Mera Bharat
मेरा भारत ********* वह सुबह से शाम तक, एक बोरी पीठ पर टांग कर, किसी छप्पर से निकलता है, रद्दी बीनता है, यह व्यापार भी, मुनाफे से ही तो चलता है, जो इन मासूम के कंधों, पर रहता है। वह तो महज, एक खेल समझता है पूरे दिन खेलना है, यही समझकर निकल लेता है, वह गली के हर मकान पर, दस्तक लगाता है, घर के कबाड़, के चर्चे करता है, किसी और को मत देना, यह गुजारिश करता है, पुराने अखबार और गत्ते, बड़ी खबर हैं उसके लिये, कुछ मांग कर खा लेने में, उसे दिक्कत नहीं होती, दुत्कार और डाट पर, मुस्करा देता है, कुछ नहीं मिला तो, कौन सी नयी बात है, प्यार से किसी ने बात कर ली, तो कुछ अचरज सा होता है। वह ढूँढ़ता है उस शख्स को, अपने जहान में, जो रखदे हाथ उसके कंधे पर, पूछ ले उसका हाल, वो हर उस आदमी से डरता है, जिन्हें फिक्र करनी है, इन पौधों की, उन्हें चिंता बहुत है, सिर्फ़ अपने जेब की, दिलो-दिमाग रद्दी हो चुके हैं, इन खेवनहारों के, हर मोड़ पर मौजूद है, एक शातिर कबाड़ी, वह बिना कुछ कहे, काम पर रखता है, लोगों को इस तरह, हर आदमी उसके लिए है, रद्दी की तरह। कल ब...