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Mujrim

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मुजरिम  तुम रोशनी लेकर यूँ रात में क्यों फिरते रहते हो भला कौन खो गया है जिसकी तलाश में अंधेरे से लड़ते रहते हो यह रोशनी कितनों को रास्ता दिखाएगी  इसका अंदाजा तो नहीं है मगर तुम कहां हो यह सबको बता देगी। इन अंधेरों में रास्ता भटक गए मुसाफिरों के अलावा भी बहुत से लोग घात लगाकर बैठे हैं जिन्हें सिर्फ अपने शिकार से वास्ता है। एक शख्स जुगनू की रोशनी में खोया है रास्ता भूल कर आया हो ऐसा भी नहीं लगता है जाने पहचाने अंधेरे रास्ते जाहिर है कोई पुराना वास्ता है। वह पेड़ भी बूढ़ा हो गया है पहले कई पेड़ साथ हुआ करते थे आज अकेला हो गया है जब सब साथ थे धूप हवा पानी बांटने में लगे थे आज भी अपने हिस्से से ज्यादा कुछ ले नहीं सकता हैं। उसने दामन फैलाया हर तरफ घनघोर अंधेरा है एक जुगनू उसकी हथेली पर है वह मौन है कहां किसकी तलाश में निकला था अभी वह मिला नहीं है उसने जितना आजाद होने की कोशिश की बेड़िया बढ़ती गई उसके चारों तरफ दीवारें खड़ी होने लगी वह रिहाई की बात भला किससे करता उसकी आवाज खुद में घुटने लगी वह रोज अपने चारों तरफ  एक नया पत्थर करीने से गढ़कर लगा देता है रिहाई के रास्ते बंद करता रहता है बात रि

sahi aur galat

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    सही और गलत   कल तक था जो सही अब उसकी जरूरत नहीं रही फिर कहने को कहते हो पर क्या कहना है पहले से तय रखते हो ऐसे में कोई कहे भला क्या अपना-अपना सबका सच है जबकि सच पास ही कोने में बैठा है पर नजर भला डाले कौन आईने में शक्ल निहारे कौन?? ©️Rajhansraju 🌹🌹🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌹🌹 सफर  आज इस जगह जो हम इस तरह मिले हैं कुछ चाहा सा अनचाहे हो गया है एक पुराना बरगद अल्पविराम सा राह में आ गया है हम सदा से अधूरे तुम भी कहां मुकम्मल थे...... आज इस जगह जो हम इस तरह मिले हैं यह सफर दर सफर मुसाफिरत आदत हो गई है कहीं एक जगह ठहरने की रवायत खो गई है छांव के मायने बरगद गुनगुना रहा है एक बुजुर्ग थककर रोने लगा है बरगद में चिड़ियों का अब भी घोसला है आसमान में उड़ने वालों का घर यही है....... आज इस जगह जो हम इस तरह मिले हैं मुद्दतो बाद खुलकर हंसे हैं चलो अब चांद पर चलते हैं हाथ बढ़ाया तो हंसने लगा रोते-रोते कहने लगा बड़ी मुश्किल से अभी कल ही वहां से लौटे हैं चांद की अजब आदत हो गई थी वह मिलता नहीं किसी को मगर सबका लगता है मुझे लगा एकदम करीब हूँ पा लिया उसको तभी वह एकदम दूर हो गया और जहां से चला था वहीं रह गया इस कोशि