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Likhawat।writing is creating symbols

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लिखावट *********** ए जो लकीरों की दुनिया है, इनको कौन गढ़ता है, कोई किस्मत, कोई कुछ और कहता है, हाथ पर क्या, कोई कहानी लिखी है, जिसके हिसाब से, जिंदगी चलती है, शायद! ए सिर्फ किस्से हैं, कहीं कुछ लिखा नहीं है, ऐसे ही चर्चा चलती रहती है क्या लिखा है पढ़ने के दावे करते रहे, सबने लकीरों के, अपने अर्थ दिये, जो जितना जानकर था, उतनी ही बातें बताता रहा, हर लकीर की कहानी कहता रहा, रेत में भी वैसी ही लकीरें थी एकदम हथेली जैसी, उसने इनके मतलब बताने शुरू किए, तभी एक लहर आयी, अपने साथ लकीरों को वापस, अपने पास ले गई, एकदम सपाट दरिया किनारे लकीरें कहाँ ठहरती हैं तभी कुछ मासूम बच्चे, बदमाशियों करने लगे, रेत पर लकीरें, बनने लगी.. rajhansraju  ************************ (२) खिलौना मिट्टी का    मै खाली हूँ ,  बेज़ान हूँ ,  मिट्टी का हूँ तो क्या हुआ , जिंदगी की धूप सही है , जिसने रंग बदल दिया , आग में तप कर पक्का हो गया , मुझमें कुछ भर सके इसलिए खुद को सदा खाली रखा , दुनिया की ठोकरों से , अब भी चटकता हूँ , जैसे कभी था ही नहीं , कुछ इस तरह , म

post mortem

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 धरोहर ********* (1) मेरा पता *********** आज मैंने,  अपने घर का नंबर मिटाया है,  और गली के माथे पर लगा,  गली का नंबर हटाया,  और हर सड़क की,  दिशा का नाम पोंछ दिया है,  पर! अगर आपको,  मुझे जरूर पाना है,  तो हर देश के,  हर शहर की,  हर गली का द्वार,  खटखटाओ,  यह शाप है,  एक वर है,  और जहां भी,  आजाद रूह की झलक पड़े,  समझना वह मेरा घर है,  ।। अमृता प्रीतम।।  * ************************** (2) Postmortem   गोली खाकर  एक के मुंह से निकला- "राम" दूसरे के मुंह से निकला-  "माओ" लेकिन तीसरे के मुंह से निकला -  "आलू" पोस्टमार्टम कि रिपोर्ट है  कि पहले दो के पेट  भरे हुए थे.  (सर्वेश्वरदयाल सक्सेना) ******************************* (3) कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए । जले जो रेत में तलवे तो हमने ये देखा बहुत से लोग वहीं छटपटा के बैठ गए । खड़े हुए थे अलावों की आंच लेने को सब अपनी अपनी हथेली जला के बैठ गए । दुकानदार तो मेले में लुट गए यारों त