Samundar
समुंदर ******** वह समुंदर से नाराज, उस पर तोहमत लगाने लगा, जानता हूँ.... तुम पानी से बने, अथाह और अनंत हो, पर मेरे किस काम के, मैं प्यासा हूँ, तुम्हें पी नहीं सकता, तुम इतने गहरे हो, पता नहीं? मेरी आवाज़, तुम तक, पहुँचती है कि नहीं, जहाँ तक मेरी नजर जाती है तुम्हारा सन्नाटा दिखता है और किनारों से टकराती, तुम्हारी लहरें, हर बार कुछ दूर जाकर, फिर तुम्हीं में लौट आती हैं, वह गुमसुम किनारे पर बैठा, लहरों का आना-जाना, न जाने कब से देखता रहा, खुद से थककर, खारे समुंदर की सोचने लगा, ए जो बरसात और बादल है, उनको तुम्हीं तो गढ़ते हो, इन्हीं नसों से, आक्सीजन निकलता है, और धरती की सारी गंदगी, खुद में भर लेतो है, लोगों की तोहमतें भी कम नहीं हैं ऊपर से न पीने लायक, होने का तंज, सदा से कसा जाता रहा है, तूँ मीठा क्यों नहीं हो ...