Mujrim
मुजरिम तुम रोशनी लेकर यूँ रात में क्यों फिरते रहते हो भला कौन खो गया है जिसकी तलाश में अंधेरे से लड़ते रहते हो यह रोशनी कितनों को रास्ता दिखाएगी इसका अंदाजा तो नहीं है मगर तुम कहां हो यह सबको बता देगी। इन अंधेरों में रास्ता भटक गए मुसाफिरों के अलावा भी बहुत से लोग घात लगाकर बैठे हैं जिन्हें सिर्फ अपने शिकार से वास्ता है। एक शख्स जुगनू की रोशनी में खोया है रास्ता भूल कर आया हो ऐसा भी नहीं लगता है जाने पहचाने अंधेरे रास्ते जाहिर है कोई पुराना वास्ता है। वह पेड़ भी बूढ़ा हो गया है पहले कई पेड़ साथ हुआ करते थे आज अकेला हो गया है जब सब साथ थे धूप हवा पानी बांटने में लगे थे आज भी अपने हिस्से से ज्यादा कुछ ले नहीं सकता हैं। उसने दामन फैलाया हर तरफ घनघोर अंधेरा है एक जुगनू उसकी हथेली पर है वह मौन है कहां किसकी तलाश में निकला था अभी वह मिला नहीं है उसने जितना आजाद होने की कोशिश की बेड़िया बढ़ती गई उसके चारों तरफ दीवारें खड़ी होने लगी वह रिहाई की बात भला किससे करता उसकी आवाज खुद में घुटने लगी वह रोज अपने चारों तरफ एक नया पत्थर करीने से गढ़कर लगा देता है रिहाई के रास्ते बंद करता ...