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Nikamma

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निकम्मा   😀😀😀😀 यूँ खुश होकर,  तालियाँ मत बजाओ, यहाँ सवाल खुद को,  पाने और खोने का है, दर्द ए है कि खुद के मरने का,  मातम भला कैसे मनाए? जबकि अब भी, गरदन बहुत कसके दबी है, मुँह टेढ़ा हो गया है, और जीभ ऐंठ गयी है, सिर्फ एक ही कमी है मरने वाली feeling नहीं दिखती, कमबख्त शक्ल ही ऐसी है, लगता है हँस रहा, वैसे ही जैसे बिना चेहरे वाले, कंकाल होते हैं, जो चेहरों पर हंसते है, वो न तो अपना, न तो दूसरों का चेहरा देखते हैं, अब उन्हें ए मालूम है, असल में जो है, उसमें आँख नहीं है, और चेहरों में कोई फर्क नहीं है, अब वह चेहरे के साथ भी हंसता है हश्र चेहरे का, उसने, जबसे जाना, उसके चेहरे पर,  अनायास हंसी रहने लगी, उसके यूँ हँसते रहने पर, उस पर बेहया होने का इलजाम, लगता है, कैसा निकम्मा है, देखो, अब भी, कैसे हँस रहा है। 😁😁😁😁😁 rajhansraju ****************************** नालायक ******** वह घर लौट कर आया, हर तरफ सन्नाटा पसरा है,  सभी कुछ अपनी जगह पर, बड़े सलीके से रखा है,  पिछले हफ्ते कुछ साम

Mukhauta

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बे-चेहरा  ********** हलाँकि, उसे यही लगता है, उसने मुझे, ऐसो आराम का हर सामान दिया है, मुझे महफूज रखने की सारी व्यवस्था की है, और लोगों से, मुझे समझने का दावा करता है, ए लिबास और दीवार, मेरे लिए तो है, देखो कितनी खूबसूरत है, ए जंजीर सोने की है, इसमें हसीन पत्थर जड़े हैं, सब कुछ बहुत कीमती है, मुझको सर से पाँव तक, हर तरह की रंगीन बेडियों से जकड़ा है, जिसे कभी कोई लिबास, जेवर, या कुछ और कह देता है, उसका दावा अब भी यही है, वह, मेरे सहूलियत, मेरे हक की बात करता है, ए और है कि उसने कभी, मेरी आवाज नहीं सुनी, मुझे सिर्फ बुत समझते रहे, और मै,  बिना किसी पहचान के, हरदम बेचेहरा रही, rajhansraju ************************* (२) मेरे ख्याल से ********* बहुत कुछ कहने, सुनने कि ख़्वाइश़,  सभी को है, पर कहाँ? किससे और क्यों कहें? यह सोचकर अक्सर, चुप रह जाते हैं, जबकि अंदर, रह रहकर कुछ गूँजता है, जबकि बाहर न जाने, कब से? मौन पसरा है, सबको सब, नजर कहाँ आता है? कभी गौर से सुनना, चुप रहकर कोई, क्या

Laawaris। Hindi Poem about unknown person

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बेनाम-लावारिस  *********** चर्चा तो यहाँ भी है कत्ल का जो कि नया नहीं है हलांकि ए कत्ल किसने किया? इसका कोई चश्मदीद नहीं है, उसको किसी और ने मारा या फिर वह खुद ही कातिल था ए किसी को पता नहीं है। सच ए है कि वो जिंदा नहीं है, यकीनन कत्ल तो हुआ है। इसमें कोई शक नही है, ऐसे ही मुर्दों के मिलने का सिलसिला न जाने कब से चलता रहा। ए बिना नाम बिना पहचान के लोग। अरे! नहीं! ए पूरा सच नहीं है इनका भी घर है बस थोड़ा सा ढूँढना है न जाने कितनो का अब भी कोई पता नहीं है कैसे किस हाल में होंगे पर! अक्सर गुमनाम, लावारिस, बेजान जो किसी को नहीं मिलते यूँ ही धीरे-धीरे गुम हो जाते हैं उन्हें न तो श्मशान मिलता है और न ही कब्रिस्तान, उनके जाने की किसी को खबर नहीं होती, कोई मातम भला कैसे होगा? वो जिस घर का शख्स है, इससे अनजान, उसके इंतजार में रहता है, यह उम्मीद अच्छी है कि बुरी, क्या कहें? पर! उसके होने का भरोसा सब में, बहुत कुछ जिंदा रखता है। आज बहुत कुछ टूटा, घर के हर शख्स में कुछ खाली सा हो गया। क्या जरूरत थी जो उस