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Showing posts from April, 2015

Astitv। existence-being real

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अस्तित्व  ********** अभी-अभी   कहीं और से ,  उखाड़ के रोपा है , पौधा हरा है ,  जड़े बची है ,  सुबह देखना ,  मुरझाई पत्तियाँ , कैसे अँगड़ाई लेती हैं , ऐसे ही जिन्दगी के ,  तमाम जख्म भर जाते हैं   नया सवेरा , नई रोशनी , नई बात बता जाती है , कोई कुछ नहीं कहता , कहानी खुद ही अपनी , दास्ता कह जाती है , अगर उसमे कुछ भी बचा होगा , वह उठेगा नया घरौंदा , बना लेगा , मिट्टी में जड़ जमा लेगा , फिर पतझड़ में   पत्तियाँ गिरेंगी , तब तक वह पेड़ बन चुका होगा.. rajhansraju  ************************* धीरे-धीरे मचल ऐ दिले बेकरार   ********************* दीवाली  न जाने कितने बरस बीत गए, वह अपनी जद्दो-जहद में उलझा रहा, खाने-कमाने का,  न खत्म होने वाला सिलसिला, कुछ, फिर और पाने कि इच्छा, यूँ ही वक्त का बीतते जाना, और कुछ भी न समेट पाना, थककर कहीं गुम हो जाना, अनायास ही, अतीत की पगड़ंड़ी की तरफ, लौट जाने की, नाकाम कोशिश, न जाने कब खत्म हो यह वनवास? वह तो चौदह वर्ष में ही लौट आए थे, पर! क्यों नहीं खत्म होता, ईंट-पत्थरों में फंसे, अनगिनत लोगों की यात्रा, शा

Tanhai

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वह अकेला है *********** वह अब भी अकेला है , सदियों से यही होता रहा , उसने जो भी कहा,  किसी के समझ नहीं आयी , भीड़ ने उसकी एक न सुनी , वह चुप-चाप , किसी कोने में जाकर खडा‌ हो गया ,   वक़्त का पहिया आगे बढा‌ , उलझने बढ़ने लगी , तब वह कुछ याद आने लगा , किसी ने कहा वह कबीर था , कुछ ने कहा , नहीं वह फकीर था , अब उसे ढूंढने लगे , पर कोई पहचानता नहीं था , वह अब भी , पास वाले कोने मे,  खडा‌ बड़बडा रहा है , जिसे कोई सुन नहीं रहा.. ©️rajhansraju  *********************** (2) Accident  ********** सड़क किनारे कहीं,      जब भीड़ होती है.  डर लगता है,  खौफ होता है. सहमे हुए कदम लिए,  आगे बढ़ता हूँ. कोई अपना न हो,  दुआ करता हूँ.  दूर से देख के लौट आता हूँ, अपना नहीं जानके,  सकून पाता हूँ. अपनी राह,  चुपचाप चल देता हूँ. एक दिन,  मैं ऐसे ही पड़ा था. भीड़ थी,  कोई अपना नहीं था ©️rajhansraju  ****************** (३) समझ ******** काश मुझमे थोडी समझ होती , रामयन , कुर