Dussehra
रावण दहन ******* कुछ लोग बहुत दुखी थे खूब आलोचना कर रहे थे क्या होना चाहिए सबसे यही कह रहे पर आगे बढ़कर किसी को कोई थामता नहीं सब उपदेश देते हैं खुद कुछ करते नहीं अभी जब रास्ते से गुजर रहे थे कोई बीमार था कोई किसी का शिकार था सड़क किनारे बेबस लाचार था कुछ तो कर सकते थे उसके लिए वह किया नहीं अफसोस जताते रहे दुनिया पर इंसानियत मर गई यह भी कहते रहे पर एक क्षण के लिए भी मुड़कर देखा नहीं जो गिरे थे उनको उठाने की कोशिश नहीं की और फिर उपदेश देने लग गए क्या-क्या बुरा है दिन कैसे आ गए इंसानियत पर भरोसा अब किसी का रहा नहीं और अपनी शानदार नई गाड़ी में आगे बढ़ा गए। अनजाने में अनायास ही वह फुटपथ पर सोए लोगों पर चढ़ गई यह भी कोई जगह है सोने के लिए लोगों को अक्ल नहीं है कैसे रहना चाहिए सड़क है चलने के लिए ******** ए नए रईस और उनके बच्चे जिन्हें मालूम ही नहीं...