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Ankaha

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  अनकहा  लौट आया मैं बिना कुछ कहे  शब्द पड़ने लगे छोटे  दर्द बढ़ने लगा  कहे भी थे जो कभी  सब हो गए अनकहे  रास्ता बढ़ता रहा  घर दूर होता रहा  साथ चलकर भी कहीं  हम अजनबी से रहे  फैलता मैं गया जितना  तुम सिमटते गए उतना  दर्द तुमने कहीं ज्यादा  हाय मुझसे सहे लौट आया मैं  बिना कुछ कहे ©️ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना  कांच की बंद खिड़कियों के पीछे  तुम बैठी हो घुटनों में मुंह छुपाए  क्या हुआ यदि हमारे तुम्हारे बीच  एक भी शब्द नहीं । मुझे जो कहना है मैं कह जाऊंगा  यहां इसी तरह अदेखा खड़ा हुआ  मेरा होना मात्र एक गंध की तरह  तुम्हारे भीतर-बाहर भर जाएगा  क्योंकि तुम जब  घुटनों से सर उठाओगी  तब बाहर मेरी आकृति नहीं  यह धुंधलाती शाम  और कांच पर जमी एक हल्की सी भाप  देख सकोगी जिसे इस अंधेरे में  तुम्हारे लिए पिघलकर  मैं छोड़ गया होऊंँगा ©️ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना  सब कुछ कह लेने के बाद  कुछ ऐसा है जो रह जाता है  तुम उसको मत वाणी देना  वह छाय...