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haq

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मुखौटा और चेहरा वह जो कह रहा  है बड़ा अजीब सा  सच्ची बात है  लग रहा अजीब सा  आईना लिए  वह सामने खड़ा रहा  कोई सामने से  गुजरता क्यों भला  सबको मालूम है सच  क्यों जाहिर करे  क्या है क्या नहीं है वह,  हाल ऐसा है  यहां सभी का  चेहरा नहीं मुखौटा है  चेहरा लग रहा है बस जो दावा कर रहा है  सच्चा और अच्छा है  वह चेहरा बेचने का  हुनर जानता है  बाजार में खड़ा है  कीमत चाहता है  न जाने कितने चेहरों से  चेहरा ढक लिया है  रोज उसका नया चेहरा है  वह शख्स दुबारा  किसी को मिलता नहीं है  बहुत दिन तक  यह खेल चलता रहा  बहुरूपियों कि कमी  कहां थी बाजार में  देखते देखते  यह कारोबार चल गया  और भी लोग  आ गए मैदान में  सबको मालूम चल गया  तूंँ वह नहीं है  जैसा सबको दिख रहा  सबकी तरह तूंँ भी  महज दुकानदार है  अब जो कह रहा  वह बड़ा अजीब है  तूंँ आदमी जैसा है,  बस आदमी नहीं है  अभी उसने रोना रोया है...