Astitv। existence-being real
अस्तित्व ********** अभी-अभी कहीं और से , उखाड़ के रोपा है , पौधा हरा है , जड़े बची है , सुबह देखना , मुरझाई पत्तियाँ , कैसे अँगड़ाई लेती हैं , ऐसे ही जिन्दगी के , तमाम जख्म भर जाते हैं नया सवेरा , नई रोशनी , नई बात बता जाती है , कोई कुछ नहीं कहता , कहानी खुद ही अपनी , दास्ता कह जाती है , अगर उसमे कुछ भी बचा होगा , वह उठेगा नया घरौंदा , बना लेगा , मिट्टी में जड़ जमा लेगा , फिर पतझड़ में पत्तियाँ गिरेंगी , तब तक वह पेड़ बन चुका होगा.. rajhansraju ************************* धीरे-धीरे मचल ऐ दिले बेकरार ********************* दीवाली न जाने कितने बरस बीत गए, वह अपनी जद्दो-जहद में उलझा रहा, खाने-कमाने का, न खत्म होने वाला सिलसिला, कुछ, फिर और पाने कि इच्छा, यूँ ही वक्त का बीतते जाना, और कुछ भी न समेट पाना, थककर कहीं गुम हो जाना, अनायास ही, अतीत की पगड़ंड़ी की तरफ, लौट जाने की, नाकाम कोशिश, न जाने कब खत्म हो यह वनवास? वह तो चौदह वर्ष में ही लौट आए थे, पर! क्यों ...