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Saiyaara

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धूमकेतु  वह उसे यूं ही निहारता रहा  एक टक देखता रहा  एक भी शब्द नहीं कहा  बस गुमसुम बैठा रहा  कब से  इसका एहसास नहीं है  ऐसे ही वक्त  फासला तय करता रहा  कौन कहां गया  किसी को पता नहीं चला  सदियां गुजर गई  वह इंतजार में था  या ठहरा हुआ था  किसके लिए  उसे भी मालूम नहीं  नदी अब भी वैसे ही बह रही है  उसका नाम गंगा है  सुना है  उसने न जाने कितनों को  उस पार पहुंचाया है  बस वह नाव  जो इस पार से उस पार जाती है  शायद उसी की राह देख रहा है  न जाने कब से? भगीरथ उसे यहां लाए थे  अपने पूर्वजों के लिए  उनकी प्यास मिटाने  जिन्होंने इंतजार में  अपनी काया इस माटी को सौंप दी थी  तब से न जाने कितने लोग  गंगा के साथ  अपनी-अपनी यात्रा पर गए  और यह यात्रा ऐसी है  जिसकी कोई कहानी कहता नहीं  क्योंकि गंगा  गंगा सागर में जाकर मिल जाती हैं  और सागर से भला  कौन लौट कर आना चाहेगा  जो खुद सागर बन गया हो  लौटकर किसको  अ...