Laawaris। Hindi Poem about unknown person
बेनाम-लावारिस *********** चर्चा तो यहाँ भी है कत्ल का जो कि नया नहीं है हलांकि ए कत्ल किसने किया? इसका कोई चश्मदीद नहीं है, उसको किसी और ने मारा या फिर वह खुद ही कातिल था ए किसी को पता नहीं है। सच ए है कि वो जिंदा नहीं है, यकीनन कत्ल तो हुआ है। इसमें कोई शक नही है, ऐसे ही मुर्दों के मिलने का सिलसिला न जाने कब से चलता रहा। ए बिना नाम बिना पहचान के लोग। अरे! नहीं! ए पूरा सच नहीं है इनका भी घर है बस थोड़ा सा ढूँढना है न जाने कितनो का अब भी कोई पता नहीं है कैसे किस हाल में होंगे पर! अक्सर गुमनाम, लावारिस, बेजान जो किसी को नहीं मिलते यूँ ही धीरे-धीरे गुम हो जाते हैं उन्हें न तो श्मशान मिलता है और न ही कब्रिस्तान, उनके जाने की किसी को खबर नहीं होती, कोई मातम भला कैसे होगा? वो जिस घर का शख्स है, इससे अनजान, उसके इंतजार में रहता है, यह उम्मीद अच्छी है कि बुरी, क्या कहें? पर! उसके होने का भरोसा सब में, बहुत कुछ जिंदा रखता है। आज बहुत कुछ टूटा, घर के हर शख्स में कुछ खाली सा हो गया। क्या जरूरत थी जो उस