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Showing posts from 2025

Saiyaara

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धूमकेतु  वह उसे यूं ही निहारता रहा  एक टक देखता रहा  एक भी शब्द नहीं कहा  बस गुमसुम बैठा रहा  कब से  इसका एहसास नहीं है  ऐसे ही वक्त  फासला तय करता रहा  कौन कहां गया  किसी को पता नहीं चला  सदियां गुजर गई  वह इंतजार में था  या ठहरा हुआ था  किसके लिए  उसे भी मालूम नहीं  नदी अब भी वैसे ही बह रही है  उसका नाम गंगा है  सुना है  उसने न जाने कितनों को  उस पार पहुंचाया है  बस वह नाव  जो इस पार से उस पार जाती है  शायद उसी की राह देख रहा है  न जाने कब से? भगीरथ उसे यहां लाए थे  अपने पूर्वजों के लिए  उनकी प्यास मिटाने  जिन्होंने इंतजार में  अपनी काया इस माटी को सौंप दी थी  तब से न जाने कितने लोग  गंगा के साथ  अपनी-अपनी यात्रा पर गए  और यह यात्रा ऐसी है  जिसकी कोई कहानी कहता नहीं  क्योंकि गंगा  गंगा सागर में जाकर मिल जाती हैं  और सागर से भला  कौन लौट कर आना चाहेगा  जो खुद सागर बन गया हो  लौटकर किसको  अ...

Cactus

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कैक्टस    जहां पानी कम होता है  या फिर नहीं होता  उस बंजर जमीन को भी  हरा किया जा सकता है  बस वहां  कैक्टस लगाना होता है  और कभी-कभी तो कैक्टस  वहां खुद उग आते हैं  यह बिरानगी उनसे  देखी नहीं जाती  अपने कांटों से  रेत रोकने लग जाते हैं  कोई इस हाल में  इतना हरा हो सकता है  पानी के अभाव में  हरियाली की जिम्मेदारी  कैसे ले सकता है  इस सहरा में भी  वैसे ही सहर होती है  एक दिन सुकून की छांव होगी  यहां भी पानी होगा  यहीं किनारा होगा  यहां सब कुछ होगा  कैक्टस ने जिम्मेदारी ली है  एक घरौंदा बनाने की उसकी अधूरी छांव में  अब उतनी धूप नहीं लगती आज  कोई अनजाना अंकुर फूटा है  न जाने बड़ा पेड़ होगा  या धरती का बिछौना  मखमली घास होगा खैर कुछ भी हो  शुरुआत तो ऐसे ही होती है  मेरे सिवा कोई और है  मैं अकेला नहीं हूंँ यह काफी है  मैं कैक्टस हूंँ  मेरा काम  आसान नहीं है  दूसरे पौधे अपना वजूद  बनाने लगे हैं  म...