Thakan

 सूरज की थकान 

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सूरज दिन भर जलता है, 
प्रकाशित सारी दुनिया करता है,
पर ! एक दम तन्हा दिखता है, 
लगता है घर से दूर, 
काम पर निकला है,
दिन भर तन्हाइयों में जीता है,

फिर कैसे ?
इतनी ऊर्जा, अपने अन्दर भरता है,
रोज़ ख़ुशी-ख़ुशी क्यों? 

जलने चल पड़ता है,
वह भी जिम्मेदार ही लगता है, 
जो परिवार के लिए जीता है,
इसलिए हर सुबह,

समय से काम में लग जाता है,
हाँ! जलते-जलते वह भी,

थकता है,
शाम की गोद में वह भी ढलता है, 
माँ का आँचल वह भी ढूँढता है,
अपने भाई बहन,

चाँद सितारों संग गुनगुनाता है, 
चांदनी के संग नाचता है,
उसकी माँ रात, 

पूरे आसमान पर छा जाती है ,
बेटे को प्यार से सुलाती है,
सूरज के दिन भर की थकान,
शाम की मुस्कराहट, 

रात की हंसी,
भोर की खिलखिलाहट,
से ही मिट जाती है,
सूरज नई ऊर्जा, नई आग ले, 

खुद को जलाने, चल पड़ता है,
हर सुबह, 

सारे जहाँ को रौशन करने,
सूरज की तरह हमें भी,

नई ऊर्जा नई आग भरनी है,
चंद राहें ही नहीं,

 हर घर को रौशन करना है,
खुद को जलाकर कर ही, 

हम सूरज बन पाएंगे।
दुनिया में हम हीी, 

नया प्रकाश लाएंगे,
अपने आकाश में हमें भी, 

सूरज की तरह जलना होगा ,
बिना रुके हर पल चलना होगा,
सारे जहाँ को रौशन करना है तो,
हर पल जलना होगा .....

©️Rajhansraju 
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फुटपाथी

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देखो धरती आसमान से, 
कैसे मिलाती है क्षितिज पे,
जैसे कोई बिछड़ा बच्चा ढूंढें, 
माँ की गोद को,
फुटपाथ पर भी होते हैं बच्चे, 
बिना माँ बाप के।
अकेले लड़ते भूख और समाज से,
एक रूठा बच्चा, 
पास नहीं कोई, 
आस नहीं कोई,
कब तक चलेगा बिना सहारे, 
मरे बचपन के साथ, 
हाथ में उठाए बचपन का बोझ,
कोई नहीं पूंछता उसका नाम ,
हर कोई कहता है रामू या छोटू,
नाम की जरूरत ही नहीं पड़ी, 
सब अपने हिसाब से, 
रख देते हैं उसका नाम,
उसे भी नहीं मालूम,
किसी ने कभी रखा हो, 
उसका कोई नाम,
कभी कप - प्लेट धोता,
किसी घर में, 
पोछा लगाता मिल जाता है,
यह रामू या छोटू, 
पेट भरने को चंद टुकडे ,
साथ में दो-चार थप्पड़,
रोने की भी चाहत कहाँ रह जाती है,
कोई आंसू नहीं पोंछता यहाँ,
हर कोई देता है, एक भद्दा सा नाम,
फिर भी वह हँसता है, 
जवाब देता है , हर नाम पर,
आधी रोटी से भी भर जाता है, 
उसका पेट,
क्योंकि गालियाँ, थप्पड़, 
आज काफी थे,
वह फिर हँसता है, 
बेबस लोगों पर ,
जो खुद और समाज से हारे हैं,
अपना गुस्सा और रौब, 
उस पर जता रहें हैं,
उसे नहीं मालूम, 
जीवन के और भी अर्थ हैं ,
जिसे वह नहीं जानता,
वह तो इतनी जल्दी, 
बड़ा हो गया कि चंद दिनों में ही,
दुनिया से हारे लोगों को जान गया,
वह हँसता है, खिलखिलाता है ,
उसे माँ की कमी नहीं खलती,
क्योंकि वह किसी माँ को नहीं जानता,
फेंक दिया गया था, 
सड़क किनारे,
किसी कूड़ेदान में,
उसी के जैसे, 
किसी ने उसे उठाया था ,
रोते -रोते कब चलना सीखा,
नहीं मालूम,
कोई अंगुली उसने नहीं पकड़ी,
भूख ने ही उसे सब सिखाया,
चोरी करना छीन के खाना,
वह माँ नहीं,
मालकिन को जानता है,
जो हमेशा डाटती है,
कभी-कभी मारती है,
वह फूटपाथ पर ही,
लड़ता और बढ़ता है ,
सड़क किनारे रोटियां,
गलियां पर्याप्त, 
मिल जाती हैं,
इतने से ही खुश हो लेता है,
जरूरंते कितनी सीमित,
एक दिन और जिन्दा रहा, 
चलो फिर, खुश हो लिया,
भूख तक सब कुछ सीमित,
सड़क छाप, आवारा ,
कुछ भी कह लो,
कोई फर्क नहीं,
मस्त अपनी धुन में खोया,
न कुछ पाने की ख्वाइश,
न कुछ खोने का डर,
बस ! एक दिन और एक रात कटी ,
जिंदगी यूँ ही चलती रही,
इसके बाद भी वह हँसता है,
मुस्कराता है,
जब भी वह अकेला होता है ,
क्षितिज के पास पहुँच जाता है,
यही धरती,यही आसमां देते हैं,
उसको ताकत ,
आगे बढ़ने की,
एक मुस्कराहट ,एक एहसास ,
खुद के होने का.. 
©️rajhansraju
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थोड़ी देर ठहर जाओ
********
एक दिन 
थोड़ा वक्त लेकर आना 
किसी अनजानी जगह चलेंगे 
जहाँ कोई पहचानता न हो
किसी पगडंडी पर
कुछ दूर साथ चलें
और आहिस्ता से गुम हो जाएं
खामोश नदी के 
किसी किनारे बैठे रहे 
एक पल जो हमारा हो 
उसी में सदियां गुजर जाएं
इसी ख्वाहिश में 
नदी के पास चला आता हूँ 
वक्त न जाने कब? 
हमारा लम्हा 
हमें सुपुर्द कर दे
और नदी न जाने कब 
हमसे बात करने लगे
बचपन से यही तो सुनता आया हूँ 
चाँद वाली बुढ़िया 
क्या पता 
किसी दिन नदी किनारे मिल जाये 
वैसे भी नदी की उम्र बहुत ज्यादा है 
हो सकता है 
दोनों पुरानी सखी हों
और मुझे भी अपने किनारे पर 
रोज देखती हों
मैं नदी से बात करना चाहता हूँ 
वह मुसाफिर है कि रास्ता
बस इतना ही तो
जानना चाहता हूँ 
कहीं ऐसा तो नहीं है 
वह भी गुम हो गई है 
अपने किनारे की तलाश में 
आज तक उसे
अपना वह लम्हा नहीं मिला 
जिसमें सदियां गुजर जाती। 
वह एकदम शांत है
मेरे अंदर का ज्वार भाटा 
मुझे नदी तक ले आता है 
यह बेगाना शख़्स 
मेरे पास हर वक्त रहता है 
कहता है तेरा वजूद हूँ 
तुझसे दूर नहीं जा सकता 
चलो साथ रहते हैं 
एक दूसरे को समझते हैं 
तभी मौन पसरने लगा 
अब जरा गौर से देखो 
वह नदी तुम हो
जो तुम्हारे अंदर 
बह रही है 
©️Rajhansraju 
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Comments

  1. कहते हैं कब्र में सुकून की नींद आती है
    अब मजे की बात ए है की ए बात भी
    जिंदा लोगों ने काही है

    ReplyDelete

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