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दरवाज़ा | The Door : किवाड़

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"मैं हूँ न"   ********** ****** दरवाज़ा दीवार पर, इस तरह अटका है, जैसे बेमन अनमने से, कोई कहीं पर, न जाने कब से, ठहरा हुआ है, अब वह इतने सलीके से, खुलता-बंद होता है, उसके होने का, किसी को, पता नहीं चलता है, एकदम बेजुबान लगता है, जबकि वह तो, बहुत आवाज करता था, कौन यहाँ से आया गया, पूरे घर से कहता था। इस बात की हर तरफ चर्चा हैं, फलाने के घर का, दरवाजा बदल गया है, वह भी औरों की तरह हो गया है, दरवाजा दीवार में खोता जा रहा है, अब किसी को, दस्तक देने की जरूरत नहीं होती, आने जाने वालों की, कोई पैमाइश नहीं होती, जिसकी मर्जी, जब हो आए-जाए, उसका होना, होने जैसा नहीं है, आहिस्ता-आहिस्ता दरवाजा, कुछ और बन गया है। तमाम दीवारों से एक मकान, बन तो जाता है, पर घर बनाने के लिए, उसमें दरवाजा, और कुंडी लगाना पड़ता है, जब कभी कोई आहट, या दस्तक होती है, तभी कुंडी चटखने की, आवाज आती है, वहीं चौखट से कोई देख लेता है, आसपास क्या, कैसा है? समझ लेता है, इत्मीनान होते ही, दरवाजे की कुंडी चढ़ा देता है, यह कुंडी और द

Love letter | एक खत लिखते हैं : let's write a letter

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खत से जब खबर,  आया-जाया करती थी बहुत कुछ सोचने समझने का,  मौका मिल जाता था अब हर उस बात की,  जिसकी खबर नहीं होनी चाहिए,  वह सबसे ज्यादा चर्चा में रहती है,  खत ठहरने का मौका देता था इस बहाने जो वक्त मिलता अक्सर उसमें संभल जाता था शिकायतें इस ठहरन में अपना वजूद खो दे देती थी ऐसे ही कई बार वह खत लिखता पर किसी को भेज नहीं पाता क्योंकि जो शब्द आकार ले लेते हैं वह कभी बेकार नहीं जाते कहीं किसी कोने में ठहर जाते हैं अचानक किसी पल,  प्रासंगिक होकर उठ खड़े होते हैं,  जिंहे उस वक्त समझा नहीं गया था,  हलांकि वह उस वक्त भी,  ऐसे ही मौजूद था,  उसने शोर नहीं मचाया था,  किसी पन्ने में कैद हो गया था,  उसकी तलाश में रहने वाले,  उसे पन्ना दर पन्ना ढूंढते हैं,  जो कभी किसी खत का,  हिस्सा नहीं बन पाए,  क्योंकि खत पर,  किसी न किसी का नाम होता है,  जिस पर पता लिखा होता है  जबकि उसके खत, एकदम बेतरतीब हैं,  किसके लिए कौन सा पन्ना है,  यह पता नहीं चलता,  बस इस बात का यकीन करना है  सबके हिस्से में एक खत है जिसका हर एक शब्द उसके लिए है हम भी उसी पन्ने की तलाश में न जाने कितने पन्ने पलटते रहते हैं शायद मेरे नाम व

आत्महत्या | Killing oneself

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खुदकुशी  वैसे भी,  यहां हमेशा के लिए कौन आया है,  फिर किसी को मार देना,  या खुद को मार लेना,  अच्छा तो नहीं है,  एक न एक दिन,  यह जिंदगी,  खुद ही खत्म हो जाती है,  क्योंकि सदा के लिए,  कोई यहां रहता नहीं है,  फिर इसको ऐसे खत्म कर देना,  अच्छा नहीं है,  वजह कुछ भी हो,  तुम्हें हो सकता है,  वाजिब लगती हो,  अब कोई रास्ता नहीं है,  यही सोचा हो,  पर यकीन मानो,  यह रास्ता ठीक नहीं है,  रोज हादसे होते रहते हैं,  जिंदगी का कोई मोल नहीं है,  माना जीना इतना आसान नहीं है,  पर यह बात तो सबको मालूम है,  इसमें कुछ नया तो नहीं है,  जिंदगी बड़ी मुश्किल से चलती है,  जिसमें सिर्फ रोटी की,  जरूरत नहीं होती है,  सवाल केवल रोटी का हो,  बस जिंदा रहना हो,  तब किसी को दिक्कत नहीं है,  पर ऐसा होता नहीं है,  और भी बहुत कुछ है,  न जाने कौन सी कमी,  कब अखरने लगती है,  सब कुछ के बीच,  अनायास एक उदासी चली आती है,  तन्हाई घेर लेती है,  अच्छा लगने का सिलसिला,  थम सा जाता है,  आदमी थकता है, हारता है,  अपनी ही उम्मीदों पर,  खरा नहीं