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आवारगी
एक आंसू भी हुकूमत के लिए खतरा है।
तुमने देखा नहीं आंखों का समंदर होना ॥
सिर्फ बच्चों की मोहब्बत ने कदम रोक लिए।
वरना आसान था मेरे लिए बेघर होना॥
हमको मालूम है शोहरत की बुलंदी ।
हमने कब्र की मिट्टी को देखा है बराबर होते ।।
इसको किस्मत की खराबी ही कहा जाएगा ।
आपका शहर में आना मेरा बाहर होना।।
सोचता हूं तो कहानी की तरह लगता है।
रास्ते में मेरा तकना मेरा छत पर होना ।।
मुझको किस्मत ही पहुंचने नहीं देती ।
वरना एक एजाज है उसे दर का गदागर होना ।।
सिर्फ तारीख बताने के लिए जिंदा हूं।
अब मेरा घर में भी होना है कैलेंडर होना ।।
एक कम पढ़े लिखे का कलम होकर रह गई ।
यह जिंदगी भी गूंगे का गम होके रह गई ।।
शहर में चीखते रहे कुछ भी नहीं हुआ।
मिट्टी की तरह रेत भी नाम होके रह गई।।
कश्कोल में छुपी थी आना भी फकीर की ।
अब बे जबान सिक्कों में जम हो कर रह गई।।
इस वक्त की पढ़ी कभी दो वक्त की पढ़ी ।
यादें खुदा भी यादें सनम हो के रह गई ।।
वह जिंदगी की जिस पे बड़ा नाज था कभी ।
कमजोर आदमी की कसम हो के रह गई ।।
फिर बच गई है आज यह दीवारें आरजू ।
सजदे में जाने वाली थी कम होकर रह गई।।
थकान को ओढ़ के बिस्तर में जाकर लेट गए ।
हम अपनी कब्रें मुकर्रर में जाकर लेट गए।।
तमाम उम्र हम एक दूसरे से लड़ते रहे ।
मगर मरे तो बराबर में जाकर लेट गए ।।
हमारी तश्ना नसीबी का हाल मत पूछो ।
वह प्यास थी कि समुद्र में जाकर लेट गए ।।
न जाने कैसी थकान थी कभी नहीं उतरी।
चले जो घर से तो दफ्तर में जाकर लेट गए ।।
यह बेवकूफ उन्हें मौत से डराते हैं ।
जो खुद ही सयाए खंजर में जाकर लेट गए ।।
तमाम उम्र जो निकल न थे हवेली से ।
एक गुंबद से दर में जा के लेट गए ।।
सजाए फिरते थे झूठ अना जो चेहरों पर ।
वह लोग कसरे सिकंदर में जाकर लेट गए।।
सजा हमारी भी काटी है बाल बच्चों ने ।
उदास हम हुए वे घर में जाकर लेट गए ।।
सुनो हंसी के लिए गुदगुदाना पड़ता है ।
चिराग जलता नहीं जलाना पड़ता है ।।
कलंदरी भी तो हिस्सा है बादशाही का।
जब बीच में लेकिन खजाना पड़ता है।।
मिलेगी मिट्टी से एक दिन हमारी मिट्टी भी।
अभी जमीन पर क्या-क्या बिछाना पड़ता है।।
मुशायरा भी तमाशा मदार शाह का है ।
यहां हर एक को करतब दिखाना पड़ता है ।।
यह कौन कहता है इनकार करना मुश्किल है।
मगर जमीर को थोड़ा जगाना पड़ता है।।
किसी की जिद में नहीं शौकिया बनाते हैं।
हम आज से तुझे जुगनू दिया बनाते हैं ।।
हम ऐसे ऐसे फकीरों के साथ बैठे हैं ।
जो खाक छू के उसे कीमिया बनाते हैं ।।
लिपटने लगता है कोई रदीप की सूरत ।
हम अपने आप को जब काफिया बनाते हैं।।
यही हुनर यही पेशा यही जरूरत भी ।
सो हम फकीर मियां बोरियां बनाते हैं ।।
यह खुश्क पत्ते बताते हैं हाले दिल उसको ।
इसलिए तो इन्हें डाकिया बनाते हैं ।।
मेरे दिल से रहबरी का शौक कम होने लगा ।
हर सियासी आदमी जब मोहतरमा होने लगा ।।
झूठ के मसनद नशीं होने का यह अंजाम है ।
जिसने सच बोला उसी का सर कलम होने लगा।।
तेरी चाहत ने कुछ ऐसे दिल के कब्जा कर लिया।
अब बिछड़ने की तस्वीर से भी गम होने लगा ।।
इस कहानी को यहीं पर छोड़ देना चाहिए।
आंसुओं से आपका दामन भी नम होने लगा ।।
खाक में मिल जाएगी इज्जत फकीरे शहर की ।
सर अगर मेरा भी दरबारों में ख़म होने लगा ।।
जिसके पै टूट चुके हैं वह परिंदा हूं मैं ।
आप अगर अच्छा समझते हैं तो अच्छा हूं मैं ।।
कम से कम ख्वाब में आने का ही वादा कर लें।
उससे कहना कई रातों से जागा हूं मैं ।।
इतनी वीराना पसंदी भी बुरी होती है।
तेरे होते हुए महफिल में अकेला हूं मैं ।।
सांस लेने का अमल आज तलक जारी है ।
जिंदा रहना इसे कहते हैं तो जिंदा हूं मैं ।।
तेरे होते हुए बीमार बड़ा हूं कब से ।
तू किया करता था दावा की मसीहा हूं मैं ।।
किस्सा किसी तरह से मुकम्मल ना हो सका ।
दिल रो रहा था आंखों में जल थल ना हो सका ।।
तू जा रहा था और मुझे कुछ नहीं हुआ ।
मैं तेरे गम कदे में भी पागल ना हो सका।।
वीरानियां न जाएंगे घर की तेरे बगैर ।
जंगल बगैर कैस के जंगल ना हो सका ।।
यह दुख तो कब्र में भी मेरे साथ जाएगा ।
मैं उसकी आंख का कभी काजल ना हो सका ।।
लिपटे रहे हैं सांप बदन से मेरे तमाम ।
मैं इसके बावजूद भी संडल ना हो सका ।।
पचपन बरस की उम्र तो आने को हो गयी ।
लेकिन वह चेहरा आंखों से ओझल ना हो सका ।।
मैं मुश्किलों में रहकर भी साबित कम रहा ।
वह वादियां हूंँ जो कभी मखमल ना हो सका।।
मैं हूं अगर चिराग तो जल जाना चाहिए ।
मैं पेड़ हूं तो पेड़ को फल आना चाहिए ।।
रिश्ते को क्यों उठाए कोई बोझ की तरह ।
अब उसकी जिंदगी से निकल जाना चाहिए ।।
जब दोस्ती भी फूंक के रखने लगे कदम ।
फिर दुश्मनी तुझे भी संभल जाना चाहिए ।।
मेहमान अपनी मर्जी से जाते नहीं कभी ।
तुमको मेरे ख्याल से कल जाना चाहिए ।।
नौटंकी बन गया हो जहां पर मुशायरा ।
ऐसी जगह सुनाने गजल जाना चाहिए।।
इस घर को अब हमारी जरूरत नहीं रही ।
अब आफताबे उम्र को ढल जाना चाहिए ।।
महफिल में इस दिए का बदल होना चाहिए।
मैं कह रहा हूं इस पर अमल होना चाहिए ।।
तालाब विधि मिस्ले कंबल होना चाहिए ।
मेरी ग़ज़ल को मेरी ग़ज़ल होना चाहिए ।।
बस अफसरों के होते रहेंगे तबादले ।
सरकार में भी रद्दो बदल होना चाहिए ।।
यह मसला बड़ा है मगर इसके बावजूद ।
इसको भी जीते जी मेरे हल होना चाहिए ।।
उड़ना बहुत जरूरी है मौसम कोई भी हो ।
इन बाजूओं को थोड़ा सा साल होना चाहिए ।।
जन्नत जो हम बना नहीं सकते इससे ।
मगर दुनिया को मिसल ताजमहल होना चाहिए।।
©️मुनव्वर राना
🌹❤️🙏🙏🌹🌹
सुर्ख हथेलियां
पहली बार
मैंने देखा
भंवरे को कमल में
बदलते हुए
फिर कमल को बदलते
नील जल में
फिर नीले जल को
असंख्य श्वेत पक्षियों में
फिर श्वेत पक्षियों को बदलते
सुर्ख आकाश में
फिर आकाश को बदलते
तुम्हारी हथेलियां में
और मेरी आंखें बंद करते
इस तरह आंसुओं को
स्वप्न बनते
पहली बार मैंने देखा
©️सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
कितना अच्छा होता है
एक दूसरे को बिना जाने
पास पास होना
और उसे संगीत को सुनना
जो धमनियों में बसता है
उन रंगों में नहा जाना
जो बहुत गहरे चढ़ते उतरते हैं
शब्दों की खोज शुरू होते ही
हम एक दूसरे को खोने लगते हैं
और उनके पकड़ में आते ही
एक दूसरे के हाथों में
मछली की तरह फिसल जाते हैं
हर जानकारी में बहुत गहरे
ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है
कुछ भी ठीक से जान लेना
खुद से दुश्मनी ठान लेना है
कितना अच्छा होता है
एक दूसरे के पास बैठ
खुद को टटोलना
और अपने ही भीतर
दूसरे को पा लेना
©️ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
तुम्हारी मुस्कान
कोहरे से छानकर नहीं
सीधी धूप से आती है
जैसे सुबह-सुबह चिड़ियों का गान
तुम्हारी मुस्कान।
बालकनी पर बैठी
अखबार लिए एक
एक सौंदर्य की कल्पना जगाती
नीचे जाती भीड़ से जुड़ी
और तटस्थ भी
तुम्हारी मुस्कान।
मैं उसे अक्सर याद करता हूंँ
जैसे शाम अकेले
घूमने निकल गया हूंँ
राह बे पहचान
उजाले अंधेरे की
एक विचित्र आत्मियता में
आधा जागा आधा खोया
स्वयं में अंतरधान
तुम्हारी मुस्कान ।
बहुत दिन हुए
उसका रक्त में दौड़ना
महसूस किए हुए
अपनी आंखों के जल से
पंख फड़फड़ा उस सफेद हंस को
पाना विभोर, गतिमान,
तुम्हारी मुस्कान।
©️ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
सिर्फ बच्चों की मोहब्बत ने कदम रोक लिए।
ReplyDeleteवरना आसान था मेरे लिए बेघर होना॥
यह मसला बड़ा है मगर इसके बावजूद ।
ReplyDeleteइसको भी जीते जी मेरे हल होना चाहिए ।।
thanks for sharing
ReplyDeleteशहर में चीखते रहे कुछ भी नहीं हुआ।
ReplyDeleteमिट्टी की तरह रेत भी नाम होके रह गई।।