Khud ki khoj
खुद की खोज ************** वह नही मानता, किसी रामायण, बाइबल, कुरान को, मन्दिर या मजार को, लगाए जाने वाले भोग, बांटे जाने वाले प्रसाद को, किसी का भगवान त्रिशूल लिए है, किसी का तलवार। भूख से मरने वालों की किसे है परवाह, हर कोई रखता है चाहत, ताकत, पैसे और शोहरत की, इसके लिए कोई गुरेज नहीं, अपने हाथों ख़ुद को बेचना, ख़ुद की दलाली को, लाचारी और बेबसी कहना, फ़िर कुछ देर पछता लेना। ईश्वर के नाम पर जेहाद, सब लोग डरे, सहमे, ख़ुद की पहचान से डरते। लिए हाथ में खंजर ख़ुद को ढूँढ़ते, कत्ल किया ख़ुद को कितनी बार, धर्म और मजहब के नाम। एक और मसीहा, एक नया दौर, डर और खून का बढ़ता व्यापार। हर तरफ़ एक ही रंग, हरा या लाल, पैसे के लिए खून या खून के लिए पैसा, फर्क नहीं मालूम पड़ता। यह दुनिया किसने क्यों बनाई, लोंगों को एक दूसरे का खून, बहाना किसने सिखाया। खुदा ने तो केवल इन्सान बनाए थे, ये हिंदू और मुसलमान कहाँ से आए? साथ में रामायण और कुरान लाए, लड़ने का सबसे अच्छा हथियार, धर्म की आग, ...