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Roshani

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रोशनी  ******** एक किरण  जब गुजरती है, किसी अंधेरे से, वह कितना भी घना हो, मिट जाता है,  दिया उम्मीद है, हजारों हसरतो की, हम भी रौशन कर ले, अपने उसी कोने को ©️rajhansraju ***************** (2)  धूप और छांव कभी धूप, कभी छांव चाहिए, ए हम लोग, बड़े अजीब हैं, जो है, बस वही नहीं चाहिए, आँख खोलिए, रोज... हमारे लिए, एक नई सुबह है, अब चहकने के लिए, और क्या चाहिए.. ©️rajhansraju **************** (3) अछूत तुम कैसे हो, मै कैसा हूँ.  जीवन का रंग क्यों ऐसा है,  सबका रंग सबकी जात,  कहती है कुछ ऐसी बात,  जीवन पथ पर पर,  चलते साथ,  दूर रह जाते क्यों हाथ,   एक स्पर्श की होती चाह,  पर रंग जात आती है राह,  एक राह पर चलते जाते,  दूर कदम, मिल न पाते,   मै जीतूंगा,  मै बड़ा हूँ,  चाहे तन्हा ही खड़ा हूँ,  न बढ़े कदम,  न बढ़े हाथ,  तन्हा कोई नहीं साथ,  जात रंग का भेद न छूटा, अहंकार क्यों न टूटा,  मानके तुमको सूत,  बना रहा मै अछूत,  मेरी पवित्रता इतनी कमजोर,  स्पर्श मात्र से हो जाती चूर,  भागता रहा मै,  लिए जात,  तु

Mera Bharat

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मेरा भारत  ********* वह सुबह से शाम तक, एक बोरी पीठ पर टांग कर, किसी छप्पर से निकलता है, रद्दी बीनता है, यह व्यापार भी, मुनाफे से ही तो चलता है, जो इन मासूम के कंधों, पर रहता है। वह तो महज, एक खेल समझता है पूरे दिन खेलना है, यही समझकर निकल लेता है, वह गली के हर मकान पर, दस्तक लगाता है, घर के कबाड़, के चर्चे करता है, किसी और को मत देना, यह गुजारिश करता है, पुराने अखबार और गत्ते, बड़ी खबर हैं उसके लिये, कुछ मांग कर खा लेने में, उसे दिक्कत नहीं होती, दुत्कार और डाट पर, मुस्करा देता है, कुछ नहीं मिला तो, कौन सी नयी बात है, प्यार से किसी ने बात कर ली, तो कुछ अचरज सा होता है। वह ढूँढ़ता है उस शख्स को, अपने जहान में, जो रखदे हाथ उसके कंधे पर, पूछ ले उसका हाल, वो हर उस आदमी से डरता है, जिन्हें फिक्र करनी है, इन पौधों की, उन्हें चिंता बहुत है, सिर्फ़ अपने जेब की, दिलो-दिमाग रद्दी हो चुके हैं, इन खेवनहारों के, हर मोड़ पर मौजूद है, एक शातिर कबाड़ी, वह बिना कुछ कहे, काम पर रखता है, लोगों को इस तरह, हर आदमी उसके लिए है, रद्दी की तरह। कल बड़े

Be-Shabd

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बे-शब्द  ******** बहुत देर तक बोलता रहा ,   सुनता रहा , शब्दों के सहारे ,   न जाने ,   कितने अर्थ गढ़ता रहा , इनकी कारीगरी ,   बडी‌ बारीकी से ,   सब कहती रही , इस कहने सुनने का ,  शोर होने लगा , अब सुनने को,  कोई तैयार नहीं था , हर जगह,  कहने का सिलसिला,  चलता रहा , ऐसे में शब्द,  बिना अर्थ लगने लगे , पर बिना अर्थ के शब्द ? या फिर शब्दों के बिना ही ? हाँ ! जब वह खामोशी , हमारे बीच आयी थी , उस वक़्त....... शायद!  हमने एक दूसरे का , अर्थ , समझा था ©️rajhansraju  ********* ********************* (2) ****** ⬇️⬇️पुराने पन्ने पर नई बातें ⬇️⬇️ *******  "जय सियाराम"   *********** रावण का पुतला,  हर साल जलाते रहे ,   पिछली बार से,  और बडा‌ बनाते रहे , अब तो चारों तरफ,  उसकी फौज दिखती है ,   उसे ही देखने को भीड़ जुटती है , उसी की वैल्यू है ,   वह अनोखा है ,   सोचो किसी और के,  दस सीस देखा है , आज़ का सबसे बिकाऊ ,   कमाऊ ,  होनहार है ,   वही आदर्श है ,  उसी का सम्मान है , न मर्यादा चाहिए ,  न पुरूषोत