Ankaha

 अनकहा 

लौट आया मैं बिना कुछ कहे 

शब्द पड़ने लगे छोटे 

दर्द बढ़ने लगा 

कहे भी थे जो कभी 

सब हो गए अनकहे 

रास्ता बढ़ता रहा 

घर दूर होता रहा 

साथ चलकर भी कहीं 

हम अजनबी से रहे 

फैलता मैं गया जितना 

तुम सिमटते गए उतना 

दर्द तुमने कहीं ज्यादा 

हाय मुझसे सहे

लौट आया मैं 

बिना कुछ कहे


©️ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 


कांच की बंद खिड़कियों के पीछे 

तुम बैठी हो घुटनों में मुंह छुपाए 

क्या हुआ यदि हमारे तुम्हारे बीच 

एक भी शब्द नहीं ।

मुझे जो कहना है मैं कह जाऊंगा 

यहां इसी तरह अदेखा खड़ा हुआ 

मेरा होना मात्र एक गंध की तरह 

तुम्हारे भीतर-बाहर भर जाएगा 

क्योंकि तुम जब 

घुटनों से सर उठाओगी 

तब बाहर मेरी आकृति नहीं 

यह धुंधलाती शाम 

और कांच पर जमी एक हल्की सी भाप 

देख सकोगी जिसे इस अंधेरे में 

तुम्हारे लिए पिघलकर 

मैं छोड़ गया होऊंँगा


©️ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 


सब कुछ कह लेने के बाद 

कुछ ऐसा है जो रह जाता है 

तुम उसको मत वाणी देना 

वह छाया है मेरे पवन विश्वासों की 

वह पूंजी है मेरे गूंगे अभ्यासों की 

वह सारी रचना का क्रम है 

वह जीवन का संचित श्रम है 

बस इतना ही मैं हूंँ 

बस उतना ही मेरा आश्रय है 

तुम उसको मत वाणी देना 

वह पीड़ा है जो हमको, 

तुमको सबको अपनाती है 

सच्चाई है 

अनजाने का भी हाथ पकड़ 

चलना सिखलाती है 

वह यति है 

हर गीत को नया जन्म देती है 

आस्था है रेती में भी नौका खेती है 

वह टूटे मन का समर्थ है 

वह भटकी आत्मा का अर्थ है 

तुम उसको मत वाणी देना 

वह मुझसे या मेरे युग से भी ऊपर है 

वह भावी मानव की थाती है 

भू पर है 

बर्बरता में भी देवत्व की कड़ी है वह 

इसीलिए ध्वंस और नाश से बड़ी है वह 

अंतराल है वह

नया सूर्य उगा लेती है 

नए लोक नई सृष्टि नए स्वप्न देती है 

वह मेरी कृति है 

पर मैं उसकी अनुकृति हूंँ 

तुम उसको मत वाणी देना

©️ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 


अपना ना हो तो 

क्रंदन भी 

कानों को भा सकता है 

स्वजन परिजन 

चहेते पशु पक्षी 

निकटवर्ती बगिया के 

फूलों पर मंडराते 

सु-परिचित भ्रमर, 

किसी का आर्तनाद 

दुखा जाता है मेरा दिल

बरसाती मौसम के निशीथ में 

सुन मैंने हाल ही 

उस गरीब के चीत्कार 

सांप के जबड़े में फंसा था वो 

कर रहा था जीत्कार निरंतर 

मेंढ़क बेचारा 

हमारी पड़ोसवाली 

तलइया के किनारे 

हाय राम तुझे -

काल कवलिट होना था यहीं!

©️ नागार्जुन (१९८४)


जो इधर से निकला 

उधर चला गया 

वो आंखें फैलाकर 

बतला रहा था 

हां बाबा बाघ आया उस रात 

आप रात को बाहर न निकलो 

जाने कब भाग फिर से आ जाए 


हां वो वही जो 

उस झरना के पास रहता है 

वहां अपन दिन के वक्त 

गए थे एक रोज? 

बाघ उधर ही तो रहता है!

बाबा उसके दो बच्चे हैं 

बाघिन सारा दिन पहरा देती है 

बाघ या तो सोता है 

या बच्चों से खेलता है 

दूसरा बालक बोला 

बाघ कहीं कोई काम नहीं करता 

न किसी दफ्तर में 

न कॉलेज में 

छोटू बोल स्कूल में भी नहीं 

पांच साला बेटू ने 

हमें फिर से आगाह किया 

अब रात को बाहर होकर 

बाथरूम न जाना

©️ नागार्जुन (1984)


इत्ती सी हंसी

इत्ती सी खुशी

इत्ता सा टुकड़ा चाँद का

ख्वाबों के तिनकों से

चल बनाएं आशियाँ 


दबे दबे पाऊँ से

आये हौले हौले ज़िन्दगी

होठों पे कुण्डी चढ़ा के

हम ताले लगा के चल

गुमसुम तराने चुपके चुपके गायें

आधी आधी बाँट ले

आजा दिल की ये ज़मीन

थोड़ा सा तेरा सा होगा

थोडा मेरा भी होगा 

अपना ये आशियाँ


ना हो चार दीवारें

फिर भी झरोखे खुले

बादलों के हो परदे

शाखी हरी पंखा झले

ना हो कोई तकरारें

अरे मस्ती ठहाके चले

प्यार के सिक्कों से 

महीने का खर्चा चले


दबे दबे पाऊँ से

आये हौले हौले ज़िन्दगी

होठों पे कुण्डी चढ़ा के

हम ताले लगा के चल

गुमसुम तराने चुपके चुपके गायें

आधी आधी बाँट ले

आजा दिल की ये ज़मीन

थोड़ा सा तेरा सा होगा

थोडा मेरा भी होगा 

अपना ये आशियाँ


©️ स्वानंद किरकिरे 


ज़िंदगी ...

कैसी है पहेली, हाए

कभी तो हंसाये

कभी ये रुलाये

ज़िंदगी ...


कभी देखो मन नहीं जागे

पीछे पीछे सपनों के भागे

एक दिन सपनों का राही

चला जाए सपनों के आगे कहाँ

ज़िंदगी ...


जिन्होने सजाए यहाँ मेले

सुख-दुख संग-संग झेले

वही चुनकर ख़ामोशी

यूँ चली जाए अकेले कहाँ

ज़िंदगी ...


©️ योगेश 


जाने चले जाते हैं कहाँ,

दुनिया से जानेवाले, 

जाने चले जाते हैं कहाँ,

कैसे ढूंढे कोई उनको, 

नहीं कदमों के भी निशां


जाने है वो कौन नगरिया,

आये जाये खत ना खबरिया,

आये जब जब उनकी यादें,

आये होठों पे फ़रियादें,

जाके फिर ना आने वाले

जाने चले जाते हैं कहाँ ...


मेरे बिछड़े जीवन साथी,

साथी जैसे दीपक बाती,

मुझसे बिछड़ गये तुम ऐसे,

सावन के जाते ही जैसे,

उड़के बादल काले काले,

जाने चले जाते हैं कहाँ 


दुनिया से जानेवाले, 

जाने चले जाते हैं कहाँ,

कैसे ढूंढे कोई उनको, 

नहीं कदमों के भी निशां

जाने चले जाते हैं कहाँ ...


©️ आनंद बख़्शी 


जब दीप जले आना, 

जब शाम ढले आना

संकेत मिलन का भूल न जाना 

मेरा प्यार ना बिसराना

जब दीप जले आना ...


नित सांझ सवेरे मिलते हैं

उन्हें देखके तारे खिलते हैं

लेते हैं विदा एक दूजे से 

कहते हैं चले आना

जब दीप जले आना ...


मैं पलकन डगर बुहारूंगा

तेरी राह निहारूंगा

मेरी प्रीत का काजल 

तुम अपने नैनों में मले आना

जब दीप जले आना ...


जहां पहली बार मिले थे हम

जिस जगह से संग चले थे हम

नदिया के किनारे आज उसी

अमवा के तले आना

जब दीप जले आना ...


©️ रविन्द्र जैन 


मुसाफ़िर


मुसाफ़िर हूँ मैं यारों

ना घर है ना ठिकाना

मुझे चलते जाना है, 

बस, चलते जाना

मुसाफ़िर...


एक राह रुक गई, 

तो और जुड़ गई

मैं मुड़ा तो साथ-साथ, 

राह मुड़ गई

हवा के परों पे, 

मेरा आशियाना

मुसाफ़िर...


दिन ने हाथ थाम के, 

इधर बिठा लिया

रात ने इशारे से, 

उधर बुला लिया

सुबह से शाम से मेरा, 

दोस्ताना

मुसाफ़िर...


©️ गुलज़ार 



जीवन से भरी तेरी आँखें

मजबूर करे जीने के लिये

सागर भी तरसते रहते हैं

तेरे रूप का रस पीने के लिये

जीवन से भरी तेरी आँखें ...


तस्वीर बनाये क्या कोई

क्या कोई लिखे तुझपे कविता

रंगों छंदों में समाएगी

किस तरह से इतनी सुंदरता

एक धड़कन है तू दिल के लिये

एक जान है तू जीने के लिये

जीवन से भरी तेरी आँखें ...


मधुबन कि सुगंध है साँसों में

बाहों में कंवल की कोमलता

किरणों का तेज है चेहरे पे

हिरनों की है तुझ में चंचलता

आंचल का तेरे एक तार बहुत

कोई छाक जिगर सीने के लिये

जीवन से भरी तेरी आँखें ...


©️इंदीवर


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पल पल दिल के पास, 

तुम रहती हो

जीवन मीठी प्यास, 

ये कहती हो

पल पल ...


हर शाम आँखों पर, 

तेरा आँचल लहराए

हर रात यादों की, 

बारात ले आए

मैं सांस लेता हूँ, 

तेरी खुशबू आती है

एक महका महका सा, 

पैगाम लाती है

मेरे दिल कि धड़कन भी, 

तेरे गीत गाती है

पल पल ...


कल तुझको देखा था, 

मैने अपने आंगन में

जैसे कह रही थी तुम, 

मुझे बाँध लो बन्धन में

ये कैसा रिश्ता है, 

ये कैसे सपने हैं

बेगाने हो कर भी, 

क्यूँ लगते अपने हैं 

मैं सोच मैं रहता हूँ, 

डर डर के कहता हूँ

पल पल ...


तुम सोचोगी क्यूँ इतना, 

मैं तुमसे प्यार करूं

तुम समझोगी दीवाना, 

मैं भी इक़रार करूं

दीवानों की ये बातें, 

दीवाने जानते हैं

जलने में क्या मज़ा है, 

परवाने जानते हैं

तुम यूँ ही जलाते रहना, 

आ आ कर ख़्वाबों में

पल पल ...


©️राजिंदर कृष्ण 

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ये जीवन है 

इस जीवन का

यही है, यही है, 

यही है रंग रूप

थोड़े ग़म हैं, 

थोड़ी खुशियाँ

यही है, यही है, 

यही है छाँव धूप

ये जीवन है ...


ये ना सोचो इसमें अपनी

हार है कि जीत है 

उसे अपना लो जो भी

जीवन की रीत है

ये ज़िद छोड़ो, यूँ ना तोड़ो

हर पल एक दर्पण है

ये जीवन है ...


धन से ना दुनिया से

घर से न द्वार से

साँसों की डोर बंधी है

प्रीतम के प्यार से

दुनिया छूटे, पर ना टूटे

ये कैसा बंधन है

ये जीवन है

इस जीवन का

यही है, यही है, 

यही है रंग रूप

थोड़े ग़म हैं 

थोड़ी खुशियाँ

यही है, यही है, 

यही है छाँव धूप

ये जीवन है


©️आनंद बख़्शी 

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मैं नहीं चाहता 

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सड़े हुए फलों की पेटियों की तरह 

बाजार में एक भीड़ के बीच मरने की अपेक्षा 

एकांत में किसी सूने वृक्ष के नीचे 

गिरकर सुख जाना बेहतर है।


मैं नहीं चाहता कि मुझे 

झाड़ पोंछ कर दुकान पर सजाया जाए 

दिन-भर मोल-तोल के बाद 

फिर पेटियों में रख दिया जाए 

और एक खरीदार से 

दूसरे खरीदार की प्रतीक्षा में 

यह जीवन अर्थहीन हो जाए।


©️ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना


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अंत में

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अब मैं कुछ कहना नहीं चाहता 

सुनना चाहता हूंँ 

एक समर्थ सच्ची आवाज 

यदि कहीं हो।


अन्यथा 

इसके पूर्व कि

मेरा हर कथन 

हर मंथन 

हर अभिव्यक्ति 

शून्य से टकराकर 

फिर वापस लौट आए 

उस अनंत मौन में समा जाना चाहता हूंँ 

जो मृत्यु है।


वह बिना कहे मर गया 

यह अधिक गौरवशाली है 

यह कह जाने से 

कि वह मरने से पहले 

कुछ कह रहा था 

जिसे किसी ने सुना नहीं

©️ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना


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Comments

  1. आभार इन रचनाओं को हम तक पहुंचाने के लिए

    ReplyDelete
  2. जब दीप जले आना,
    जब शाम ढले आना
    संकत मिलन का भूल न जाना
    मेरा प्यार ना बिसराना
    जब दीप जले आना ...

    ReplyDelete

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