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किताबों कि दुनिया

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किताब ******** आज भी कुछ गूँजता है  रह-रह कर कहीं  बेचैन हो उठता है  बेवजह ही  सही  सब कुछ  उसके लिए नया है  क्योंकि अब तक  कहीं कुछ देखा ही नहीं  कैद है अपनी हदों में  और दूसरों की सरहदें तय करता है आदमी ऐसा ही है  जिसने पट्टी बांध रखी है  वही आगे-आगे चलता है।  लोगों को भी उसी पर यकीन है  जो कुछ देखता नहीं।।  वह कैसे कह दे उसे सच  से नहीं  हसीन पर्दे से प्यार है,  जो उसके लिए जरूरी है  जिसमें वह खुद को छुपा लेता है।  दिन रात उसी की फिक्र में रहता है  जिसके बचे रहने की मियाद बहुत कम है  उसकी रंगत भी एक जैसी नहीं रहनी,  चाहत उसे नए पर्दे की  हरदम रहती है।  अब उसके साथ कुछ यूँ  होने लगा है।   सामने वाले,  रंगीन पर्दे से  परेशान रहने लगा है।  ©️RajhansRaju ***************************** (2) परदा ********* कब तक बनेगा चेहरा? जब रोशनी दूर हो आँखो से, क्या करेगा परदा, फिर तन्हा, मकानों मे, खुद को पाता है, ड़र-ड़र के,  न जाने किससे, चेहरा छुपाता है,  आइने के सामने,  परदा लेकर जाता

Fakir। a seeker

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फकीर  ********* फकीर के हँसने का सिलसिला,  कठघरे में भी चलता रहा,  लोग उसको पागल कहने लगे,  जबकि शहर में हर तरफ,  उसी का चर्चा है,  भला फकीर से किसको खतरा है,  उसके पास तो कोई झोली भी नहीं है,  जिसमें कुछ रखा हो,  या भरके ले जाता।  वह तो एक दम खाली हाथ,  फक्कड़, बेपरवाह, लगभग अवारा है,  फिर वह गिरफ्तार क्यों हो गया,  कहीं कोई और बात तो नहीं है?  ए फकीर हो सकता है बहुरूपिया हो,  नहीं  तो भला,  सरकार का उससे क्या वास्ता है,  सड़क की खाक छानने वालों की कोई कमी तो नहीं  है,  रोजी-रोटी की जंग तो वैसे ही जारी है।  सुनने में तो ए आ रहा है  फकीर की बदजुबानी से,  शहर का काजी,  सबसे ज्यादा परेशान था,  सवाल ए भी है,  वो भागा क्यों नहीं?  जब यहाँ पर उसकी होने की,  कोई वाजिब वजह नहीं है,  वो तो कहीं भी किसी भी,  खानकाह का हो लेता,  पर उसने ऐसा नहीं किया,  उसके सामने भी सिक्के बरसते,  बस इतना करना था,  आँख, कान बंद रखना था,  और कभी सच नहीं कहना था,  शहर का काजी बनने की,  सिर्फ़ यही मामुली शर्त थी।  सभी रहनुमा उ