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israel hamas war

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युद्ध और बेबसी   जब भी युद्ध हुआ  सबने यही दावा किया  वह सही हैं  क्योंकि यह लड़ाई  वह अपनी पहचान बताने  बचाने के लिए लड़ रहे हैं  जबकि यह अपनी-अपनी  बर्बरता-क्रूरता, निर्ममता जताने का मौका है भला कैसे छोड़ दे  कोई अपनी फितरत  उसने बताया वह अब भी  इंसान नहीं बन पाया है  वह जानवरों से भी बद्तर है  क्योंकि जानवर तो जंगल में रहते हैं  और जंगल के अपने नियम है  वहां जिंदा रहने की कुछ शर्त है  पर हमने तो अपने अंदर  एक अंधेरा जंगल सहेज रखा है  जिसमें कोई नियम नहीं है  हम कौन से जानवर हैं  आज तक पता नहीं है  शिकार करते हैं  होते हैं।  पर इंसान जब इंसान को मारता है  तो वह शिकार नहीं करता है  वह अपनी हदें बताता है  वह इंसान नहीं है।  जानवर कहलाने लायक भी नहीं  हालांकि हमारे पास शब्द है  भावनाओं कि अभिव्यक्ति के तरीके है  मगर किस काम के  जब सिर्फ बंदूक  गोला बारूद से काम होता हो  यही सच है  हम ऐसे ही हैं  बस सच स्वीकार करने की  सामर्थ्य नहीं है  हम क्यों लड़ रहे हैं  इस बात का जो तर्क देते हैं  वह पूरा सच नहीं है  दुनिया का कोई भी कोना हो  युद्ध हकीकत है  सबसे ज्यादा वही लोग मारे जाते हैं  जिनकी

Chai

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 एक प्याली चाय  मैंने कितनी बार कहा है चाय के लिए मत पूछा करो यही तो एक चीज है जिसे पीते हैं बस थोड़ी थोड़ी देर पर थोड़ी थोड़ी मिलती रहे तो क्या हर्ज है? और हर बार जब तुम पूछते हो तो लगता है तुम्हें बनाने में दिक्कत है या पिलाने में परहेज? पर हम तो ठहरे पूरे चहेड़ी चाय के लिए बेहया बन जाते हैं और मुस्कराहट के साथ पियेंगे क्यो नहीं पियेंगे कहके चाय का जयघोष कर देते हैं   फिर कुछ देर में चाय हाजिर हो जाती है और जानते हैं कभी एक चाय किसी एक के लिए नहीं बनती मतलब न तो कप न चाय अकेले होती है चाय की यही खूबी है हमेशा साथ में पी जाती है वह आधी कप हो या पूरी इससे क्या फर्क पड़ता है बस चाय पीनी है इसलिए पीते हैं क्योंकि हम कुछ और नहीं पीते कुछ और पीने का मतलब तो समझ ही रहे हो अगर यह चाहते हो कुछ लोग कुछ और न पिएं तो फिर बस यूँ ही चाय पिलाते रहो वैसे चाय से आगे चाय पीने वाले जा भी नहीं पाते क्योंकि जो चाय पीते हैं उनकी हद चाय तक ही होती है हाँ कभी-कभी अच्छी कॉफ़ी मिल जाए तो अच्छा लगता है मगर कॉफी में वह चाय वाली बात नहीं आती है जैसे चाय में काफी वाली नहीं आती बस एक आदत पड़ जाती है वही मन को भाने