Laawaris। Hindi Poem about unknown person
बेनाम-लावारिस
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चर्चा तो यहाँ भी है कत्ल का
जो कि नया नहीं है
हलांकि ए कत्ल किसने किया?
इसका कोई चश्मदीद नहीं है,
उसको किसी और ने मारा
या फिर वह खुद ही कातिल था
ए किसी को पता नहीं है।
सच ए है कि
वो जिंदा नहीं है,
यकीनन कत्ल तो हुआ है।
इसमें कोई शक नही है,
ऐसे ही मुर्दों के मिलने का सिलसिला
न जाने कब से चलता रहा।
ए बिना नाम
बिना पहचान के लोग।
अरे! नहीं!
ए पूरा सच नहीं है
इनका भी घर है
बस थोड़ा सा ढूँढना है
न जाने कितनो का
अब भी कोई पता नहीं है
कैसे किस हाल में होंगे
पर! अक्सर गुमनाम, लावारिस, बेजान
जो किसी को नहीं मिलते
यूँ ही धीरे-धीरे गुम हो जाते हैं
उन्हें न तो श्मशान मिलता है
और न ही कब्रिस्तान,
उनके जाने की
किसी को खबर नहीं होती,
कोई मातम भला कैसे होगा?
वो जिस घर का शख्स है,
इससे अनजान,
उसके इंतजार में रहता है,
यह उम्मीद अच्छी है कि बुरी,
क्या कहें?
पर! उसके होने का भरोसा
सब में,
बहुत कुछ जिंदा रखता है।
आज बहुत कुछ टूटा,
घर के हर शख्स में
कुछ खाली सा हो गया।
क्या जरूरत थी
जो उसके जाने के वर्षों बाद
किसी लावारिस के शिनाख्त की,
उसके घर वालों की,
वो जो लौटने की
उम्मीद थी
अब,
सदा के लिए,
खत्म हो गयी।
rajhansraju
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कातिल
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कातिल
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अरे!! जरा गौर से देखो
कातिल कौन है?
कहीं तुम्हारे हाथ में,
खंजर तो नहीं है??
अब सबको यकीन हो गया है,
जिसका कत्ल हुआ है,
वही कातिल है,
अगर ऐसा नहीं होता,
तो गुनहगार पकड़े जाते,
उन्हें सजा होती,
हमारे यहाँ,
नारों का अजब चलन है,
जो ए जाति, धरम वाला झंडा है,
एक बड़े से खंजर में लटकता है,
वो हमें नजर नहीं आता,
जिसे हमने खुद थाम रखा है,
हम बड़े ही शातिर, बदमाश हैं,
जमके मातम भी मना लेते हैं,
कुछ आदत ही ऐसी है,
जल्द ही सब भूलकर,
फिर किसी झंडे को,
थाम लेते हैं।
©️rajhansraju
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भरा पूरा एक नया वर्ष,
दे दिया खामोशी से,
झोली भरके,
न जाने क्या उसने आज?
अपनी-अपनी गठरी,
सब धीरे-धीरे खोलेंगे,
किसके हाथ क्या आएगा?
ए आने वाला पल बतलाएगा,
कभी खुशियाँ हाथ लगेंगी,
या फिर आँख छलक जाएगी,
खूब अँधेरा होगा जब,
हम जुगनू बन जाएंगे,
ऐसे ही हम सब,
हाथ थाम कर एक दूजे का,
आगे बढ़ते जाएंगे
-Rajhans Raju
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जुगुनू
आज सवेरा लेकर आया,भरा पूरा एक नया वर्ष,
दे दिया खामोशी से,
झोली भरके,
न जाने क्या उसने आज?
अपनी-अपनी गठरी,
सब धीरे-धीरे खोलेंगे,
किसके हाथ क्या आएगा?
ए आने वाला पल बतलाएगा,
कभी खुशियाँ हाथ लगेंगी,
या फिर आँख छलक जाएगी,
खूब अँधेरा होगा जब,
हम जुगनू बन जाएंगे,
ऐसे ही हम सब,
हाथ थाम कर एक दूजे का,
आगे बढ़ते जाएंगे
-Rajhans Raju
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एक घर कि तलाश में बंजारे की अंतहीन यात्रा
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