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Ram Mandir

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जय राम जी    कुछ ऐसा  जो खोया हुआ था  क्या, किससे कहें  न शब्द न आकार  कुछ भी नहीं  मेरे पास  अंदर कुछ खाली सा उसकी तलाश जारी रही  एक वेदना  सदा सताती रही  आज कुछ तो मिल गया तभी एक सुकून आया है  हलांकि घाव  अब भी काफी गहरा है उसी के भरने की प्रतीक्षा है  ©️Rajhansraju  ****** हमारी कहानी   मैं राम को अपने कैसे मानूं  यह मेरी इच्छा पर छोड़ दो  मैं अच्छा हूँ या बुरा  मेरी चर्चा छोड़ दो मैं जैसा भी हूँ  मुझको मेरे हाल पर छोड़ दो मुझमें थोड़ी कम अकल है या फिर समझ बड़ी है  मैं जय सियाराम कहूँ  या फिर जय श्री राम  मेरी मर्जी पर छोड़ दो मैं किस घट में ढूंढूंगा  या फिर कैसे  पहुँचुंगा उन तक  इसकी फिक्र मत करो  आज नहीं तो कल  मैं उनसे मिल लूंगा  कोई भी रूप सही  मेरी इच्छा होगी जैसी उनको कैसे भी गढ़ लूंगा इसकी फिक्र तुम मत करो  मैं अपना समझ लूंगा  यह बात  जो तुम समझा रहे हो  सच बोलो  क्या तुम समझ गए हो  या फिर ऐसे ही तुमने भी  एक दुकान खोल रखी है  और तुम भी  कुछ बेच रहे हो  अब तक ऐसे ही  कितनी बातें कही गई है  कुछ लोगों ने तो  न जाने क्या-क्या गढ़ दिया है  राम के बदले रावण को ही  जैसे अब पूजने ल

Cinema and society

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 हमारा सिनेमा और समाज  हमारी फिल्मों की जो यात्रा है वह आमतौर पर कथित या  घोषित तौर पर खुद को सस्ता, हिंसक, अश्लील बिकाऊ साहित्य का अपडेटेड वर्जन बनाना भर है जो इंटरनेट की वजह से एक हो चुकी दुनिया में ग्लोबल मार्केट से पैसा कमाने की अपार संभावना में खुद के लिए पर्याप्त हिस्सा हासिल करने की कोशिश भर लगती है जहां असीमित अपार धन कमाया जा सकता है। इनका मकसद किसी की दशा सुधारना या कोई दिशा दिखाना नहीं है।         वैसे समाज में सभी चीजें एक साथ चलती रहती है और साहित्य, सिनेमा में भी एक साथ सभी के लिए कुछ ना कुछ उपलब्ध होता है। किसी के लिए भी दर्शक, श्रोता, पाठक कभी कम नहीं होते और न वहां पैसों की कमी होती है बस अपनी बात, अपने कंटेंट को सही ढंग से परोसना आना चाहिए अखबार और किताब अभी भी छप रहे हैं। जापान हो या अमेरिका सभी जगह उनकी छपाई और गुणवत्ता निरंतर बेहतर हुई है या यूं कहें कि पहले से ज्यादा काम हो रहा है क्योंकि कागज और स्याही की खुशबू लोगों को कागज के करीब ले आती है इसमें कोई संदेह नहीं है जहां वह कुछ लिखता-पढ़ता, हाँ सबसे बड़ी बात वह छुअन महसूस करता है।        हमारी फिल्में किस तरह की