घर से निकलते ही | anything | कुछ भी
नजरिया सही-गलत, अiच्छा-बुरा साथ-साथ चलते हैं नीम के कड़वे पत्ते दवा बनते हैं वह चोला पहन फकीरों का धंधे तमाम करता है आदमी अच्छा है इस बात के नारे लग रहे हैं कोई देखता सुनता नहीं है चारों तरफ भीड़ बहुत है। अपने आसपास देखता हूँ जिनके ऊपर बड़ा इल्ज़ाम है वही बेहतरीन लाजवाब है चलन है इस तरह खोटे का, कोई उसे पलटकर देखता नहीं है सही-गलत का एक तरफा फैसला अपनी सहूलियत से करता है जबकि सब कुछ अधूरा है हर सिक्के के दो पहलू हैं एक तरफा नजरिया सही नहीं है Rajhans Raju ******************** (2) एक बार बचपन में दरख़्त की कहानी सुनी थी उस पर बहुत खूबसूरत फूल लगे थे वह खुशबू आज तलक लोगों के जेहन में है उसके फूल और खुशबू की हर बुजुर्ग चर्चे करता है जैसे अब भी उसी के इंतजार वह यहाँ ठहरा हुआ है शायद इस बरस दरख़्त उन फूलों से सज जाए ऐसे ही न जाने कब से उसे तकते-तकते मैं बूढ़ा हो चला हूँ कमबख्त इंतजार की आदत, कुछ इस तरह बन गयी है, कहीं और जा पाता नहीं हूँ जबकि सुना है कुछ दरख़्तों में सिर्फ़ एक बार