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Ishq

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इश्क़  ****** वह इश्क के इजहार में, दुनिया की हर बात कहता रहा इश्क कैसे किया जाता है उसका जो पैमाना है कायदे की किताब पढ़ता रहा इश्क पर खरा उतरना था वह सब कुछ बड़ी खूबी से करता रहा इश्क को जैसे वही बुलंदी पर ले जायेगा  मतलब परचम फहराएगा इसी कोशिश में उसे लगने लगा अब वह उसके बगैर नहीं रह सकता उसे कहीं और चलना चाहिए  इसी कोशिश में एक दिन जब वह नदी की  आगोश में खोई हुई थी वह तो सिर्फ नदी से मुहब्बत करती है उसके आसपास कौन है इसका उसे एहसास ही नहीं था पर! यह मोहब्बत करने वाले कहां मानते हैं? अपने इश्क का इजहार पूरे अधिकार से करते हैं उसे हर वक्त अपने साथ रखना चाहते हैं इसी ख्वाहिश में उसे नदी के दामन से खींच लाया अपने मजबूत हाथों से बहुत दूर ले आया मनमाफिक तरीके से जीना चाहता है उसकी हदें इश्क में तय करता है न जाने कब तलक भागता रहा एक ही चाहत है  उनके दरमियां कोई और न हो पर! इस एक तरफा इश्क में अक्सर जिससे इश्क का दावा किया जाता है उसे तो पता ही नहीं होता,  उससे कोई इस तरह बेपनाह मुहब्बत करता है।  आशिक अपनी  बेखबरी में इस तरह  खोया हुआ है   उसे महबूब की  रजा से कोई मतलब नहीं है,  जबकि वह

Rangrez

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रंगरेज ******** वह अपने, हसीन रंग पर इतराता रहा, चेहरा धुलने से घबराता रहा, खुद का सामना करना, बड़ा मुश्किल है, दूसरों को आइना दिखाता रहा, वह डरता है, पानी की आदत से, जो धीरे-धीरे, सारे निशान मिटा देता है, किसी के कुछ भी होने की। वह तो बहता, सभी रंग खुद में भरता है, वो उस रंगरेज के, इशारों पर चलता है, जो जहाँ,जैसा चाहे, अपने रंग भरता है। ©️rajhansraju *****************************

Mera asaman

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मेरा आसमान  ************ सोचता हूँ क्या कहूँ? लड़खड़ाते कदम अच्छे हैं, या फिर लड़खड़ाती आवाज, कुछ भी हो? अच्छा नहीं लगता, नींद का यूँ खो जाना। शायद! कभी-कभी, किसी को अलविदा कहना, बड़ा मुश्किल होता है, वो भी जिसके साथ इतना वक्त गुजारा, उसने भी तो भरपूर साथ निभाया, फिर उसके लिए, चंद रातें जाग लेना, बुरा तो नहीं है, हो सकता है, उसको आखरी बार, जी भर कर देखने की चाहत हो, अब एक दूसरे को, आखरी अलविदा कहना है। वो दुःख जो उसका अपना है, जिसकी चादर ओढ़े है, उसी से एक सुकून है, जिसको कसके थामा है, कम से कम वो उसका अपना है, हलाँकि साँस उसकी चलती नहीं, धड़कन सुनाई देती नहीं, पर गरदन जिसने पकड़ा है, वह कहता उसको अपना है, छोड़कर उसको चल न दे, यूँ ही जिंदा छोड़ दे, ए भी उसके लिए, अच्छा नहीं है, जिंदगी से डरता है, खुद का सामना, कहाँ करता है? कहीं आँख पूरी खुल गयी, या नींद उसको आ गयी, कुछ और सपने आ गए, या सच थोड़ा सा दिख गया, तब पुराना दुःख कहाँ रह पाएगा, बिना उसके, पास क्या रह जाएगा? जबकि, एक कच्

Sangam

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गंगा-यमुना का संगम ****************** कुछ पल,  ठहर कर देखा, वह अब भी वैसे ही, बाँह फैलाए, अपने दामन में भरने को, धीरे-धीरे बढ़ रही, मै मूरख भागा डरके, समझ न पाया, उसके मन को, ऐसे ही भाग रहा, न जाने कब से? जबकि उसकी बाँहे, तो गंगा-यमुना हैं, जो निरंतर बाँध रही, हम सबको। rajhansraju *************************** तूँ नदी है   *************** बस यही करना है, जो कुछ? अच्छा या बुरा हुआ, उसे भुला कर, कत्ल न तो करना है, और न होना है। फिर जो दरिया है, वो भला क्या डूबेगा? कभी कुछ वक्त के लिए, नदी भी समुन्दर बन जाती है, तो वह सिर्फ, पानी की ताकत बताती है, ऐसे में कुछ नहीं करना है, बस किनारों को, थामकर रखना है, ए दोनों तेरे अपने हैं, इन्हीं के बीच रहना है, अभी बरसात का मौसम है, ए भी गुजर जाएगा, तूँ फिर वही नदी हो जाएगा, जो सबकी प्यास बुझाती है। फिर क्यों इतना परेशान है? जो अपनी प्यास बुझाने को, इधर उधर भटकता है, जबकि तूँ... खुद नदी है, पानी से बना है लबालब भरा है। जिसे दर बदर ढूँढता फिर रहा है,

जय सियाराम

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अग्नि परीक्षा  *********** ए भी तो सच है,  बनवास तो राम को हुआ, पर! बेघर हमेशा सीता हुई, चाहे वह राधा बनी, या फिर मीरा हुई, आग में गुजरना पड़ा, विष का प्याला उसने पिया, आँच राम को न लग जाए कहीं, ए समझकर, हर काल में जलती रही, सदा मर्यादा पुरुषोत्तम रहें वो, सब तजके भी, हर दम, राम-राम कहती रही। पर क्या मिला इसका सिला? अब तो यही लगता है, उस वक्त बात मानकर, तुमने अच्छा नहीं किया, काश! अग्नि परीक्षा से इंकार कर देती, या फिर दोनों भाइयों से कहती, आओ इस आग से तीनों गुजरते हैं, देखते हैं फिर भला? कितने कुंदन निकलते हैं, सवाल जब राम पर नहीं उठा, फिर सीता पर क्यों उठे? जो लांक्षन किसी स्त्री पर लगे, उसीसे भला? कोई पुरुष क्यों बचे? जब! वो भी तो हाड मांस का है, और देह धारण करता हो, फिर जिस्मानी दोष से, कैसे बच सकता है? अच्छा होता कि कह देते, तुम इंसान नहीं हो, और सीता भी कोई आम औरत नहीं है, पर तुमको तो मर्यादा पुरुषोत्तम बनना था, जिसके लिए सब कुछ, सीता को सहना था। वो चुप रहकर  सहने वाली सीता, सबक