता है,
इन्हीं खाब के सहारे,
जिए जाता हूँ
Rajhans Raju
******************
(20)
पहली दफा कब रोया था,
हाँ!
जब उसने छुआ,
शायद हाथ भी थामा था,
उस लम्हे,
चेहरा छुपाया था,
आँसू..
नहीं रोक पाया था,
इस बेगाने को
कोई अपना सा लगा था,
वह पता नहीं कौन था.
Rajhans Raju
********************
(21)
कसूर मानता हूँ,
तुम्हें पता है? उन लोगों ने मुझसे कभी,
रुकने या जाने को नहीं कहा,
फिर भी अब तक वहीं,
ठहरा हूँ, कहीं और नहीं जा पाया,
सोचता हूँ तुमसे क्या कहूँ?
कि मै अब भी, यहाँ नहीं हूँ,
तुम्हारी शिकायत..
मै नहीं कहूँगा कि,
वह सच्ची है कि झूँठी,
पर मै नहीं जानता,
कैसे लोग?
यहाँ भी, वहाँ भी,
एक साथ रह लेते हैं।
-rajhansraju
*****************
(22)
सुलगते मसान का धुआँ है,
कब फिक्र थी फिजाओं की,
वहाँ तो चिंगारी छोड़ आए थे,
हरे दरख्तों को बड़ी खूबी से,
हमने ही तो मिटाया था,
😦😦
अब जब दम घुटने लगा,
😤😤
आग आग चिल्लाते हो।
😭😭
पानी का वजूद कैसा है?
लगता है हम सबकी,
😔😔😔
आँखों का भी सूख गया है।
-rajhansraju
****************
(23)
बड़ी समझदारी से हर बात की,
और मजेदार जिक्र करते रहे,
बात उनके लिए कुछ खास नहीं है,
फिर वही वैसे ही बहस जारी है,
बात सरहद की है रात में गोलियाँ चली थी,
आज सुबह से तमाम घरों में सन्नाटा पसरा है,
न जाने क्या हुआ होगा?
अभी तक कोई खबर नहीं आयी,
ऐसे हालात में अनचाही खामोशियाँ ,
तमाम उम्मीदें कायम रखती हैं,
कोई घर शहादत का जश्न,
नहीं चाहता,
वह तो सरहद पर अमन,
बच्चों की सुरक्षित वापसी चाहता है,
लकीर के उस पार भी ऐसा ही है,
इन घरों की आवाज सुनने वाला,
कोई नहीं है ...
rajhansraju
********************
आइये एक पागल की कहानी सुनते हैं
***********************
********************
(11)
चित्रकार
वह अपने रंग में दुनिया,कुछ इस तरह रंगता है,
जहाँ इंद्रधनुष समाया है,
वह बे-रंग दिखता है,
यकीं नहीं होता,
तेरी खूबियों पर,
जबकि अंदर-बाहर,
तूँ बिखरा पड़ा है,
"ओ चित्रकार"
मैं कहाँ तक देखूँ,
तेरा कैनवास,
बहुत बड़ा है
Rajhans Raju
*********************
कोरोना और हम
(12)
आदत
सब ठीक हैं,यह कहना,
आदत सी हो गई है,
बड़ी मुश्किल से,
क्या हुआ?
कोई पूछता है,
वह पहले मुस्कराता है,
और चेहरा छिपाता हुआ,
न जाने किस तरफ,
चल पड़ता है
Rajhans Raju
*********************
(13)
गुमशुदा
मेरे गली के मोड़ परवह गुमशुदा आदमी
अब भी रहता है
जब सब लोग
घरों में कैद थे
तब भी वह,
न जाने किसकी रखवाली में,
मौन साधे यहीं पर था,
कैसे भी मौसम आए-गए,
उसके तन पर पर कपड़े मौजूद रहे,
उसने कभी किसी कुछ मांगा नहीं,
जिंदा रहने की सारी चीजें मिलती रही,
यकीन मानिए,
मेरा शहर जिंदा है,
यहाँ लोग अब भी,
रिश्ता निभाते हैं,
यह उनकी मर्जी है,
रात बहुत हो गई,
वह आदमी,
गहरी नींद में
सोया हुआ है
Rajhans Raju
********************
(14)
सफर
कहते तो यही हैं,वह कहीं ठहरता नहीं है,
जबकि वक्त लम्हों का,
सिलसिला है,
वह लम्हों को अपने पीछे,
छोड़ता चला जाता है,
चाहे तो पलटकर देख लें,
बचपन अब भी,
वहीं ठहरा हुआ है,
हर लम्हा जेहन में,
वैसे ही बैठा हुआ है,
वह कहीं गया नहीं है,
वह पुराने पन्ने पर,
वैसे ही किसी इंतजार में,
ठहरा हुआ है
Rajhans Raju
*******************
(15)
दुनियादारी
छुट्टी और दिन का ढ़लना,अच्छा नहीं लगता,
वैसे भी आराम,
कोई काम तो है नहीं,
उसके लिये रोटी,
बहुत मंहगी है,
जो बाजार के हवाले है
जिसकी तय कीमत
सबको चुकानी है
अब किसके हिस्से,
कितनी आएगी,
यह भूख से नहीं,
भुगतान से तय होता है,
Rajhansraju
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(16)
आकाश
मुठ्ठी खुली,तो देखा,
चारों तरफ,
आसमान..
बिखरा पड़ा है
मेरी तो,
हदें हैं,
कहाँ कुछ,
समेट पाता हूँ
Rajhans Raju
*******************
(17)
जिम्मेदारियां
लोगों ने पूछावह अब कोई जिम्मेदारी
क्यों नहीं लेता!
बुजुर्ग ने हंसते हुए कहा...
मेरी आदत,
छूट जाए तो अच्छा है,
फिर आगे,
कमी भी नहीं खलेगी
Rajhans Raju
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(18)
चूहेदानी
पिछली बार जो रोटी थी,अच्छी खासी सूखी थी,
कई दिनों से भूखा था,
रोटी के चक्कर में ही,
चूहेदानी के अंदर था।
अबकी चूहा समझ गया,
कौन सी रोटी खानी है,
चूहेदानी में जबकी,
देशी घी वाली पूडी है।
चूहा खीं खीं खीं करता है,
आजू बाजू रहता है,
चूहेदानी मैनेज करता है,
अच्छा खासा मोटा है,
अब कहीं नहीं फँसता है।
Rajhans Raju
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(19)
सपना
सारी बातें यकीनन सच थी,तभी तो कोई सवाल नहीं था,
घंटों कहानियाँ सुनते,
उन्हीं खाबो को बुनते,
सब कुछ अच्छा होगा,
यह भरोसा कायम रहा,
तभी तो आज भी,
विराने, सूखे, बंजर में,
हरियाली का मंजर,
नजर आता है,
इन्हीं खाब के सहारे,
जिए जाता हूँ
Rajhans Raju
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(20)
भावना
याद कर रहा हूँपहली दफा कब रोया था,
हाँ!
जब उसने छुआ,
शायद हाथ भी थामा था,
उस लम्हे,
चेहरा छुपाया था,
आँसू..
नहीं रोक पाया था,
इस बेगाने को
कोई अपना सा लगा था,
वह पता नहीं कौन था.
Rajhans Raju
********************
(21)
शिकायत
मेरे न आने कि, शिकायत वाजिब है,कसूर मानता हूँ,
तुम्हें पता है? उन लोगों ने मुझसे कभी,
रुकने या जाने को नहीं कहा,
फिर भी अब तक वहीं,
ठहरा हूँ, कहीं और नहीं जा पाया,
सोचता हूँ तुमसे क्या कहूँ?
कि मै अब भी, यहाँ नहीं हूँ,
तुम्हारी शिकायत..
मै नहीं कहूँगा कि,
वह सच्ची है कि झूँठी,
पर मै नहीं जानता,
कैसे लोग?
यहाँ भी, वहाँ भी,
एक साथ रह लेते हैं।
-rajhansraju
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(22)
नमी
ए धुंध जो हर जगह छायी है,सुलगते मसान का धुआँ है,
कब फिक्र थी फिजाओं की,
वहाँ तो चिंगारी छोड़ आए थे,
हरे दरख्तों को बड़ी खूबी से,
हमने ही तो मिटाया था,
😦😦
अब जब दम घुटने लगा,
😤😤
आग आग चिल्लाते हो।
😭😭
पानी का वजूद कैसा है?
लगता है हम सबकी,
😔😔😔
आँखों का भी सूख गया है।
-rajhansraju
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(23)
उम्मीद
घरों में बैठे लोगों ने,बड़ी समझदारी से हर बात की,
और मजेदार जिक्र करते रहे,
बात उनके लिए कुछ खास नहीं है,
फिर वही वैसे ही बहस जारी है,
बात सरहद की है रात में गोलियाँ चली थी,
आज सुबह से तमाम घरों में सन्नाटा पसरा है,
न जाने क्या हुआ होगा?
अभी तक कोई खबर नहीं आयी,
ऐसे हालात में अनचाही खामोशियाँ ,
तमाम उम्मीदें कायम रखती हैं,
कोई घर शहादत का जश्न,
नहीं चाहता,
वह तो सरहद पर अमन,
बच्चों की सुरक्षित वापसी चाहता है,
लकीर के उस पार भी ऐसा ही है,
इन घरों की आवाज सुनने वाला,
कोई नहीं है ...
rajhansraju
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आइये एक पागल की कहानी सुनते हैं
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shabdon ki behtareen kareegari hum sabke sath share karane ke lie shukriya
ReplyDeleteइन शानदार शब्दों तक पहुंचना आसान नहीं होता क्योंकि ज़्यादातार इस ट्राफिक मे चीजें खो जाती हैं और बहुत सी अच्छी और सही बातें हम तक नहीं पहुँच पाती