Cinema and society
हमारा सिनेमा और समाज हमारी फिल्मों की जो यात्रा है वह आमतौर पर कथित या घोषित तौर पर खुद को सस्ता, हिंसक, अश्लील बिकाऊ साहित्य का अपडेटेड वर्जन बनाना भर है जो इंटरनेट की वजह से एक हो चुकी दुनिया में ग्लोबल मार्केट से पैसा कमाने की अपार संभावना में खुद के लिए पर्याप्त हिस्सा हासिल करने की कोशिश भर लगती है जहां असीमित अपार धन कमाया जा सकता है। इनका मकसद किसी की दशा सुधारना या कोई दिशा दिखाना नहीं है। वैसे समाज में सभी चीजें एक साथ चलती रहती है और साहित्य, सिनेमा में भी एक साथ सभी के लिए कुछ ना कुछ उपलब्ध होता है। किसी के लिए भी दर्शक, श्रोता, पाठक कभी कम नहीं होते और न वहां पैसों की कमी होती है बस अपनी बात, अपने कंटेंट को सही ढंग से परोसना आना चाहिए अखबार और किताब अभी भी छप रहे हैं। जापान हो या अमेरिका सभी जगह उनकी छपाई और गुणवत्ता निरंतर बेहतर हुई है या यूं कहें कि पहले से ज्यादा काम हो रहा है क्योंकि कागज और स्याही की खुशबू लोगों को कागज के करीब ले आती है इसमें कोई संदेह नहीं है जहां वह कुछ लिखता-पढ़ता, हाँ सबसे बड़ी बात वह छुअन महसूस कर...