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Showing posts from August, 2024

Babuji

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  जय सत् गुरु देव  ************************ 1. शून्य शिखर से बह रही ,समय नदी की धार ।     जहां न कोई नाव है , ना कोई पतवार।। 2. ना देखा, ना ही सुना, कैसे लाग्यो पार।     अनुभव, अंतर मन रहै ,ज्ञानी करो विचार।। 3. समरथ राम सबहि ......... उपजाये।    अचरज, मरम केहू जानि न पाए।। 4. सतगुरु , सांचा शूरमा पंथ करे उजियार।    माया , भ्रम जीवन कट्य़ ,भटकत एहि संसार।। 5. भाग करम बस बिधि लिखा ,जानो हिय करि चेत।    भव भ्रम पड़ि भटकत रह्यो ,जो रहि गयो अचेत।। 6. घर छूटा , फूटा घड़ा, पंछी उड़ा अकाश।    जहां से आया सो गया, अमरावती निवास।। 7. अंत समय,आखर अमर,अमर करम,जप,जोग।    संत समाना सबद मे जीव गया सतलोक।। ©️ बालकृष्ण तिवारी  एक ऐसी अजीब यात्रा जहां मुसाफिरों की मुसाफिरत का अंतहीन सिलसिला और न जाने कितनी बातें  जिसमें जितनी समझ  अपनी अपनी कह रहा है जबकि मालूम कुछ भी नहीं है  सबकी अपनी कहानी  एकदम सच्ची है क्योंकि उसमें वह मौजूद है बस इतनी सी बात है  ©️ RajhansRaju  अपनी-अपनी चेतना  सत्य-असत्य, पवित्र-अपवित्र, पुण्य-पाप, धर्म-अधर्म, नूतन-पुरातन, भेद-अभेद, मोक्ष-बंधन, प्रकाश-अंधकार, जीवन-मृत्यु, ......