Saiyaara
धूमकेतु
वह उसे यूं ही निहारता रहा
एक टक देखता रहा
एक भी शब्द नहीं कहा
बस गुमसुम बैठा रहा
कब से
इसका एहसास नहीं है
ऐसे ही वक्त
फासला तय करता रहा
कौन कहां गया
किसी को पता नहीं चला
सदियां गुजर गई
वह इंतजार में था
या ठहरा हुआ था
किसके लिए
उसे भी मालूम नहीं
नदी अब भी वैसे ही बह रही है
उसका नाम गंगा है
सुना है
उसने न जाने कितनों को
उस पार पहुंचाया है
बस वह नाव
जो इस पार से उस पार जाती है
शायद उसी की राह देख रहा है
न जाने कब से?
भगीरथ उसे यहां लाए थे
अपने पूर्वजों के लिए
उनकी प्यास मिटाने
जिन्होंने इंतजार में
अपनी काया
इस माटी को सौंप दी थी
तब से न जाने कितने लोग
गंगा के साथ
अपनी-अपनी यात्रा पर गए
और यह यात्रा ऐसी है
जिसकी कोई कहानी कहता नहीं
क्योंकि गंगा
गंगा सागर में जाकर मिल जाती हैं
और सागर से भला
कौन लौट कर आना चाहेगा
जो खुद सागर बन गया हो
लौटकर किसको
अपनी कहानी सुनाएगा
वह किनारे बैठा हुआ है
बंजारगी से थक गया है
दिन ढ़ल रहा है
सूरज को घर पहुंचने की जल्दी है
अरे बहुत हो गया
मैं भी थोड़ा आराम चाहता हूं
वह जैसे
अपने दरवाजे पर कुंडी लगा रहा है
अब कल सुबह मिलते हैं
चलो अपने घर को चलते हैं
रात काफी हो चली
किनारे अब भी वैसे ही हैं
अंधेरे के सिवा कोई रंग नहीं है
तभी एक उल्कापिंड
टूट कर बिखर गया
उसकी यात्रा यहीं तक थी
ऐसे ही न जाने कितने
धूमकेतु धरती से बहुत दूर
अपनी अंतहीन यात्रा में लगे हुए हैं
और हमें उनका कोई एहसास नहीं है
बस जो टूटकर बिखर जाते हैं
कभी कभी कुछ पल के लिए
नजर आ जाते हैं
उन्हें जो अनायस
इस अनंत आकाश को
निहारते रहते हैं
©️ RajhansTiwari
🌹❤️🙏🙏🌹🌹
thanks for telling perfect meaning of saiyaara
ReplyDeleteहम न जाने कब धूमकेतु बन जाते हैं
ReplyDeleteबस जो टूटकर बिखर जाते हैं
ReplyDeleteकभी कभी कुछ पल के लिए
नजर आ जाते हैं
उन्हें जो अनायस
इस अनंत आकाश को
निहारते रहते हैं
©️ RajhansTiwari
लाजवाब
ReplyDeleteक्या बात है
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