Munadi

मुनादी 

*******
सुनता तो यही आया हूँ, 
तुम हर जगह हो,
और अब मै भी, 
सबसे यही कहने लगा हूँ,
पर! न जाने क्यों ?
तुम पर यकीं करने का,
मन नहीं करता, 
क्योंकि जब भी? 
कोई फिक्र की बात थी,
तब सच में वहाँ नहीं थे,
लोग आते रहे, 
तुम्हारे होने का भरोसा दिलाते रहे,
मै चुपचाप तुम्हारी बात सुनता रहा,
हलांकि मै साक्षी हूँ,
हर उस लम्हे का, 
जब तुम बहुत दूर थे,
और मेरे लिए नहीं थे,
फिर वही आवाज, 
रह-रहकर गूँज उठती है,
तुम हो यहीं पर हो,
हर बार की तरह इस बर भी,
मै तुम्हारा वजूद,
 ढूंढता रह जाता हूँ,
सिर्फ शोर है,
जहाँ एक दूसरे की आवाज, 
ठीक से सुनाई नहीं देती,
जबकि दावा यही है कि सिर्फ़ उसने,
उसकी आवाज सुनी है,
बाकी सब बहरे हैं,
जैसा मैं कहता हूँ,
वही सही है,
खैर! इसकी भी मुनादी जरूरी है,
उसको अपनी बात सबसे कहनी है,
इस मुश्किल घड़ी में,
एक राह सूझी,
उसे पता चला इन,
बहरों के बीच एक गूँगा रहता है,
मुनादी का काम इसे मिल गया,
वह पूरे दिन मुनादी करता रहा,
बहरों को सब कुछ, 
पहले जैसा ही लगा,
उन्हें कुछ सुनयी नहीं दिया,
उनके लिए यह नया नहीं था,
और गूँगे ने भी, 
कभी खुद को नहीं सुना था,
उसे तो यही लग रह था,
वह जैसे सब सुनता है,
वैसे ही सब उसकी सुन रहे होंगे,
जबकि शहर बहरों का है,
और तूँ बे-आवाज़ है,
तुझे मालूम नहीं है,
वह बड़ा शातिर है,
इसीलिए..
मुनादी का काम,
गूंगे को दिया है।
वैसे भी जो बहरे होते हैं,
बहुत जल्द गूंगे हो जाते हैं,
क्योंकि आवाज से रिश्ता, 
धीरे-धीरे टूट जाता है,
ऐसे ही पूरा शहर,
पहले बहरा होता है,
फिर .. वह...
न जाने कब ..
बे-आवाज़...
गूंगा..
हो जाता है।
©️rajhansraju
**********************
(2)

                           कलयुग 

***************
बड़े झूठ हैं 
बड़ी बेवफाई है, 
दुनिया में ,
कहतें हैं , 
घोर कलयुग आ गया, 
कोई किसी का नहीं,
सब धोखे बाज दिखते हैं, 

हर कोई यही कहता ,
भगवान भरोसे ही, 

अब सब चलता,
मै कितना अच्छा हूँ, 

वह कितना बुरा है,
मै कितना कुछ जानता हूँ ,
अपने को अध्यात्म, 

आदर्श का प्रतीक मनाता हूँ ,
पर छोटी सी भी पहचान, 

क्यों नहीं बन पाती,
मै भी दुनिया को, 

औरों की तरह
देखता और ठगता रहा ,
झूंठी बेबसी दिखाता रहा, 

दूसरों के गिरने पर हँसता रहा,
खुद के अच्छा होने का ढोंग करता रहा ,
पर एक बार भी, 

अपने गिरेबान में नहीं देखा
 ©️rajhansraju 
**************************

(3)

जीवन

जीवन की परिभाषा ,
क्या दे सकती है कोई भाषा ।
आशा और निराशा के बीच ,
निरंतर चलते जाना ।
जैसे जीवन जीना ,
जीवन और मृत्यु के बीच ।
कुछ पा लेने की ख्वाइश ,
या फिर छूट जाने का डर ।
निरंतर दुविधा और संशय के साथ ,
अहर्निश चलते जाना,
नए शब्द और भाषा के साथ ।
यह सच है या वह झूठ, 
सब कुछ जान लाने का भ्रम ।
वह जीवन जीता निरंतर ,
सच और झूठ का ना कोई अंतर ।
वह सही है वह जानता है ,
क्या अर्थ है जीवन का ।
गढ़ लेता है नित नए, 
शब्द और भाषा ।
पर कभी पुष्ट नहीं हो पाती, 
उसकी परिभाषा ।
दुःख, प्रेम, ईर्ष्या, 
तक ही सीमित,
हो जाती है उसकी भाषा ।
कौन अपना, कौन पराया,
जीवन भर यही सीख पाया ।
खूब रोया, खूब चिल्लाया,
पर ! जीवन को न समझ पाया ।
क्योंकि वह कभी, 
निःशब्द, 
नहीं हो पाया ,
अर्थात मौन न हो पाया ,
शब्द और भाषा से ही, 
परिभाषा रचता रहा ।
अगर कभी बाहर से,
 मौन हुआ भी तो,
अन्दर सब चलता रहा ।
©️rajhansraju
*************************
(4)

 छोटी सी बात अक्सर बातें, 

बेवजह शुरू हो जाती हैं, 
काफी दूर तक जाती हैं, 
 कुछ अपने, 
कुछ पराए हो जाते हैं,
कितना अजीब होता है ,
एक छोटी सी बात,
कहाँ से कहाँ तक जाती है, 
क्या -क्या हो जाता है ,
 कोई जीत कर हार जाता है, 
कुछ का कुछ हो जाता है, 
कहीं हिंदुस्तान, 
 कहीं पाकिस्तान हो जाता है
©️rajhansraju 
********************
🌹🌹🌹❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🌹❤️❤️🌹🌹

      







***************
my facebook page 
****************

*************
facebook profile 
****************

*******************





*********************************
my You Tube channels 
**********************
👇👇👇



**************************
my Bloggs
************************
👇👇👇👇👇



*******************************************





**********************
⬅️(33) Alfaz
********************
➡️(32)Mango Tree
उसके कुछ देने की आदत जाती नहीं
जब तक हरा रहता है  फल देता है 
और सूखकर रोटियां पकाता है 
💐💐❤️❤️❤️💐💐
*******
(33)
*******
➡️(5) (9) (13)  (16) (20) (25)
 (33) (38) (44) (50)
🌹🌹🌹❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🌹❤️❤️

Comments

  1. शहर का आदमी हूँ,
    लोगों से अपनी बात कहता हूँ,
    सुनने वालों को दास्तनें बहुत भाती हैं,
    सब यही कहते हैं
    मैं कहानियां,
    बहुत अच्छी कहता हूँ..

    ReplyDelete
  2. ब्द और भाषा से ही,
    परिभाषा रचता रहा ।
    अगर कभी बाहर से,
    मौन हुआ भी तो,
    अन्दर सब चलता रहा ।

    ReplyDelete

Post a Comment

स्मृतियाँँ

Hindu Jagriti

Yogdan

Ram Mandir

Teri Galiyan

Darakht

agni pariksha

Sangam

Ek Kahani

Be-Shabd

Parinda। The Man Who Wanted to Fly