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Astha ki kalam se

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।। आस्था की कलम से ।।  आप इस पन्ने पर जिन अनुभूतियों से गुजरने वाले हैं। उसकी कलमकार हैं "आस्था मिश्रा" (Astha Mishra) जो कि  University of Allahabad, Prayagraj से MSc in Zoology हैं। एक बात और आस्था बिना खुशी के पूरी नहीं होती 🌷🌷 👇👇 Diary लिखना खुद को संजोने का एक बेहतरीन तरीका है और वह कुछ कविता जैसा बन पड़े तो, उसके क्या कहने। जब किसी शख़्स को इस कारीगरी में अपनी अनुभूति होने लगती है तब हर पन्ने पर बिखरे, प्रत्येक शब्द से खुद से जोड़ लेता है, उसी वक्त वह रचना जीवंत हो उठती है। वैसे भी जीवन की विडंबनाएं तो एक जैसी होती हैं सिर्फ़ आदमी बदलता है। एक कलमकार उन्हीं विडम्बनाओं को हसीन शब्दों में पिरो देता है। तो आइये "आस्था की कलम से" जो कलमकारी हुई है उसी से परिचित होते हैं.. "सच्चाई" *********** जन्म कहीं दुख,  कहीं सुख का माहौल,  लेकर आया था,, किसी ने महीनों इंतजार के बाद,  अपना अंश पाया था, तो कहीं दुनिया के भेद ने,  अपना मुंह दिखाया था, कुछ बड़े होते ही,  दुनिया के दर्द ने,  मेरी तरफ अपना,  पहला कदम ब

Mera shehar

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मेरा शहर  ********** कितना मुश्किल है  खुद को बचाए रखना, खासतौर पर उन परिंदे को जिनमें थोड़ी गोश्त होती है, हमारे शहर भी कुछ ऐसे ही हैं, जो अब भी इंसान की तरह जीते हैं, तभी तो उनके  नाम बदल जाते हैं, और उसका कत्ल भी होता है, उसका लहू बहता है, मातम पसर जाता है, उसके श्मशान बन जाने का, शोर भी होता है, सुना है आज वो मर गया, जिसके जश्न की खबर भी छपी है, वह किसी गैर मजहब, बिरादरी का शहर था, उसमें अब भी कुछ गोश्त बाकी है, शायद इस वजह से, धमाके कुछ रुक-रुक के हो रहे हैं, दूसरे शहर के लिए नारे लग रहे हैं, अब यहाँ पूरी खामोशी है, कहते हैं अमन कायम हो गया, पर वो शहर अब नहीं रहा, कुछ भी सही सलामत नहीं है, जो जिस्म जिंदा हैं, वो पूरी तरह खाली है, उनके सामने पूरा शहर मर गया, और न जाने कितनों का, वजूद भी खत्म हो गया, शहर कभी तन्हा नहीं होता, वह अपने हर, शख्स के साथ रहता है, तभी तो जब कोई, किसी दूसरे शहर जाता है, उसकी पहचान में, उसके शहर का नाम आता है, अब हम हर उस शहर के लिए, दुआ करते हैं, जो पूरा जिस्म है जिसकी सांसे चल