किताबों कि दुनिया
किताब ******** आज भी कुछ गूँजता है रह-रह कर कहीं बेचैन हो उठता है बेवजह ही सही सब कुछ उसके लिए नया है क्योंकि अब तक कहीं कुछ देखा ही नहीं कैद है अपनी हदों में और दूसरों की सरहदें तय करता है आदमी ऐसा ही है जिसने पट्टी बांध रखी है वही आगे-आगे चलता है। लोगों को भी उसी पर यकीन है जो कुछ देखता नहीं।। वह कैसे कह दे उसे सच से नहीं हसीन पर्दे से प्यार है, जो उसके लिए जरूरी है जिसमें वह खुद को छुपा लेता है। दिन रात उसी की फिक्र में रहता है जिसके बचे रहने की मियाद बहुत कम है उसकी रंगत भी एक जैसी नहीं रहनी, चाहत उसे नए पर्दे की हरदम रहती है। अब उसके साथ कुछ यूँ होने लगा है। सामने वाले, रंगीन पर्दे से परेशान रहने लगा है। ©️RajhansRaju ***************************** (2) परदा ********* कब तक बनेगा चेहरा? जब रोशनी दूर हो आँखो से, ...