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Yatharth

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  यथार्थ  ********* सुबह के वक़्त,  नुक्कड़ की दुकान पर,  काफी भीड़ थी,  कई रंगों के,  बैनर पोस्टर लिए लोग खड़े थे।  भरपूर नाश्ता किया,  दोपहर में,  कहीं और खाने का प्रबंध था,  शहर में एक दिन की मजदूरी,  कम से कम दो सौ रूपए है,  इससे कम में कोई तैयार न था,  जैसे तैसे साथ में , नाश्ते और खाने से बात बन गई,  बंद कराने की तयारी पूरी हुई, नए लाठी डंडे दिए  गए, कुछ नए नारे तख्तियों पर लिखे,  नेताजी ने क्रीज़ टाईट की,   कुछ ने कुरता-पजामा,  तो कुछ ने चमचमाती,   सफ़ेद पैंट शर्ट पहनी,  पैरों में बड़ी कंपनी का स्पोर्ट शू। मीडिया चौराहे पर तैनात है,  नेताजी का जलूस चल पड़ा,  कुछ ठेले, खोमचे वालों को हडकाया, साईकिल, रिक्शे से हवा निकाली,  कमज़ोर दुकानदारों की शटर गिराई, बड़ी दुकाने ज्यादातर इन्हीं की थी,  पास खड़ी गाड़ियों में,  इन्हीं का सामान था। चौराहे पर,  किसी ...

Khud ki khoj

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खुद की खोज  **************   वह नही मानता,  किसी रामायण,  बाइबल, कुरान को, मन्दिर या मजार को, लगाए जाने वाले भोग, बांटे जाने वाले प्रसाद को, किसी का भगवान त्रिशूल लिए है, किसी का तलवार। भूख से मरने वालों की किसे है परवाह, हर कोई रखता है चाहत, ताकत, पैसे और शोहरत की, इसके लिए कोई गुरेज नहीं, अपने हाथों ख़ुद को बेचना, ख़ुद की दलाली को,  लाचारी और बेबसी कहना, फ़िर कुछ देर पछता लेना। ईश्वर के नाम पर जेहाद, सब लोग डरे, सहमे, ख़ुद की पहचान से डरते। लिए हाथ में खंजर ख़ुद को ढूँढ़ते, कत्ल किया ख़ुद को कितनी बार, धर्म और मजहब के नाम। एक और मसीहा, एक नया दौर, डर और खून का बढ़ता व्यापार। हर तरफ़ एक ही रंग, हरा या लाल, पैसे के लिए खून या खून के लिए पैसा, फर्क नहीं मालूम पड़ता। यह दुनिया किसने क्यों बनाई, लोंगों को एक दूसरे का खून,  बहाना किसने सिखाया। खुदा ने तो केवल इन्सान बनाए थे, ये हिंदू और मुसलमान कहाँ से आए?  साथ में रामायण और कुरान लाए, लड़ने का सबसे अच्छा हथियार,  धर्म की आग, ...

Kaal Chakr

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काल चक्र  ******** अतीत, वर्तमान को देखकर दुखी है,  वह क्यों भविष्य के सपनों  में खोया है . वक्त के हर लम्हे की यही कहानी है,  वह आज से खुश नहीं, उसके यादों और सपनों में, कल से कल तक की दूरी समाई है.  आज हर पल साथ होता है,  अतीत और आगे की सिर्फ बातें हैं , वक्त फासलों को,  लम्हों में तय करता है, धीरे-धीरे सब बदल जाता है,  हम कुछ नहीं समझ पाते. यह आज जो कभी कल था, बीता हुआ कल बन जाता है,  कहने सुनाने की बातें हैं, यादों में रह जायेंगी.  कल, आज, कल में जो होना है,  एक पल में हो जाता है , आदमी अफ़सोस करता,  सोचता रह जाता है.  वक्त शदियों का फासला,  पल-पल में तय कर जाता है .. ©️rajhansraju  *************************

Patang

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पतंग  ******* पतंग डोर से कट के,  दूर चली जाती है,  उसे लगता है,  वह आसमान की ऊँचाइयाँ,  छू लेगी. हवा के झोंके,  दूर-दूर ले जाते हैं, कहाँ फसेगी,  कहाँ गिरेगी,  कोई भरोसा नहीं होता. हवाओं का रुख,  हमेशा एक सा नहीं होता,  बिना डोर पतंग,  कहीं भी गिर सकती है. जब तक डोर ने थामा है,  हवा के सामने डटी,  खूब ऊपर उठी है. डोर ने उसे आसमान की,  छत पर बिठाया,  पतंग ने ऊपर से दुनिया देखी, सब छोटा और खोटा नज़र आया,  डोर की पकड़ का एहसास,  कम हो गया, और ऊपर उठने,  दूर जाने कि कोशिश में,  डोर छूट गयी.  पतंग अकेली,  आसमान की हो गयी. हवाओं के साथ खेलती,  उड़ती रही,  कुछ देर में ही,  हवाओं ने रुख बदल लिया, पतंग को डोर  कि याद,  आने लगी,  अब वापसी का,  कोई तरीका नहीं था. काफी देर तन्हा भटकती रही,  आखिर थक गयी,  किसी अनजानी जगह,  बैठ गयी, डोर का इंतजार करने लगी  ..  #rajhan...

Thakan

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 सूरज की थकान  ************** सूरज दिन भर जलता है,  प्रकाशित सारी दुनिया करता है, पर ! एक दम तन्हा दिखता है,  लगता है घर से दूर,  काम पर निकला है, दिन भर तन्हाइयों में जीता है, फिर कैसे ? इतनी ऊर्जा, अपने अन्दर भरता है, रोज़ ख़ुशी-ख़ुशी क्यों?  जलने चल पड़ता है, वह भी जिम्मेदार ही लगता है,  जो परिवार के लिए जीता है, इसलिए हर सुबह, समय से काम में लग जाता है, हाँ! जलते-जलते वह भी, थकता है, शाम की गोद में वह भी ढलता है,  माँ का आँचल वह भी ढूँढता है, अपने भाई बहन, चाँद सितारों संग गुनगुनाता है,  चांदनी के संग नाचता है, उसकी माँ रात,  पूरे आसमान पर छा जाती है , बेटे को प्यार से सुलाती है, सूरज के दिन भर की थकान, शाम की मुस्कराहट,  रात की हंसी, भोर की खिलखिलाहट, से ही मिट जाती है, सूरज नई ऊर्जा, नई आग ले,  खुद को जलाने, चल पड़ता है, हर सुबह,  सारे जहाँ को रौशन करने, सूरज की तरह हमें भी, नई ऊर्जा नई आग भरनी है, चंद राहें ही नहीं,  हर घर को रौशन करना है, खुद को जलाकर कर ही,  हम सूरज...