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Afwah

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अफवाह  ******* किसी घर को तूने,  आज़ बेरंग कर दिया , मज़हब के नाम पर,  ए क्या हो गया ? इंसानियत को शर्मसार करके , कौन सा झंडा बुलंद हो गया ?   हाथ में शोले हो तो,  कब तक बचेगा ?   तूँ भी यतीम होगा,  तेरा भी घर जलेगा। वह घर,  जो तूँ जलाकर आया है , उसके शोले,  अब भी वहाँ कायम है , वही नफरत,  अब वहाँ से उठेगी , वैसे भी चिंगारियों को,  शोला बनने के लिए , एक अफवाह ही काफी है .. #rajhansraju  *********************** (2) उम्मीद  ********** अपनी सियासत,  थोडी सी बंद कर दो , हमें संभलना आता है ,   एक मौका तो दो , हमारा पडोसी ,   अब भी हमारे साथ है , क्या करे वह भी ,   थोडा डरा ,  परेशान है , उसका भी घर है ,   परिवार है , जब उसने ,   पीछे से रुक जाने को कहा , मुझे लगा हमारे बीच , अब भी भरोसा बरकरार है #rajhansraju  ********************* (३) चाहत ****** चढ़ते-चमकते, सूरज की चाहत में जीता है, जबकि वह तो,  आगमन-प्रस्थान का मतलब, बताता है,  अंधेरे से घबराना कैसा,  सुबह को फिर आना है,  खुद को देखना है,  उजाले को समझना है, 

Astitv। existence-being real

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अस्तित्व  ********** अभी-अभी   कहीं और से ,  उखाड़ के रोपा है , पौधा हरा है ,  जड़े बची है ,  सुबह देखना ,  मुरझाई पत्तियाँ , कैसे अँगड़ाई लेती हैं , ऐसे ही जिन्दगी के ,  तमाम जख्म भर जाते हैं   नया सवेरा , नई रोशनी , नई बात बता जाती है , कोई कुछ नहीं कहता , कहानी खुद ही अपनी , दास्ता कह जाती है , अगर उसमे कुछ भी बचा होगा , वह उठेगा नया घरौंदा , बना लेगा , मिट्टी में जड़ जमा लेगा , फिर पतझड़ में   पत्तियाँ गिरेंगी , तब तक वह पेड़ बन चुका होगा.. rajhansraju  ************************* धीरे-धीरे मचल ऐ दिले बेकरार   ********************* दीवाली  न जाने कितने बरस बीत गए, वह अपनी जद्दो-जहद में उलझा रहा, खाने-कमाने का,  न खत्म होने वाला सिलसिला, कुछ, फिर और पाने कि इच्छा, यूँ ही वक्त का बीतते जाना, और कुछ भी न समेट पाना, थककर कहीं गुम हो जाना, अनायास ही, अतीत की पगड़ंड़ी की तरफ, लौट जाने की, नाकाम कोशिश, न जाने कब खत्म हो यह वनवास? वह तो चौदह वर्ष में ही लौट आए थे, पर! क्यों नहीं खत्म होता, ईंट-पत्थरों में फंसे, अनगिनत लोगों की यात्रा, शा