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Bachpan

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बचपन  ************** जब बड़े हो जाएंगे ए हसीन पल,  बहुत याद आएंगे।  हर शख़्स ने,  अपने किसी कोने में,  बहुत से खूबसूरत, लम्हों को सहेज रखा है, इनको देखकर, अपने किस्से कहता है, किसी से भी, उसकी ख्वाहिश, पूछकर देखे,  वह आज भी, बचपन,  वापस चाहता है ©️rajhansraju ************************** इन छुट्टियों में ********* इस बार की छुट्टियों में, एक छोटा सा पुल बनाते हैं, थोड़ा सा गाँव,  इस तरफ ले आते हैं, वैसे यहाँ फुर्सत किसे है? शहर को बहुत जल्दी है, वो तो पूरा, गाँव निगल जाता है,  शहर की रफ्तार,  कुछ ऐसी है,  इसके साथ चलने वाले,  किसी को भी,  पता नहीं चलता,  कब वह इसकी,  चकाचौंध का हो गया,  हलांकि! गांव से आए,  हर आदमी में,  उसका थोड़ा सा गांव,  बचा रहता है,  जिसकी तलाश में वह,  जब भी किसी बड़ी,  सड़क से गुजरता है,  उसे ढूंढता है,  अब शायद!  वो वैसा न मिले,   जिसे हम छोड़कर गए थे,  चलिए एक काम करते हैं,  खुद को बचाते हैं,  किसी पगडंडी के किनारे,  कोई एक पेड़ लगाते हैं।  वो खूबसूरत पंख,  कैसे हर आँख में बस जाते

Likhawat।writing is creating symbols

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लिखावट *********** ए जो लकीरों की दुनिया है, इनको कौन गढ़ता है, कोई किस्मत, कोई कुछ और कहता है, हाथ पर क्या, कोई कहानी लिखी है, जिसके हिसाब से, जिंदगी चलती है, शायद! ए सिर्फ किस्से हैं, कहीं कुछ लिखा नहीं है, ऐसे ही चर्चा चलती रहती है क्या लिखा है पढ़ने के दावे करते रहे, सबने लकीरों के, अपने अर्थ दिये, जो जितना जानकर था, उतनी ही बातें बताता रहा, हर लकीर की कहानी कहता रहा, रेत में भी वैसी ही लकीरें थी एकदम हथेली जैसी, उसने इनके मतलब बताने शुरू किए, तभी एक लहर आयी, अपने साथ लकीरों को वापस, अपने पास ले गई, एकदम सपाट दरिया किनारे लकीरें कहाँ ठहरती हैं तभी कुछ मासूम बच्चे, बदमाशियों करने लगे, रेत पर लकीरें, बनने लगी.. rajhansraju  ************************ (२) खिलौना मिट्टी का    मै खाली हूँ ,  बेज़ान हूँ ,  मिट्टी का हूँ तो क्या हुआ , जिंदगी की धूप सही है , जिसने रंग बदल दिया , आग में तप कर पक्का हो गया , मुझमें कुछ भर सके इसलिए खुद को सदा खाली रखा , दुनिया की ठोकरों से , अब भी चटकता हूँ , जैसे कभी था ही नहीं , कुछ इस तरह , म