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Showing posts from December, 2020

Crisis of identity

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पहचान       खिलौने वाला *********** बहुत दिन बाद लौट कर आया शहर तो अपना ही है  पर अब बदल गया है  हर तरफ रंगीन मुखौटे नजर आते हैं  सब एक दूसरे से बेहतरीन होने की,  कोशिश कर रहे हैं,  पर यह तय कौन करे कौन सा मुखौटा सबसे हसीन है  उसे तो उन चेहरों की तलाश है  जिसे वह बहुत साल पहले,  छोड़ गया था  अब कोई पहचान में क्यों नहीं आता  किसी जगह कोई आईना,   नजर नहीं आता  हर आदमी खरीदने बेचने में लगा है  दुकानदार की तो खूबी यही है  उसे मुखौटा बेचना हैं  इसके लिए जरूरी है   कहीं कोई आईना न हो,  क्योंकि अक्स नजर आते ही  मुखौटे की जरूरत नहीं रह जाएगी  हर शख्स अपने चेहरे से,  खफा नजर आएगा,  मैं भी चेहरों की तलाश में,  कहीं मुखौटा तो नहीं बन गया  आईना देखे एक अरसा हो गया  मेरा चेहरा बचा है कि नहीं  पता नहीं चलता  ऐसे लोग अब भी हंसते हैं  मेरा चेहरा देखकर,  यही कहते हैं इसके जैसा मुखौटा,  कहीं देखा नहीं,  ऐसा कहीं दूसरा कोई बनाता...

Buddha

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बुद्ध  बुद्ध - एक यात्रा *************** उसने कहा था एक दिन वक्त ठहर जाएगा मैं हंसता रहा यह कैसे हो सकता है अगर कुछ चलायमान है तो वह वक्त ही है जो किसी के लिए नहीं रुकता तब उसने कुछ नहीं कहा सिर्फ मौन धारण कर लिया था मुझे लगा उसके पास कोई जवाब नहीं है, ठीक उसी तरह जब ढेर सारे सवाल पूछे जाते तो बहुत से प्रश्नों के, जवाब नहीं देता बस मौन हो जाता ऐसे में लगता, उसके पास कोई उत्तर नहीं है अक्सर प्रश्न पूछने वाला अपने आप को श्रेष्ठ समझने लग जाता यहीं वह सबसे बड़ी भूल कर बैठता। क्यों कोई बुद्ध नहीं बन पाता जबकि बुद्ध बनना तो एक निरंतरता है यह कोई एक बुद्ध की बात नहीं है कभी किसी बुद्ध ने, आखरी बार जन्म लिया था जो अब जन्म नहीं लेगा ऐसा नहीं है यह तो एक परंपरा, खोज का नाम है जो सदा से होता रहा है बुद्ध बनने का अर्थ ही है मौन हो जाना जिन प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए थे आज भी न जाने कितनी बार, रोज पूछे जाते हैं बुद्ध के ज्ञान पर उंगलियां उठाई जाती हैं जबकि हकीकत यह है जो पूछा जा रहा है वास्तव में वह सवाल ही नही...