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कविता पाठ | Buddha : a journey

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बुद्ध - एक यात्रा *************** उसने कहा था एक दिन वक्त ठहर जाएगा मैं हंसता रहा यह कैसे हो सकता है अगर कुछ चलायमान है तो वह वक्त ही है जो किसी के लिए नहीं रुकता तब उसने कुछ नहीं कहा सिर्फ मौन धारण कर लिया था मुझे लगा उसके पास कोई जवाब नहीं है, ठीक उसी तरह जब ढेर सारे सवाल पूछे जाते तो बहुत से प्रश्नों के, जवाब नहीं देता बस मौन हो जाता ऐसे में लगता, उसके पास कोई उत्तर नहीं है अक्सर प्रश्न पूछने वाला अपने आप को श्रेष्ठ समझने लग जाता यहीं वह सबसे बड़ी भूल कर बैठता। क्यों कोई बुद्ध नहीं बन पाता जबकि बुद्ध बनना तो एक निरंतरता है यह कोई एक बुद्ध की बात नहीं है कभी किसी बुद्ध ने, आखरी बार जन्म लिया था जो अब जन्म नहीं लेगा ऐसा नहीं है यह तो एक परंपरा, खोज का नाम है जो सदा से होता रहा है बुद्ध बनने का अर्थ ही है मौन हो जाना जिन प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए थे आज भी न जाने कितनी बार, रोज पूछे जाते हैं बुद्ध के ज्ञान पर उंगलियां उठाई जाती हैं जबकि हकीकत यह है जो पूछा जा रहा है वास्तव में वह सवाल ही नहीं है मतलब

दरवाज़ा | The Door : किवाड़

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"मैं हूँ न"   ********** ****** दरवाज़ा दीवार पर, इस तरह अटका है, जैसे बेमन अनमने से, कोई कहीं पर, न जाने कब से, ठहरा हुआ है, अब वह इतने सलीके से, खुलता-बंद होता है, उसके होने का, किसी को, पता नहीं चलता है, एकदम बेजुबान लगता है, जबकि वह तो, बहुत आवाज करता था, कौन यहाँ से आया गया, पूरे घर से कहता था। इस बात की हर तरफ चर्चा हैं, फलाने के घर का, दरवाजा बदल गया है, वह भी औरों की तरह हो गया है, दरवाजा दीवार में खोता जा रहा है, अब किसी को, दस्तक देने की जरूरत नहीं होती, आने जाने वालों की, कोई पैमाइश नहीं होती, जिसकी मर्जी, जब हो आए-जाए, उसका होना, होने जैसा नहीं है, आहिस्ता-आहिस्ता दरवाजा, कुछ और बन गया है। तमाम दीवारों से एक मकान, बन तो जाता है, पर घर बनाने के लिए, उसमें दरवाजा, और कुंडी लगाना पड़ता है, जब कभी कोई आहट, या दस्तक होती है, तभी कुंडी चटखने की, आवाज आती है, वहीं चौखट से कोई देख लेता है, आसपास क्या, कैसा है? समझ लेता है, इत्मीनान होते ही, दरवाजे की कुंडी चढ़ा देता है, यह कुंडी और द

Love letter | एक खत लिखते हैं : let's write a letter

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खत से जब खबर,  आया-जाया करती थी बहुत कुछ सोचने समझने का,  मौका मिल जाता था अब हर उस बात की,  जिसकी खबर नहीं होनी चाहिए,  वह सबसे ज्यादा चर्चा में रहती है,  खत ठहरने का मौका देता था इस बहाने जो वक्त मिलता अक्सर उसमें संभल जाता था शिकायतें इस ठहरन में अपना वजूद खो दे देती थी ऐसे ही कई बार वह खत लिखता पर किसी को भेज नहीं पाता क्योंकि जो शब्द आकार ले लेते हैं वह कभी बेकार नहीं जाते कहीं किसी कोने में ठहर जाते हैं अचानक किसी पल,  प्रासंगिक होकर उठ खड़े होते हैं,  जिंहे उस वक्त समझा नहीं गया था,  हलांकि वह उस वक्त भी,  ऐसे ही मौजूद था,  उसने शोर नहीं मचाया था,  किसी पन्ने में कैद हो गया था,  उसकी तलाश में रहने वाले,  उसे पन्ना दर पन्ना ढूंढते हैं,  जो कभी किसी खत का,  हिस्सा नहीं बन पाए,  क्योंकि खत पर,  किसी न किसी का नाम होता है,  जिस पर पता लिखा होता है  जबकि उसके खत, एकदम बेतरतीब हैं,  किसके लिए कौन सा पन्ना है,  यह पता नहीं चलता,  बस इस बात का यकीन करना है  सबके हिस्से में एक खत है जिसका हर एक शब्द उसके लिए है हम भी उसी पन्ने की तलाश में न जाने कितने पन्ने पलटते रहते हैं शायद मेरे नाम व