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जय सियाराम

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अग्नि परीक्षा  *********** ए भी तो सच है,  बनवास तो राम को हुआ, पर! बेघर हमेशा सीता हुई, चाहे वह राधा बनी, या फिर मीरा हुई, आग में गुजरना पड़ा, विष का प्याला उसने पिया, आँच राम को न लग जाए कहीं, ए समझकर, हर काल में जलती रही, सदा मर्यादा पुरुषोत्तम रहें वो, सब तजके भी, हर दम, राम-राम कहती रही। पर क्या मिला इसका सिला? अब तो यही लगता है, उस वक्त बात मानकर, तुमने अच्छा नहीं किया, काश! अग्नि परीक्षा से इंकार कर देती, या फिर दोनों भाइयों से कहती, आओ इस आग से तीनों गुजरते हैं, देखते हैं फिर भला? कितने कुंदन निकलते हैं, सवाल जब राम पर नहीं उठा, फिर सीता पर क्यों उठे? जो लांक्षन किसी स्त्री पर लगे, उसीसे भला? कोई पुरुष क्यों बचे? जब! वो भी तो हाड मांस का है, और देह धारण करता हो, फिर जिस्मानी दोष से, कैसे बच सकता है? अच्छा होता कि कह देते, तुम इंसान नहीं हो, और सीता भी कोई आम औरत नहीं है, पर तुमको तो मर्यादा पुरुषोत्तम बनना था, जिसके लिए सब कुछ, सीता को सहना था। वो चुप रहकर  सहने वाली सीता, सबक

Nikamma

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निकम्मा   😀😀😀😀 यूँ खुश होकर,  तालियाँ मत बजाओ, यहाँ सवाल खुद को,  पाने और खोने का है, दर्द ए है कि खुद के मरने का,  मातम भला कैसे मनाए? जबकि अब भी, गरदन बहुत कसके दबी है, मुँह टेढ़ा हो गया है, और जीभ ऐंठ गयी है, सिर्फ एक ही कमी है मरने वाली feeling नहीं दिखती, कमबख्त शक्ल ही ऐसी है, लगता है हँस रहा, वैसे ही जैसे बिना चेहरे वाले, कंकाल होते हैं, जो चेहरों पर हंसते है, वो न तो अपना, न तो दूसरों का चेहरा देखते हैं, अब उन्हें ए मालूम है, असल में जो है, उसमें आँख नहीं है, और चेहरों में कोई फर्क नहीं है, अब वह चेहरे के साथ भी हंसता है हश्र चेहरे का, उसने, जबसे जाना, उसके चेहरे पर,  अनायास हंसी रहने लगी, उसके यूँ हँसते रहने पर, उस पर बेहया होने का इलजाम, लगता है, कैसा निकम्मा है, देखो, अब भी, कैसे हँस रहा है। 😁😁😁😁😁 rajhansraju ****************************** नालायक ******** वह घर लौट कर आया, हर तरफ सन्नाटा पसरा है,  सभी कुछ अपनी जगह पर, बड़े सलीके से रखा है,  पिछले हफ्ते कुछ साम

Mukhauta

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बे-चेहरा  ********** हलाँकि, उसे यही लगता है, उसने मुझे, ऐसो आराम का हर सामान दिया है, मुझे महफूज रखने की सारी व्यवस्था की है, और लोगों से, मुझे समझने का दावा करता है, ए लिबास और दीवार, मेरे लिए तो है, देखो कितनी खूबसूरत है, ए जंजीर सोने की है, इसमें हसीन पत्थर जड़े हैं, सब कुछ बहुत कीमती है, मुझको सर से पाँव तक, हर तरह की रंगीन बेडियों से जकड़ा है, जिसे कभी कोई लिबास, जेवर, या कुछ और कह देता है, उसका दावा अब भी यही है, वह, मेरे सहूलियत, मेरे हक की बात करता है, ए और है कि उसने कभी, मेरी आवाज नहीं सुनी, मुझे सिर्फ बुत समझते रहे, और मै,  बिना किसी पहचान के, हरदम बेचेहरा रही, rajhansraju ************************* (२) मेरे ख्याल से ********* बहुत कुछ कहने, सुनने कि ख़्वाइश़,  सभी को है, पर कहाँ? किससे और क्यों कहें? यह सोचकर अक्सर, चुप रह जाते हैं, जबकि अंदर, रह रहकर कुछ गूँजता है, जबकि बाहर न जाने, कब से? मौन पसरा है, सबको सब, नजर कहाँ आता है? कभी गौर से सुनना, चुप रहकर कोई, क्या