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Safar

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मेरा सफर *********** परछाई का पीछा करता रहा हूँ, न जाने किसकी आरजू में, भटकता रहा हूँ, ए आइने में कौन है? जो मुझसे हर वक्त, कुछ कहता रहता है, मै बहुत पहले गाँव में, वो अपनी छोटी सी, मीठी नदी छोड़ आया, जहाँ आम के बाग थे, और इमली का पेड़ था, यकीन मानिए, उसकी पत्तियाँ भी खट्टी होती है, वक्त की किसे परवाह थी, वह तो हम सबकी मुठ्ठी में था, अभी आँख खुली तो देखा, मै किसी घने जंगल में, एक दम अकेला हूँ, जहाँ सब कंक्रीट और लोहे का है, न कोई कुछ सुनता है, न कहता है, और वो बूढ़ा दरख्त, आसपास नजर नहीं आता, जिसके छांव में वक्त भी, ठहर जाया करता था, खैर! मैंने आँख बंद की, उसी दुनिया में, लौट जाने की नाकाम, कोशिश करता रहा, कम्बख्त ए नींद, न जाने अब कब आए, वैसे मैने जो चाहा था, तूँने वही तो दिया, जिसकी शर्त यही थी, इस सफर में वापसी नहीं होगी, वक्त का पहिया चलता रहा, अब मेरे चारों तरफ, अथाह पानी है, पर! उसका एक कतरा, मैं पी नहीं सकता, तूँने तो पूरा समुंदर दे दिया, बस जीने का हक मुझसे मेरा छीन लिया। मैं इसी उदासी

The Boat

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पानी की नाव *********** (1) वो जो कभी मिलता नहीं, बस तलाश रहती है, नाम उसका कुछ भी नहीं, जिसकी आश रहती है, सफर दर सफर, लोग कम होते रहे, कुछ ने, कुछ तो पाया, चलो अच्छा हुआ, कश्ती में सफर करने वाले, अपने-अपने किनारे उतरते रहे, वो भी क्या करते ? जितना समझना था, समझ लिया.. थक कर, नदी को समुंदर कहने लगे, जबकि वो कुछ ही दूर था,  बेसब्र लहरें आवाज दे रही थी, फासला चंद कदमों का था, शायद! वह नाव और नदी से, थक गया था, तभी किनारे पर, नर्म घास दिखी, बहुत दिनों से, सोया नहीं था, उसके सामने हरी वादियां थी, अब नदी बेकार लगने लगी, उसके होने का मतलब नहीं था, अब यही हरे घास का मैदान उसके लिए सारा जहाँ था। सफर ऐसा ही है, जिंदगी का, सबने थककर, कहीं न कहीं लंगर डाल दिया है, जबकि नदी अब भी, समुंदर को मीठा करने का, खाब देखती है, ए नाव भी बड़ी अजीब है, जो पानी से बनी है, जिसे बहने के सिवा, कुछ आता ही नहीं है। Rajhans Raju ***************************' (2) पानी ही है दरिया, सागर,  बादल, बारि