Saudagar
सौदागर ********* पूरी उम्र गुजर गयी, कुछ भी समझने में, खामोश हो गए परिंदे, बोलते-बोलते, बहुत है, शाम को घरौंदे में, लौट कर आना, आखिर कब तक रहेगा आसमान में, जहाँ किसी का, कोई ठिकाना नहीं है वह तो सफर के लिए, सिर्फ़ राह देता है, वह भी अनंत, जहाँ ठहरने की गुंजाइश नहीं है, और तभी तक है, जब तक सफर है, उसकी ऊँचाई और दूरी का, कोई पैमाना नहीं है, इतनी भीड़ है, बहुत तेज चल रहे हैं, इसके बाद भी, सबको शिकायत है, जैसे आज ही, हर शख्स, एक साथ, सफर पर निकले है, इस आपाधापी में, खो जाने का डर, इस कदर बैठा है, कहता कुछ नहीं, पर चेहरा कहाँ चुप रहता है, किसी का भी रुक पाना, मुमकिन नहीं लगता, चलने की आदत, इस कदर हो गई है, वैसे भी लौटना, कौन चाहता है, शहर पूरी रफ्तार में है, न जाने कहाँ, पहुँचने की जल्दी है, कहीं कोई ठहर कर, कुछ देखता नहीं, किस मुकाम पर है, इसका अंदाजा लगता नहीं, मगर जल्दी बहुत है, यही कहता फिरता है, कमबख्त कोई सुकून से, कहीं ठहरता नहीं