The Boat
पानी की नाव *********** (1) वो जो कभी मिलता नहीं, बस तलाश रहती है, नाम उसका कुछ भी नहीं, जिसकी आश रहती है, सफर दर सफर, लोग कम होते रहे, कुछ ने, कुछ तो पाया, चलो अच्छा हुआ, कश्ती में सफर करने वाले, अपने-अपने किनारे उतरते रहे, वो भी क्या करते ? जितना समझना था, समझ लिया.. थक कर, नदी को समुंदर कहने लगे, जबकि वो कुछ ही दूर था, बेसब्र लहरें आवाज दे रही थी, फासला चंद कदमों का था, शायद! वह नाव और नदी से, थक गया था, तभी किनारे पर, नर्म घास दिखी, बहुत दिनों से, सोया नहीं था, उसके सामने हरी वादियां थी, अब नदी बेकार लगने लगी, उसके होने का मतलब नहीं था, अब यही हरे घास का मैदान उसके लिए सारा जहाँ था। सफर ऐसा ही है, जिंदगी का, सबने थककर, कहीं न कहीं लंगर डाल दिया है, जबकि नदी अब भी, समुंदर को मीठा करने का, खाब देखती है, ए नाव भी बड़ी अजीब है, जो पानी से बनी है, जिसे बहने के सिवा, कुछ आता ही नहीं है। Rajhans Raju ***************************' (2) पानी ही है दरिया, सागर, बादल,...